CAA पर असम के सीएम पीछे हटे, कहा- कोई विदेशी असम में नहीं बसेगा
विवादित नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ देश के अलग-अलग हिस्सों में आंदोलनों की कमान महिलाओं के हाथों में है. दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू, गुवाहाटी समेत कई शहरों में महिलाएं इस क़ानून को रद्द करने की मांग लेकर सड़कों पर हैं.
विवादित नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाक़े में हर उम्र की औरतों ने तक़रीबन 20 दिन से मोर्चा संभाल रखा है. सभी की नज़रें इस आंदोलन पर टिकी हुई हैं क्योंकि सर्द रात में भी अपने बच्चों के साथ डटी महिलाएं पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. हालांकि महिलाओं की अगुवाई वाला यह विरोध प्रदर्शन एक मात्र नहीं है. देश के तमाम शहरों में महिलाएं अपने घरों से बाहर निकल आई हैं और इस क़ानून को वापस लिए जाने की मांग कर रही हैं.
ऐसा ही एक विरोध प्रदर्शन 21 दिसंबर को गुवाहाटी में असम की महिलाओं ने किया था. हज़ारों की तादाद में जुटी महिलाओं ने इस क़ानून को सांप्रदायिक और असमिया संस्कृति के ख़िलाफ़ बताते हुए विरोध किया था. यहां महिलाओं ने साफ़ किया था कि क़ानून वापस नहीं होने तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा. असम में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन से राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद बैकफुट पर हैं. उन्हें यह डर सता रहा है कि इस क़ानून के चलते कहीं राज्य में बीजेपी का सफ़ाया न हो जाए. लिहाज़ा, प्रदर्शनकारियों से वो बार-बार भावुक अपील कर रहे हैं. 2 जनवरी को उन्होंने कहा कि असम का बेटा होने के नाते वो किसी भी विदेशी प्रवासी को राज्य में नहीं बसने देंगे. सर्बानंद सोनोवाल का यह बयान नागरिकता क़ानून के प्रावधानों के उलट है क्योंकि इस क़ानून के तहत असम में अवैध तरीक़े से घुसने वाले बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता मिलने का अधिकार है और इनकी संख्या लाखों में है. सवाल यह है कि नागरिकता मिलने के बाद लाखों बांग्लादेशी हिंदुओं को अगर असम में नहीं तो फिर कहां बसाया जाएगा.
ऐसा ही एक विरोध प्रदर्शन 21 दिसंबर को गुवाहाटी में असम की महिलाओं ने किया था. हज़ारों की तादाद में जुटी महिलाओं ने इस क़ानून को सांप्रदायिक और असमिया संस्कृति के ख़िलाफ़ बताते हुए विरोध किया था. यहां महिलाओं ने साफ़ किया था कि क़ानून वापस नहीं होने तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा. असम में लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन से राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद बैकफुट पर हैं. उन्हें यह डर सता रहा है कि इस क़ानून के चलते कहीं राज्य में बीजेपी का सफ़ाया न हो जाए. लिहाज़ा, प्रदर्शनकारियों से वो बार-बार भावुक अपील कर रहे हैं. 2 जनवरी को उन्होंने कहा कि असम का बेटा होने के नाते वो किसी भी विदेशी प्रवासी को राज्य में नहीं बसने देंगे. सर्बानंद सोनोवाल का यह बयान नागरिकता क़ानून के प्रावधानों के उलट है क्योंकि इस क़ानून के तहत असम में अवैध तरीक़े से घुसने वाले बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता मिलने का अधिकार है और इनकी संख्या लाखों में है. सवाल यह है कि नागरिकता मिलने के बाद लाखों बांग्लादेशी हिंदुओं को अगर असम में नहीं तो फिर कहां बसाया जाएगा.
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