लॉकडाउन: राज्य सरकार क्यों चाहती है शराब की बिक्री से पाबंदी हटे ?
शराब की दुकानें खोलने के पंजाब सरकार की मांग को गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया है। गृह मंत्रालय का कहना है कि 15 अप्रैल से लागू लॉकडाउन के दूसरे चरण में शराब, गुटखा और तंबाकू की बिक्री पर पूरी तरह रोक है। ऐसे में किसी भी राज्य को शराब की दुकनें खोलने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।
इसपर पंजाब के सीएम अमरेंद्र सिंह ने कहा, “राज्यों के लिए शराब की बिक्री राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। शराब की खपत बंद होने से राज्य को 6,200 करोड़ रूपये का नुकसान हो चुका है। केन्द्र सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मिल रही है और राज्य के पास पैसा नहीं है।”
उन्होंने कहा कि ऐसे में वो सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी संग वीडियो कांफ्रेंसिंग में इस मसले को फिर से उठाएंगे। हालांकि लॉकडाउन के पहले चरण में पूर्वोत्तर के राज्य असम और मेघालय में शराब की बिक्री पर आंशिक छूट दी गई थी लेकिन उसे भी बंद कर दी गई है। हालांकि कई राज्यों ने केन्द्र सरकार से शराब की दुकानें खोलने की इजाज़त मांगी थी लेकिन फिर भी इनकी बिक्री को प्रतिबंधित रखा गया है। आख़िर राज्य सरकारें शराब बिक्री को क्यों तरजीह दे रही है ? सारा खेल अर्थव्यवस्था का है। सरकारें डरी हुई हैं। शराब की बिक्री पर रोक से राजस्व घाटा बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में जब टैक्स का एक-एक पैसा अहमियत रखता है, एक अनुमान के मुताबिक़ रोज़ाना 700 करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है। पेट्रोलियम उत्पादों के बाद शराब की बिक्री राज्य के राजस्व का दूसरा बड़ा साधन है। मौजूदा समय में शराब और पेट्रोलियम दोनों ही जीएसटी के दायरे से बाहर हैं, इसलिए इनकी बिक्री से आने वाला पैसा राज्य सरकारों के खाते में जाता है। हालांकि राज्यों को शराब की बिक्री से ज़्यादा पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री से ज़्यादा कमाई होती है। पेट्रोलियम उत्पादों पर राज्य सरकारें 15-20 प्रतिशत सेल्स टैक्स लगाती है जबकि जबकि शराब पर एक्साइज़ ड्यूटी लगभग 10-15 फीसदी है। अगर 2020 के आम बजट से पहले आरबीआई द्वारा जारी की गई राज्यों के वित्तीय रिपोर्ट पर ग़ौर करें, तो यह दर्शाता है कि राज्य सरकारों ने शराब पर टैक्स बढ़ाकर एक बड़ा राजस्व जमा किया है। साल 2017-18 और 2018-19 में कई राज्यों ने राजस्व की भरपाई के लिए शराब पर लगने वाले टैक्स में वृद्धि की है। साल 2017 में जहां 35 फीसदी राज्यों ने अपने राजस्व का 5-10 फीसदी हिस्सा शराब की बिक्री से की। वहीं एक साल के भीतर ये बढ़कर 10-15 फीसदी तक पहुंच गया। यही नहीं 27 फीसदी राज्य ऐसे हैं जो अपने राजस्व का 15-20 फीसदी हिस्सा शराब की बिक्री से कमाते हैं। स्टेटिस्टा के 2016 के एक अध्ययन के मुताबिक शराब से मिलने वाले राजस्व के मामले में तमिलनाडु, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश टॉप पांच राज्यों में शामिल है। जबकि केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब और दिल्ली, ऐसे राज्य हैं जो शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व पर अत्यधिक निर्भर हैं क्योंकि इनके पास राजस्व कमाने का दूसरा इतना बड़ा साधन नहीं है।
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उन्होंने कहा कि ऐसे में वो सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी संग वीडियो कांफ्रेंसिंग में इस मसले को फिर से उठाएंगे। हालांकि लॉकडाउन के पहले चरण में पूर्वोत्तर के राज्य असम और मेघालय में शराब की बिक्री पर आंशिक छूट दी गई थी लेकिन उसे भी बंद कर दी गई है। हालांकि कई राज्यों ने केन्द्र सरकार से शराब की दुकानें खोलने की इजाज़त मांगी थी लेकिन फिर भी इनकी बिक्री को प्रतिबंधित रखा गया है। आख़िर राज्य सरकारें शराब बिक्री को क्यों तरजीह दे रही है ? सारा खेल अर्थव्यवस्था का है। सरकारें डरी हुई हैं। शराब की बिक्री पर रोक से राजस्व घाटा बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय में जब टैक्स का एक-एक पैसा अहमियत रखता है, एक अनुमान के मुताबिक़ रोज़ाना 700 करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है। पेट्रोलियम उत्पादों के बाद शराब की बिक्री राज्य के राजस्व का दूसरा बड़ा साधन है। मौजूदा समय में शराब और पेट्रोलियम दोनों ही जीएसटी के दायरे से बाहर हैं, इसलिए इनकी बिक्री से आने वाला पैसा राज्य सरकारों के खाते में जाता है। हालांकि राज्यों को शराब की बिक्री से ज़्यादा पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री से ज़्यादा कमाई होती है। पेट्रोलियम उत्पादों पर राज्य सरकारें 15-20 प्रतिशत सेल्स टैक्स लगाती है जबकि जबकि शराब पर एक्साइज़ ड्यूटी लगभग 10-15 फीसदी है। अगर 2020 के आम बजट से पहले आरबीआई द्वारा जारी की गई राज्यों के वित्तीय रिपोर्ट पर ग़ौर करें, तो यह दर्शाता है कि राज्य सरकारों ने शराब पर टैक्स बढ़ाकर एक बड़ा राजस्व जमा किया है। साल 2017-18 और 2018-19 में कई राज्यों ने राजस्व की भरपाई के लिए शराब पर लगने वाले टैक्स में वृद्धि की है। साल 2017 में जहां 35 फीसदी राज्यों ने अपने राजस्व का 5-10 फीसदी हिस्सा शराब की बिक्री से की। वहीं एक साल के भीतर ये बढ़कर 10-15 फीसदी तक पहुंच गया। यही नहीं 27 फीसदी राज्य ऐसे हैं जो अपने राजस्व का 15-20 फीसदी हिस्सा शराब की बिक्री से कमाते हैं। स्टेटिस्टा के 2016 के एक अध्ययन के मुताबिक शराब से मिलने वाले राजस्व के मामले में तमिलनाडु, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश टॉप पांच राज्यों में शामिल है। जबकि केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब और दिल्ली, ऐसे राज्य हैं जो शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व पर अत्यधिक निर्भर हैं क्योंकि इनके पास राजस्व कमाने का दूसरा इतना बड़ा साधन नहीं है।
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