लॉकडाउन में घर चलाने के लिए दिल्ली-एनसीआर में 44 फ़ीसदी परिवारों ने लिया था कर्ज़: स्टडी
देश में 67 दिनों की तालाबंदी के बाद ज़िन्दगी धीरे धीरे ही सही पटरी पर लौट रही है. इसकी रफ़्तार दोबारा दुरुस्त कब होगी, फिलहाल यह अनुमान लगा पाना मुश्किल है. मगर 67 दिनों के लॉकडाउन में देश में मची तबाही से पर्दा अब उठ रहा है. नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकॉनमिक रिसर्च ने दिल्ली-एनसीआर में कराये गए सर्वेक्षण में दावा किया है कि कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने आम लोगों की जेबें निचोड़ ली है. सर्वे के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान दिल्ली-एनसीआर में 44 फ़ीसदी परिवारों को घर चलाने के लिए कर्ज़ लेना पड़ा.
जून में हुए इस सर्वे के मुताबिक तकरीबन 52 फीसदी छोटे कारोबारियों और दुकानदारों ने अप्रैल-मई में अपना काम बंद रखा जिससे उनकी आमदनी मर गयी. 12 फीसदी कारोबारियों को तो हमेशा के लिए ही अपने काम पर ताला लगाना पड़ गया. अब अनलॉक होने के बावजूद छोटे कारोबारी और दुकानदार रोज़ी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे है. 46 फीसदी कारोबारी कह रहे हैं कि अप्रैल, मई के बाद जून में भी काम बेहद कम है क्योंकि लॉकडाउन का असर अब ज्यादा देखने को मिल रहा है.
यही सर्वे बताता है दिल्ली-एनसीआर में करीब 44 फीसदी परिवारों को लॉकडाउन में क़र्ज़ लेकर घर चलाना पड़ा. इनमें सबसे ज्यादा शामिल थे गरीब दिहाड़ी मज़दूर जिन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. सर्वे के मुताबिक 67 फीसदी दिहाड़ी मजदूर, 43 फीसदी छोटे कारोबारी, 39 फीसदी नौकरी पेशा वाले लोग और 34 फीसदी किसानों ने उधार लेकर लॉकडाउन में अपनी ज़िंदगी काटी. इनके अलावा 14 फीसदी परिवार कई दिनों तक लॉकडाउन में भूखे रहे. इनमें सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर शामिल थे. यह सर्वे बताता है कि लॉकडाउन के चलते दिल्ली-एनसीआर में पांच फीसदी लोगों ने अपनी गंवाई तो 97 फीसदी दिहाड़ी मजदूरों को अप्रैल और मई में कोई काम नहीं मिला. इनमें सबसे ज्यादा वो लोग शामिल थे जो निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे थे. हालांकि इसी लॉकडाउन के दौरान सरकार के लाखों करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया. यह सर्वे उस पैकेज की ज़मीनी सच्चाई भी बताता है. इसके मुताबिक अप्रैल में 32 फीसदी परिवारों को सरकारी मदद के तौर पर पैसे मिले जो मई में घटकर 27 फीसदी रह गया. इसमें भी शहरों में रहने वाले केवल 23 फीसदी परिवार शामिल थे, बाकि पैसा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों को मिला. लोगों ने बताया कि उन्हें अप्रैल में 1750 रुपए और मई में 1000 रुपए दिए गए. चिंता की बात यह है कि कोरोना की मार शहरों में ज्यादा है लेकिन इस आबादी पर सरकार का उतना ध्यान नहीं गया.
यही सर्वे बताता है दिल्ली-एनसीआर में करीब 44 फीसदी परिवारों को लॉकडाउन में क़र्ज़ लेकर घर चलाना पड़ा. इनमें सबसे ज्यादा शामिल थे गरीब दिहाड़ी मज़दूर जिन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. सर्वे के मुताबिक 67 फीसदी दिहाड़ी मजदूर, 43 फीसदी छोटे कारोबारी, 39 फीसदी नौकरी पेशा वाले लोग और 34 फीसदी किसानों ने उधार लेकर लॉकडाउन में अपनी ज़िंदगी काटी. इनके अलावा 14 फीसदी परिवार कई दिनों तक लॉकडाउन में भूखे रहे. इनमें सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर शामिल थे. यह सर्वे बताता है कि लॉकडाउन के चलते दिल्ली-एनसीआर में पांच फीसदी लोगों ने अपनी गंवाई तो 97 फीसदी दिहाड़ी मजदूरों को अप्रैल और मई में कोई काम नहीं मिला. इनमें सबसे ज्यादा वो लोग शामिल थे जो निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे थे. हालांकि इसी लॉकडाउन के दौरान सरकार के लाखों करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया. यह सर्वे उस पैकेज की ज़मीनी सच्चाई भी बताता है. इसके मुताबिक अप्रैल में 32 फीसदी परिवारों को सरकारी मदद के तौर पर पैसे मिले जो मई में घटकर 27 फीसदी रह गया. इसमें भी शहरों में रहने वाले केवल 23 फीसदी परिवार शामिल थे, बाकि पैसा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों को मिला. लोगों ने बताया कि उन्हें अप्रैल में 1750 रुपए और मई में 1000 रुपए दिए गए. चिंता की बात यह है कि कोरोना की मार शहरों में ज्यादा है लेकिन इस आबादी पर सरकार का उतना ध्यान नहीं गया.
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