देश में हर दिन 145 और हर घंटे 6 बच्चे लापता: केंद्रीय मंत्रालय
पिछले छह साल के भीतर 3 लाख से भी ज्यादा बच्चे देशभर से लापता हो गए. यह आंकड़ा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लोकसभा में जारी किया है. आसान शब्दों में कहें तो देश के किसी न किसी हिस्से से हर दिन 145 बच्चे लापता हो रहे हैं.
देश के अलग-अलग हिस्से में हर घंटे में छह बच्चे लापता हो रहे हैं. बच्चों के लापता होने की यह डरावना सच्चाई संसद में पेश ताज़ा आंकड़ों से पता चली है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के नए आंकड़ों के मुताबिक 1 जनवरी 2014 से 4 दिसंबर 2019 तक देश से 3 लाख 18 हज़ार 748 बच्चे लापता हो गए. आसान शब्दों में कहा जाए तो हर दिन देश से 145 बच्चे और हर घंटे छह बच्चे ग़ायब हो रहे हैं.
बच्चों के लापता होने का सबसे बड़ा आंकड़ा मध्यप्रदेश का है. यहां तक़रीबन छह सालों में 52 हज़ार 272 बच्चे ग़ायब हो गए. वहीं पश्चिम बंगाल में 47 हज़ार 744, गुजरात में 43 हज़ार 665, राजधानी दिल्ली में 37 हज़ार 418 , कर्नाटक में 24 हज़ार 478, उत्तर प्रदेश में 23 हज़ार 802, महाराष्ट्र में 18 हज़ार 530 और तमिलनाडु में 13 हज़ार 534 बच्चे छह सालों में लापता हो गए. इसी अवधि में पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर, नागालैंड में बच्चों के लापता होने का एक भी मामले सामने नहीं आया. वहीं मिज़ोरम में 14, अरुणाचल प्रदेश में 53, त्रिपुरा में 122, सिक्किम में 279 और असम में 2 हज़ार 616 मामले सामने आए. अगर केंद्र शासित प्रदेशों को देखें तो बीते छह साल में लक्ष्यद्वीप और दादरा और नागर हवेली में भी बच्चों के लापता होने का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ. वहीं दमन और दीव में 57, पुडुचेरी में 131, जम्मू-कश्मीर में 269 और चंडीगढ़ में 533 बच्चे लापता हुए. वीडियो देखिये इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के लापता होने के पीछे संगठित रैकेट काम करते हैं जो बाद में बाल श्रम, देह व्यापार, भीख मांगने के धंधे में ढकेल दिया जाता है. इनके अलावा नि:संतान दंपतियों को अवैध तरीक़े से बच्चा गोद वाले रैकेट भी बच्चों के लापता होने की वजह हैं.
बच्चों के लापता होने का सबसे बड़ा आंकड़ा मध्यप्रदेश का है. यहां तक़रीबन छह सालों में 52 हज़ार 272 बच्चे ग़ायब हो गए. वहीं पश्चिम बंगाल में 47 हज़ार 744, गुजरात में 43 हज़ार 665, राजधानी दिल्ली में 37 हज़ार 418 , कर्नाटक में 24 हज़ार 478, उत्तर प्रदेश में 23 हज़ार 802, महाराष्ट्र में 18 हज़ार 530 और तमिलनाडु में 13 हज़ार 534 बच्चे छह सालों में लापता हो गए. इसी अवधि में पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर, नागालैंड में बच्चों के लापता होने का एक भी मामले सामने नहीं आया. वहीं मिज़ोरम में 14, अरुणाचल प्रदेश में 53, त्रिपुरा में 122, सिक्किम में 279 और असम में 2 हज़ार 616 मामले सामने आए. अगर केंद्र शासित प्रदेशों को देखें तो बीते छह साल में लक्ष्यद्वीप और दादरा और नागर हवेली में भी बच्चों के लापता होने का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ. वहीं दमन और दीव में 57, पुडुचेरी में 131, जम्मू-कश्मीर में 269 और चंडीगढ़ में 533 बच्चे लापता हुए. वीडियो देखिये इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के लापता होने के पीछे संगठित रैकेट काम करते हैं जो बाद में बाल श्रम, देह व्यापार, भीख मांगने के धंधे में ढकेल दिया जाता है. इनके अलावा नि:संतान दंपतियों को अवैध तरीक़े से बच्चा गोद वाले रैकेट भी बच्चों के लापता होने की वजह हैं.
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