एसबीआई के लिए खाताधारकों को ब्याज चुकाना मुश्किल हुई, कर्ज़ से होने वाली आमदनी घटी

by Rahul Gautam 3 years ago Views 5489

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देश में कोरोना महामारी के चलते आर्थिक अनिश्चितता फैली हुई है। ख़ौफ़ इतना है कि लोग पैसा ख़र्च करने में डर रहे हैं और बैंको में जमा पूंजी निकालने की बजाय और जमा कर रहे हैं. देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में लिक्विडिटी रेश्यो 143 फीसदी पर पहुंच गया है। इसका सीधा मतलब है कि या तो बैंक क़र्ज़ देने से डर रहा है या लोग क़र्ज़ लेने आगे नहीं आ रहे।

बता दें कि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने सभी बैंकों को 100 फीसदी लिक्विडिटी रेश्यो बनाए रखने का निर्देश दिया था. बाद में कोरोना में जाम हुई आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए इसे घटाकर 80 फीसदी कर दिया था ताकि बैंक ज्यादा से ज्यादा लोगों को क़र्ज़ दे पाए. लेकिन एसबीआई के आंकड़े बताते हैं कि लोग फ़िलहाल क़र्ज़ से तौबा करके बैठे हैं और किसी तरह के ईएमआई में नहीं फंसना चाहते हैं. स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन रजनीश कुमार ने हाल में ही कहा था ' हमारे बैंक में पैसा है, लेकिन बाज़ार में खरीददार नहीं हैं.'


इस बीच एक चुनौती यह है कि 2.5 लाख करोड़ की जमा राशि पर बैठा स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया इतनी बड़ी रक़म पर खाताधारकों को ब्याज़ कैसे चुकाएगा। क्यूंकि क़र्ज़ के ज़रिए ब्याज के रूप में होने वाली उसकी कमाई हो नहीं रही। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर लंबे वक़्त हालात यूं ही बने रहे तो बैंक चलाना ही मुश्किल हो जायेगा।

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इसी मुश्किल से उबरने के लिए बैंक खातों पर मिलने वाले क़र्ज़ को घटा रहे हैं। स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने भी अपना ब्याज सबसे कम स्तर पर कर दिया है, केवल 2.70 फीसदी. हालात की तस्दीक हालिया आरबीआई रिपोर्ट भी करती है जिसके मुताबिक़ आमदनी नहीं बढ़ने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों के लोग बैंकों में ज्यादा रक़म जमा करा रहे हैं। यानि अपने खर्चों को रोक लोग बैंक खातों में पैसा छोड़ने में ही भलाई समझ रहे हैं।

आरबीआई के बीती तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2019 में ग्रामीण इलाक़ों के बैंको में जमा राशि की वार्षिक वृद्धि दर 12.8 फीसदी थी जो मार्च 2020 में बढ़कर 15.5 फीसदी हो गई. कस्बों के बैंकों में भी ये आंकड़ा 11.4 फीसदी से बढ़कर 12.3 फीसदी हो गया. इसका मतलब है कि ग्रामीण और कस्बाई इलाक़ों के बैंकों में कुल जमा राशि के बढ़ने की रफ़्तार बढ़ी है.

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