एजुकेशन लोन - ब्रिटिश युवा सांसद ज़ारा सुल्ताना के भाषण में भारत के लिए चेतावनी
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की युवा सांसद ज़ारा सुल्ताना ने स्टूडेंट पर बढ़ते एजुकेशन लोन का मुद्दा संसद में ज़ोरदार तरीक़े से उठाया है. हाउस ऑफ कॉमन्स में दिया गया उनका भाषण इंटरनेट पर वायरल हो रहा है लेकिन भारत के लिए उनके भाषण के क्या मायने हैं?
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की 26 साल की युवा सांसद ज़ारा सुल्ताना ने हाउस ऑफ़ कॉमन्स में शिक्षा पर चली बहस के दौरान एजुकेशन लोन का मुद्दा बेहद प्रभावशाली तरीक़े से उठाया है. वो संसद में अपने एजुकेशन लोन का स्टेटमेंट लेकर पहुंची और अपने तेवर के चलते इंटरनेट पर छा गईं. ज़ारा ने कहा कि नौजवानों के पास उच्च शिक्षा का विकल्प हमेशा होना चाहिए, भले ही वे किसी भी बैकग्राउंड के हों। ये मुद्दा भारत में भी उतना ही मायने रखता है, क्यूंकि भारत में ज़्यादातर स्टूडेंट्स कम और मध्यम आय वर्ग के होते हैं जिनके लिए उच्च शिक्षा हासिल करना एक बड़ी चुनौती होती है.
आंकड़े बताते हैं कि कर्ज़ चुका पाने की चुनौतियों के चलते भारत में एजुकेशन लोन लेने वालों की तादाद घट रही है. 2015 में कर्ज़ लेने वाले स्टूडेंट्स की तादाद 3 लाख 34 हज़ार थी जो 2019 में घटकर 2 लाख 50 हज़ार रह गयी है। हालांकि मंज़ूर किए गए एजुकेशन लोन की रक़म में 34 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो 2016 में 16 हज़ार 800 करोड़ से बढ़कर 2019 में 22 हज़ार 550 करोड़ हो गई है। RBI के इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में ज़्यादातर एजुकेशन लोन बड़ी रकम वाले हैं। छोटे एजुकेशन लोन की संख्या में कमी आई है. यह आंकड़े बताते हैं कि निचले तबके के स्टूडेंट्स की हालत ठीक नहीं है. वीडियो देखिये बैंकर्स इसके लिए शिक्षा के बढ़ते निजीकरण और नौकरियों की घटती संख्या को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. निजीकरण की वजह से शिक्षा महंगी होने के साथ-साथ बाज़ार में नौकरियों की संभावना घट रही है। ऐसे में ब्रिटिश सांसद ज़ारा सुल्ताना का बयान हमें सजग करता है कि शिक्षा पाने के रास्ते आसान होने चाहिए और कम आमदनी वाले परिवारों के बच्चों पर एजुकेशन लोन का बोझ नहीं होना चाहिए.
आंकड़े बताते हैं कि कर्ज़ चुका पाने की चुनौतियों के चलते भारत में एजुकेशन लोन लेने वालों की तादाद घट रही है. 2015 में कर्ज़ लेने वाले स्टूडेंट्स की तादाद 3 लाख 34 हज़ार थी जो 2019 में घटकर 2 लाख 50 हज़ार रह गयी है। हालांकि मंज़ूर किए गए एजुकेशन लोन की रक़म में 34 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है जो 2016 में 16 हज़ार 800 करोड़ से बढ़कर 2019 में 22 हज़ार 550 करोड़ हो गई है। RBI के इन आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में ज़्यादातर एजुकेशन लोन बड़ी रकम वाले हैं। छोटे एजुकेशन लोन की संख्या में कमी आई है. यह आंकड़े बताते हैं कि निचले तबके के स्टूडेंट्स की हालत ठीक नहीं है. वीडियो देखिये बैंकर्स इसके लिए शिक्षा के बढ़ते निजीकरण और नौकरियों की घटती संख्या को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. निजीकरण की वजह से शिक्षा महंगी होने के साथ-साथ बाज़ार में नौकरियों की संभावना घट रही है। ऐसे में ब्रिटिश सांसद ज़ारा सुल्ताना का बयान हमें सजग करता है कि शिक्षा पाने के रास्ते आसान होने चाहिए और कम आमदनी वाले परिवारों के बच्चों पर एजुकेशन लोन का बोझ नहीं होना चाहिए.
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