दुनियाभर में 1.6 अरब लोगों की नौकरियां जाने का ख़तरा बढ़ा - आईएलओ
कोरोनावायरस के संकट के चलते दुनियाभर में 1.6 अरब लोगों की नौकरियां छिनने का ख़तरा मंडरा रहा है. यह चेतावनी इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन यानी आईएलओ ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में दी है. इसके मुताबिक असंगठित क्षेत्र में 1.6 अरब मज़दूर दुनिया की कुल वर्क फोर्स का आधा हैं और इनकी रोज़ी रोटी जा सकती है.
आईएलओ के मुताबिक काम के घंटे कम होने के चलते 2020 के दूसरे क्वार्टर यानि अप्रैल से जुलाई में ज़बरदस्त गिरावट की आशंका है जिससे वैश्विक स्तर पर समस्या पैदा हो सकती है.
2019 के चौथे क्वार्टर के आंकड़ों की तुलना इस साल की दूसरी तिमाही के आंकड़ों से करें तो इस बार 10.5 फीसदी की गिरावट की आशंका है, जिसका सीधा मतलब लगभग 30 करोड़ फुल टाइम नौकरियों की कटौती की आशंका है. इससे पहले 6.7 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया है, जोकि लगभग 19 करोड़ फुल टाइम नौकरियों के बराबर है. हालात इस क़दर भयावह होने की सबसे बड़ी वजह दुनियाभर में लॉकडाउन का लगातार बढ़ना है. वीडियो देखिए अगर दुनिया के नक्शे पर इसे समझने की कोशिश करें तो मालूम पड़ता है कि दुनिया के सभी बड़े मुल्क इससे प्रवाभित होंगे. अमेरिका में 12.4 फीसदी और यूरोप में तक़रीबन 11.8 फीसदी की कमी आएगी. दुनिया के बाकी हिस्सों में भी कमोबेश मिलने वाले काम के घंटो में 9.5 % की कमी आने की आशंका है. आईएलओ की रिपोर्ट यह भी कहती है कि दुनियाभर में 43 करोड़ छोटे बड़े धंधे लॉकडाउन के चलते बुरी तरह प्रवाभित हुए हैं. ये सभी उद्योग सबसे ज्यादा मार पड़ने वाले क्षेत्रों में से हैं. रिटेल और होलसेल बिज़नेस में 23 करोड़, मैन्युफैक्चरिंग में 11 करोड़, होटल और रेस्तरां में 5 करोड़ और तक़रीबन 4 करोड़ से ज्यादा रियल एस्टेट में उद्यमियों के धंधे चौपट होने की कगार पर हैं। इस आर्थिक संकट से पैदा हुए हालात के चलते असंगठित क्षेत्र में काम करने वालो मज़दूरों की आमदनी में 60 फीसदी की कमी पहले ही आ चुकी है. अमेरिकी और अफ़्रीकी महाद्वीप में यह गिरावट 81 फीसदी, एशिया और पैसिफ़िक देशों में 21.6 फीसदी और यूरोप और सेंट्रल एशिया में यही आंकड़ा 70 फीसदी है. कुछ और आमदनी का जरिया ना होने के कारण, ऐसे लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं.
2019 के चौथे क्वार्टर के आंकड़ों की तुलना इस साल की दूसरी तिमाही के आंकड़ों से करें तो इस बार 10.5 फीसदी की गिरावट की आशंका है, जिसका सीधा मतलब लगभग 30 करोड़ फुल टाइम नौकरियों की कटौती की आशंका है. इससे पहले 6.7 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया है, जोकि लगभग 19 करोड़ फुल टाइम नौकरियों के बराबर है. हालात इस क़दर भयावह होने की सबसे बड़ी वजह दुनियाभर में लॉकडाउन का लगातार बढ़ना है. वीडियो देखिए अगर दुनिया के नक्शे पर इसे समझने की कोशिश करें तो मालूम पड़ता है कि दुनिया के सभी बड़े मुल्क इससे प्रवाभित होंगे. अमेरिका में 12.4 फीसदी और यूरोप में तक़रीबन 11.8 फीसदी की कमी आएगी. दुनिया के बाकी हिस्सों में भी कमोबेश मिलने वाले काम के घंटो में 9.5 % की कमी आने की आशंका है. आईएलओ की रिपोर्ट यह भी कहती है कि दुनियाभर में 43 करोड़ छोटे बड़े धंधे लॉकडाउन के चलते बुरी तरह प्रवाभित हुए हैं. ये सभी उद्योग सबसे ज्यादा मार पड़ने वाले क्षेत्रों में से हैं. रिटेल और होलसेल बिज़नेस में 23 करोड़, मैन्युफैक्चरिंग में 11 करोड़, होटल और रेस्तरां में 5 करोड़ और तक़रीबन 4 करोड़ से ज्यादा रियल एस्टेट में उद्यमियों के धंधे चौपट होने की कगार पर हैं। इस आर्थिक संकट से पैदा हुए हालात के चलते असंगठित क्षेत्र में काम करने वालो मज़दूरों की आमदनी में 60 फीसदी की कमी पहले ही आ चुकी है. अमेरिकी और अफ़्रीकी महाद्वीप में यह गिरावट 81 फीसदी, एशिया और पैसिफ़िक देशों में 21.6 फीसदी और यूरोप और सेंट्रल एशिया में यही आंकड़ा 70 फीसदी है. कुछ और आमदनी का जरिया ना होने के कारण, ऐसे लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच चुके हैं.
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