साल 2019 रहा देश की अर्थव्यस्था के लिए निराशाजनक, GDP 8 से गिरकर 4.5 पर
देश की अर्थव्यस्था के लिहाज से ये साल किसी बुरे सपने जैसा रहा। सरकार की लाख कोशिशों के बाजवूद , भारत की जीडीपी लगातार गिरती रही , और आर्थिक मोर्चे पर भारत , बांग्लादेश से भी पिछड़ गया। हालात इतने गंभीर हैं कि आरबीआई ने 5 बार , जीडीपी के विकास के आंकड़े घटाकर 8 से 4.5 कर दिया। कई सूचकांक बताते हैं , कि देश-विदेश में मांग घटने का , अर्थव्यवस्था पर उलटा असर पड़ा है.
2019 का साल देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद निराशाजनक रहा. देश को आर्थिक मोर्चे पर एक के बाद एक झटके लगते रहे। अर्थव्यवस्था के आठ कोर सेक्टर में लगातार गिरावट होने से भारत बांग्लादेश और नेपाल से भी पिछड़ गया. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक साल 2019 में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था 8.1 फ़ीसदी की रफ़्तार से बढ़ी जबकि नेपाल की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार 6.5 रही.
इस वित्तीय वर्ष के पहले छह महीने में क्रेडिट ग्रोथ यानी कर्ज़ विकास दर शून्य पर पहुंच गई थी. इससे पता चला कि उद्योग और व्यापार बढ़ने के बजाय सिकुड़ रहे हैं क्योंकि क्रेडिट ग्रोथ से ही व्यापार का विकास तय होता है। नवम्बर महीने की रिज़र्व बैंक बुलेटिन में साफ़-साफ़ लिखा था कि इस साल अब तक क्रेडिट ग्रोथ सिर्फ 0.1 फीसदी के रफ़्तार से बढ़ी है जबकि पिछले साल ये 8.2 फीसदी थी। इसके अलावा पिछले साल के मुक़ाबले नई कंपनियों की इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग या आईपीओ इस साल आधे से भी कम रहे हैं। जहा 2018 में 33 हज़ार करोड़ से ज़्यादा के आईपीओ बाज़ार में आये जोकि 2019 में घटकर 13 हज़ार करोड़ से भी कम रह गए हैं. हक़ीक़त में साल 2019 आईपीओ के हिसाब से पिछले पांच साल में सबसे ख़राब रहा। 2019 में 51 हज़ार करोड़ के आईपीओ कंपनियों ने सेबी से मंज़ूरी लेने के बाद भी बाज़ार में नहीं उतारे। अगर छोटी और मंझोली कंपनियों की बात करे पिछले साल 141 छोटी कंपनियों ने 2287 करोड़ रुपए के आईपीओ बाज़ार में उतारे पर इस साल सिर्फ 50 कंपनियों ने 621 करोड़ रुपए के आईपीओ बाज़ार में उतारे। यानि एक तिहाई से भी कम। यह साफ़ है मंदी के इस दौर में छोटी कंपनियां लड़खड़ा रही हैं। वीडियो देखिये इनके अलावा पिछले साल महंगाई ने भी खूब रिकॉर्ड बनाये। खाने पीने की चीज़ों की थोक महंगाई दर नवंबर में 11.08 फीसदी रही जोकि पिछले 71 महीनों का उच्चतम स्तर है। इसका सीधा मतलब है कि आम इंसान की जेब पर खाने की थाली का भार बढ़ गया है। कई महीने से प्याज़ 120 से 150 रुपए किलो के हिसाब से बिक रही है. इसके अलावा बाक़ी सब्ज़ियां भी काफी महंगी बिक रही हैं. आर्थिक मोर्चे पर मिले इन झटकों का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ा है. आर्थिक सुस्ती के बीच सबसे बड़ी चुनौती रोज़गार के मोर्चे पर दिखी है. एनसओ के आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी 45 साल के अपने उच्चतम स्तर पर है और मंदी के दौर में कई लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी. इस बढ़ते संकट की वजह से कई अंतरराष्ट्रीय रेटिंग कंपनियों ने भारत की रेटिंग बार-बार घटाई है.
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इस वित्तीय वर्ष के पहले छह महीने में क्रेडिट ग्रोथ यानी कर्ज़ विकास दर शून्य पर पहुंच गई थी. इससे पता चला कि उद्योग और व्यापार बढ़ने के बजाय सिकुड़ रहे हैं क्योंकि क्रेडिट ग्रोथ से ही व्यापार का विकास तय होता है। नवम्बर महीने की रिज़र्व बैंक बुलेटिन में साफ़-साफ़ लिखा था कि इस साल अब तक क्रेडिट ग्रोथ सिर्फ 0.1 फीसदी के रफ़्तार से बढ़ी है जबकि पिछले साल ये 8.2 फीसदी थी। इसके अलावा पिछले साल के मुक़ाबले नई कंपनियों की इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग या आईपीओ इस साल आधे से भी कम रहे हैं। जहा 2018 में 33 हज़ार करोड़ से ज़्यादा के आईपीओ बाज़ार में आये जोकि 2019 में घटकर 13 हज़ार करोड़ से भी कम रह गए हैं. हक़ीक़त में साल 2019 आईपीओ के हिसाब से पिछले पांच साल में सबसे ख़राब रहा। 2019 में 51 हज़ार करोड़ के आईपीओ कंपनियों ने सेबी से मंज़ूरी लेने के बाद भी बाज़ार में नहीं उतारे। अगर छोटी और मंझोली कंपनियों की बात करे पिछले साल 141 छोटी कंपनियों ने 2287 करोड़ रुपए के आईपीओ बाज़ार में उतारे पर इस साल सिर्फ 50 कंपनियों ने 621 करोड़ रुपए के आईपीओ बाज़ार में उतारे। यानि एक तिहाई से भी कम। यह साफ़ है मंदी के इस दौर में छोटी कंपनियां लड़खड़ा रही हैं। वीडियो देखिये इनके अलावा पिछले साल महंगाई ने भी खूब रिकॉर्ड बनाये। खाने पीने की चीज़ों की थोक महंगाई दर नवंबर में 11.08 फीसदी रही जोकि पिछले 71 महीनों का उच्चतम स्तर है। इसका सीधा मतलब है कि आम इंसान की जेब पर खाने की थाली का भार बढ़ गया है। कई महीने से प्याज़ 120 से 150 रुपए किलो के हिसाब से बिक रही है. इसके अलावा बाक़ी सब्ज़ियां भी काफी महंगी बिक रही हैं. आर्थिक मोर्चे पर मिले इन झटकों का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ा है. आर्थिक सुस्ती के बीच सबसे बड़ी चुनौती रोज़गार के मोर्चे पर दिखी है. एनसओ के आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी 45 साल के अपने उच्चतम स्तर पर है और मंदी के दौर में कई लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी. इस बढ़ते संकट की वजह से कई अंतरराष्ट्रीय रेटिंग कंपनियों ने भारत की रेटिंग बार-बार घटाई है.
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