किसान बदहाल क्योंकि सरकार उनकी एक तिहाई फसल ही खरीदती है: रिपोर्ट

by Israr Ahmed Sheikh 4 years ago Views 2580

Farmers in disarray because the government buys on

ग्रामीण इलाकों में लोगों की ख़रीदारी क्षमता लगातार नीचे गिर रही है. इसकी सीधी वजह है किसानों की आमदनी का कम होना खेती के लिए किसान की लागत लगातार बढ़ रही है, मगर फ़सल के दाम उसके अनुपात में नहीं बढ़ रहे. हाल ही में state bank of india की रिसर्च डेस्क की रिपोर्ट बताती है कि सरकार किसानों की कुल फ़सल का लगभग एक तिहाई हिस्सा ही ख़रीदती है. EFFECTIVE FOODGRAIN PROCUREMENT HOLDS THE KEY: FOOD PRICES COULD SOFTEN के नाम से आई इस रिपोर्ट में पिछले तीन वित्त वर्षों के फ़सलों के उत्पादन और सरकारी ख़रीद के आंकड़े दिए गए हैं.

इस रिपोर्ट के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2017 में चावल का कुल उत्पादन हुआ 1097 लाख मीट्रिक टन लेकिन ख़रीद हुई 381.1 लाख मीट्रिक टन, गेंहू का उत्पादन हुआ 985.1 लाख मीट्रिक टन, सरकारी ख़रीद हुई 308.2 लाख मीट्रिक टन, मोटे अनाज का उत्पादन हुआ 415.9 लाख मीट्रिक टन और सरकारी ख़रीद हुई 0.7 लाख मीट्रिक टन, दालों का उत्पादन हुआ 231.3 लाख मीट्रिक टन और सरकारी ख़रीद हुई 3.34 लाख मीट्रिक टन.

वित्त वर्ष 2018 में चावल का कुल उत्पादन हुआ 1127.6 लाख मीट्रिक टन लेकिन ख़रीद हुई 381.8 लाख मीट्रिक टन, गेंहू का उत्पादन हुआ 998.7 लाख मीट्रिक टन, सरकारी ख़रीद हुई 358 लाख मीट्रिक टन, मोटे अनाज का उत्पादन हुआ 447.5 लाख मीट्रिक टन और सरकारी ख़रीद हुई 0.9 लाख मीट्रिक टन, दालों का उत्पादन हुआ 254.2 लाख मीट्रिक टन और सरकारी ख़रीद हुई 45.51 लाख मीट्रिक टन.

वित्त वर्ष 2019 में चावल का कुल उत्पादन हुआ 1156.3 लाख मीट्रिक टन लेकिन ख़रीद हुई 437.8 लाख मीट्रिक टन, गेंहू का उत्पादन हुआ 1012 लाख मीट्रिक टन, सरकारी ख़रीद हुई 341.3 लाख मीट्रिक टन, मोटे अनाज का उत्पादन हुआ 412.4 लाख मीट्रिक टन और सरकारी ख़रीद हुई 2 लाख मीट्रिक टन, दालों का उत्पादन हुआ 232.2 लाख मीट्रिक टन और सरकारी ख़रीद हुई 19.4 लाख मीट्रिक टन.

जो थोड़ी बहुत फ़सल सरकार ख़रीदती भी है उसके भुगतान के लिए किसानों को लम्बा इंतेज़ार करना पड़ता है. अकेले गन्ना किसानों का 17 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का भुगतान मिल मालिकों पर बकाया है, अगर सरकार को अर्थव्वस्था को दुरुस्त करना है तो उसे फ़सलों की सरकारी ख़रीद को बढ़ाना होगा और किसानों को उनकी फ़सलों का वक्त पर भुगतान करना होगा.

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