बॉयकॉट चाइना: क्या भारतीय कंपनियों का भी विरोध करेंगे ?
लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सेना से हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों की मौत से देश शोक में है। इस घटना के बाद चीनी उत्पादों का बहिष्कार की मांग की जा रही है। बीते कुछ सालों से चीनी सामानों से भारतीय बाज़ार पटा पड़ा है। हक़ीकत ये भी है कि कई देसी/विदेशी कंपनियों में चीन का पैसा लगा हुआ है। ऐसी कंपनियों को क्या माना जाए, भारतीय, चीनी या विदेशी ? अब सवाल उठता है कि चीन का आर्थिक बहिष्कार सच में किया जा सकता है ?
आंकड़े बताते हैं कि चीन की करीब दो दर्जन कंपनियों का भारतीय स्टार्ट-अप्स में भारी निवेश है। इनमें अलीबाबा, बाइटडांस और टेंसेंट जैसी कुछ बड़ी कंपनियां शामिल है। आंकड़ों के मुताबिक़ भारत की 18 बड़ी कंपनियों में चीनी निवेशकों ने अरबों डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया है।
मार्च 2020 में जारी गेटवे हाउस की रिपोर्ट के मुताबिक़ चीनी वीसी यानि वेंचर कैपिटलिस्ट और चीनी टेक कंपनियों ने भारतीय स्टार्ट-अप्स में करीब चार अरब डॉलर का निवेश किया है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक कमोबेश 75 भारतीय स्टार्टि-अप्स में चीनी कंपनियों का अरबों डॉलर का निवेश है। अकेले स्नैपडील में चीनी कंपनी अलीबाबा और एफआईएच मोबाइल लिमिटेड ने 700 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है। इसके अलावा फूड डिलिवरी कंपनी स्विग्गी में 500 मिलियन डॉलर, ओला में 500 मिलियन डॉलर, पेटीएम में 400 मिलियन डॉलर और ज़ोमेटो में 100 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है। वहीं ओयो रूम्स में चीन का 100 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश है। इसी तरह पेटीएम मॉल में 150 मिलियन डॉलर, मोबाइल मैसेजिंग प्लेटफॉर्म हाइक में 150 मिलियन डॉलर, बिग बास्केट में अलीबाबा और टीआर कैपिटल ने मिलकर 250 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है। इसके अलावा पॉलिसी बाज़ार, मेक माई ट्रिप में भी चीनी निवेशकों ने मोटी रक़म लगा रखी है। ज़ाहिर है, इससे साफ़ है कि चीन, भारतीय आर्थिक जगत में अपनी पैठ बना चुका है जिसका आधिकारिक तौर पर विरोध करने से उल्टा भारत को ही नुकसान हो सकता है।
मार्च 2020 में जारी गेटवे हाउस की रिपोर्ट के मुताबिक़ चीनी वीसी यानि वेंचर कैपिटलिस्ट और चीनी टेक कंपनियों ने भारतीय स्टार्ट-अप्स में करीब चार अरब डॉलर का निवेश किया है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक कमोबेश 75 भारतीय स्टार्टि-अप्स में चीनी कंपनियों का अरबों डॉलर का निवेश है। अकेले स्नैपडील में चीनी कंपनी अलीबाबा और एफआईएच मोबाइल लिमिटेड ने 700 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है। इसके अलावा फूड डिलिवरी कंपनी स्विग्गी में 500 मिलियन डॉलर, ओला में 500 मिलियन डॉलर, पेटीएम में 400 मिलियन डॉलर और ज़ोमेटो में 100 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है। वहीं ओयो रूम्स में चीन का 100 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश है। इसी तरह पेटीएम मॉल में 150 मिलियन डॉलर, मोबाइल मैसेजिंग प्लेटफॉर्म हाइक में 150 मिलियन डॉलर, बिग बास्केट में अलीबाबा और टीआर कैपिटल ने मिलकर 250 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है। इसके अलावा पॉलिसी बाज़ार, मेक माई ट्रिप में भी चीनी निवेशकों ने मोटी रक़म लगा रखी है। ज़ाहिर है, इससे साफ़ है कि चीन, भारतीय आर्थिक जगत में अपनी पैठ बना चुका है जिसका आधिकारिक तौर पर विरोध करने से उल्टा भारत को ही नुकसान हो सकता है।
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