15 करोड़ भारतीय मानसिक रूप से बीमार - स्वास्थ्य मंत्रालय
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने लोकसभा में बताया है कि देश की तक़रीबन 15 करोड़ की आबादी तरह-तरह मानसिक बीमारियों से जूझ रही है. चिंता की बात यह है कि बीमारियों की पहचान होने के बावजूद ऐसे लोग इलाज से महरूम हैं.
देश की 10 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है. दूसरे शब्दों में कहें तो देश की तक़रीबन 15 करोड़ की आबादी तरह-तरह मानसिक बीमारियों से जूझ रही है. दुनिया के 200 मुल्को की आबादी इससे कम है।
ये आंकड़े लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी और विनोद चावड़ा के एक सवाल के जवाब में जारी किया है. दोनों बीजेपी सांसदों ने पूछा था कि क्या देश में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा कोई अध्ययन हुआ है? स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि साल 2015-2016 में दिल्ली के विद्यासागर इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, न्यूरो एंड एलाइड साइंसेज़ यानी विमहांस ने एक अध्ययन किया था. इसके मुताबिक देश की 15 करोड़ आबादी को फौरन मेडिकल हेल्प की ज़रूरत है. इनमें 80 फीसदी लोग ऐसे हैं जो आर्थिक तंगी के चलते अपना इलाज शुरू नहीं करवा पाए हैं. वहीं 1 फीसदी आबादी आत्महत्या के मुहाने पर खड़ी है. सर्वे के मुताबिक देश का हर 20वां शख़्स डिप्रेशन का शिकार है और उम्र बढ़ने के साथ उसमें डिप्रेशन बढ़ता जाता है. ग्रामीण इलाकों में डिप्रेशन शहरों के मुकाबले दोगुना है. विमहांस का यह अध्ययन 12 राज्यों के 34 हज़ार लोगों के बीच किया गया है. मानसिक बीमारियों के सबसे ज़्यादा 14.1 फ़ीसदी मामले मणिपुर और सबसे कम असम 5.8 में मिले हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में तकरीबन छ फीसदी, गुजरात में 7.4 फीसदी, राजस्थान में 10.7 फीसदी, झारखंड 11.1 फीसदी, केरल में 11.4 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ में 11.7 फ़ीसदी, तमिलनाडु में 11.8 फ़ीसदी, बंगाल में 13 फ़ीसदी, पंजाब में 13.4 फ़ीसदी और मध्य प्रदेश में 13.9 फीसदी लोग मानसिक समस्यायों से जूझ रहे हैं. यानि गरीब अमीर सभी राज्यों में संकट मौजूद है। सर्वे यह भी बताता है कि तक़रीबन 5.4 फीसदी लोग किसी न किसी नशे से जुड़ी समस्या से जूझ रहे हैं जबकि 4.6 फीसदी लोग शराब की वजह से मानसिक रूप से अस्थिर हैं. इनके अलावा न्यूरोटिक डिसऑर्ड के 3.5 फ़ीसदी, डिप्रेसिव डिसऑर्डर से 2.7 फ़ीसदी, मूड डिसऑर्डर से करीब 2.8, फोबिया और एंग्ज़ायटी के 1.9 फीसदी, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर के 0.8 फीसदी, Schizophrenia के 0.4 फीसदी लोग और बाइपोलर डिसऑर्डर के 0.3 फीसदी लोगों की पहचान हुई है.
ये आंकड़े लोकसभा में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी और विनोद चावड़ा के एक सवाल के जवाब में जारी किया है. दोनों बीजेपी सांसदों ने पूछा था कि क्या देश में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा कोई अध्ययन हुआ है? स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि साल 2015-2016 में दिल्ली के विद्यासागर इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, न्यूरो एंड एलाइड साइंसेज़ यानी विमहांस ने एक अध्ययन किया था. इसके मुताबिक देश की 15 करोड़ आबादी को फौरन मेडिकल हेल्प की ज़रूरत है. इनमें 80 फीसदी लोग ऐसे हैं जो आर्थिक तंगी के चलते अपना इलाज शुरू नहीं करवा पाए हैं. वहीं 1 फीसदी आबादी आत्महत्या के मुहाने पर खड़ी है. सर्वे के मुताबिक देश का हर 20वां शख़्स डिप्रेशन का शिकार है और उम्र बढ़ने के साथ उसमें डिप्रेशन बढ़ता जाता है. ग्रामीण इलाकों में डिप्रेशन शहरों के मुकाबले दोगुना है. विमहांस का यह अध्ययन 12 राज्यों के 34 हज़ार लोगों के बीच किया गया है. मानसिक बीमारियों के सबसे ज़्यादा 14.1 फ़ीसदी मामले मणिपुर और सबसे कम असम 5.8 में मिले हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में तकरीबन छ फीसदी, गुजरात में 7.4 फीसदी, राजस्थान में 10.7 फीसदी, झारखंड 11.1 फीसदी, केरल में 11.4 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ में 11.7 फ़ीसदी, तमिलनाडु में 11.8 फ़ीसदी, बंगाल में 13 फ़ीसदी, पंजाब में 13.4 फ़ीसदी और मध्य प्रदेश में 13.9 फीसदी लोग मानसिक समस्यायों से जूझ रहे हैं. यानि गरीब अमीर सभी राज्यों में संकट मौजूद है। सर्वे यह भी बताता है कि तक़रीबन 5.4 फीसदी लोग किसी न किसी नशे से जुड़ी समस्या से जूझ रहे हैं जबकि 4.6 फीसदी लोग शराब की वजह से मानसिक रूप से अस्थिर हैं. इनके अलावा न्यूरोटिक डिसऑर्ड के 3.5 फ़ीसदी, डिप्रेसिव डिसऑर्डर से 2.7 फ़ीसदी, मूड डिसऑर्डर से करीब 2.8, फोबिया और एंग्ज़ायटी के 1.9 फीसदी, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसआर्डर के 0.8 फीसदी, Schizophrenia के 0.4 फीसदी लोग और बाइपोलर डिसऑर्डर के 0.3 फीसदी लोगों की पहचान हुई है.
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