भाजपा का सिमटता जनाधार

by Ankush Choubey 4 years ago Views 2846

BJP's limited public base
साल 2019 भाजपा के लिए एक फ़िल्म के टाइटल जैसा रहा। कभी ख़ुशी कभी ग़म। कहाँ ख़ुशी कहाँ ग़म ये आप देखिए। लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत तो मिला लेकिन राज्यों में भाजपा हारती चली जा रही है। क्या कारण है है इसपर आप ख़ुद ग़ौर कीजिए। पहला सवाल क्या लोकल मुद्दों पर भाजपा हार जाती है। क्या वोटर को ये समझ आ गया है कि जहाँ तक स्थानीय मुद्दों का सवाल है वहाँ भाजपा फ़ेल हो रही है। हाल ही में झारखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण बना है।

मार्च 2018 से लेकर दिसम्बर 2019 तक कुल 17 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी और उसके सहयोगी महज़ चार राज्यों में सरकार बना पाई और इन चाक में से तीन राज्य पूर्वोत्तर के हैं। इसी दौरान कांग्रेस और उसके सहयोगी 5 राज्यों में सरकार बनाने में कामयाब हुए और ये सभी पांच राज्य हिंदी हार्ट लैंड के थे जो कि पहले बीजेपी के पास थे। जबकि बाकि के आठ राज्यों में क्षेत्रिया दलों ने सरकार बनाई।


मार्च 2018 में त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड विधानसभा  चुनावों के नतीजे आए। जहां त्रिपुरा में बीजेपी ने अपने बूते पर सरकार बनाई जबकि मेघालय में कोनराड संगमा की एनपीपी ने सरकार बनाईं जिसे बीजेपी के दो विधायकों ने समर्थन दिया और सरकार में शामिल हो गई। नागालैंड में एनडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनी जिसे बीजेपी के 12 विधायकों ने समर्थन दिया और सरकार में शामिल हुई। मई 2018 में कर्णाटक में चुनाव हुआ और यहाँ से बीजेपी के हाथों सत्ता फिसल गई और कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार बनी। बाद में जो हुआ आप जानते हैं।

दिसंबर में 5 राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव हुए। जहाँ हिंदी हार्टलैंड के तीन बड़े राज्यों में बीजेपी के हाथों से सत्ता फिसल गई और मध्य प्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी जबकि तेलंगाना में टीआरएस और मिजोरम में मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार बनी और यहाँ एक मात्र बीजेपी का विधायक जीता और उसने सरकार को समर्थन दिया इस प्रकार से बीजेपी मिजोरम सरकार में शामिल हो गई।

फिर हुए लोकसभा चुनाव जहाँ अबकी बार फिर मोदी सरकार के नारे के साथ बीजेपी ने केंद्र में 303 सीटों के साथ वापसी की। लेकिन इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनाव हुए और राज्यों की जनता ने फिर बीजेपी को लगभग नकार दिया। इन चार राज्यों में सिर्फ अरुणचल प्रदेश में बीजेपी ने अपने बूते पर सरकार बनाई। जबकि आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस जीती और जगन मोहन रेड्डी पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। ओडिशा में नवीन पटनायक लगातार पांचवीं बार मुख्यमंत्री बने और बीजेडी की सत्ता में वापसी हुई। सिक्किम में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार बनी जिसे बीजेपी ने अपना समर्थन दिया और प्रेम सिंह तमांग राज्य के मुख्यमंत्री बने।

5 अगस्त को केंद्र की बीजेपी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाते हुए राज्य को दो केंद्र शासित राज्यों में में बाँटने का फैसला किया एक बना जम्मू कश्मीर दूसरा केंद्र शासित प्रदेश बना लद्दाख और इसके बाद अक्टूबर महीने में तब के चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई ने बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि ज़मीन विवाद में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। फिर अक्टूबर में महारष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई। फिर क्या था पूरे चुनाव प्रचार में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने गाजे-बाजे के साथ अनुच्छेद 370 का मुद्दा जमकर उछाला और बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि ज़मीन विवाद में अंतिम फैसला आने से पहले ही बोल दिया की राम मंदिर बनने जा रहा है। बीजेपी को लगा की ये चुनाव वो बड़ी आसानी से इन मुद्दों पर जीत जायेंगे जब नतीजे आए तो बीजेपी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। हरियाणा में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और बीजेपी ने जोड़-तोड़ शुरू कर दिया जिस दुष्यंत चौटाला को और उसके पूरे परिवार को बीजेपी ने भ्रष्टाचारी कहा उसी की पार्टी जेजेपी के साथ हाथ मिला लिया। जैसे ही बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला के साथ सरकार बनाने का एलान किया उसके 24 घंटे में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद दुष्यंत चौटाला के पिता अभय सिंह चौटाला को जेल से रिहा कर दिया गया।

हरियाणा में तो जैसे-तैसे सरकार बन गई लेकिन महाराष्ट्र की राजनीती के इतिहास में पहली बार कांग्रेस-शिवसेना और एनसीपी ने गठबंधन कर लिया।  इस गठबंधन की कॉमन मिनमम प्रोग्राम पर चर्चा पूरी हो ही गयी थी कि शरद पवार ने गेम खेल दिया। अजित पवार ने पलटी मारी और रातों रात राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया सुबह सुबह शपत ग्रहण होगया , देवेंद्र फडणवीस ने सीएम तो अजित पवार ने डेपुटी सीएम पद की शपथ ले ली। लेकिन ये सब ड्रामा साबित हुआ और शरद पवार राजनीति के बड़े चाणक्य बन गए। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे राज्य के 19वें मुख्यमंत्री बने। ठाकरे परिवार से उद्धव ठाकरे पहले ऐसे शख्स हैं, मुख्यमंत्री बने हैं। बीजेपी की चौतरफा किरकिरी हुयी।

कर्नाटक में जुलाई महीने में जेडीएस और कांग्रेस के 17 विधायकों ने कुमारस्वामी सरकार से बगावत कर सरकार गिरा दी थी। बाद में बीजेपी ने विधानसभा में बहुमत साबित कर बीएस येदियुरप्पा ने नेतृत्व में सरकार बनाई। फिर 5 दिसंबर में कर्नाटक में 15 सीटों पर उपचुनाव हुए और इन उपचुनावों में बीजेपी ने 15 में से 12 सीटें जीतकर मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की कुर्सी बचा ली।

वीडियो देखिये

साल का आखिरी चुनाव हाल ही में झारखंड में हुआ और फिर CAA और NRC, जम्मू कश्मीर में धारा 370 और राम मंदिर के नाम पर पीएम मोदी और अमित शाह ने खूब वोट बटोरने की कोशिश की लेकिन यहाँ जब नतीजे आए तो जनता ने बीजेपी को सिरे से ख़ारिज कर दिया। झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन को बहुमत से ज्यादा सीटें मिलीं और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने। और जनता ने पीएम मोदी और अमित शाह को सीधा सन्देश दिया कि मंदिर और जम्मू कश्मीर के मुद्दों से ज्यादा युवाओं को रोज़गार, भ्रष्टाचार, आर्थिक मंदी और महिलाओं की सुरक्षा ज़्यादा ज़रूरी लग रही है।

गोया के, 2019 खत्म होते-होते बीजेपी के हांथो से एक और राज्य निकल गया। मार्च 2018 तक देश की राज्य सरकारों का नक्शा कुछ इस प्रकार से था जहाँ तकरीबन 70 फीसदी आबादी पर भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा था लेकिन 2019 आते-आते देश का नक्शा राज्यों में कुछ यूँ बदला कि अब महज़ 35 फीसदी आबादी पर बीजेपी की सत्ता बची है।

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