नागरिकता क़ानून: राज्य सरकारों ने खोला केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा, देश संवैधानिक संकट की ओर?
धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाले विवादित क़ानून के ख़िलाफ़ राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है. कई राज्य सरकारें इस क़ानून के विरोध में खड़ी हैं जिसकी वजह से इस क़ानून को अखिल भारतीय स्तर पर लागू करवा पाना केंद्र सरकार की गले की फांस बन गया है. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या देश संवैधानिक संकट की तरफ बढ़ रहा है.
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार और ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों के बीच आर-पार का संघर्ष छिड़ गया है. जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां जारी विरोध के चलते इस क़ानून को लागू करवाना केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है.
राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में इस विवादित क़ानून को लागू करने से कांग्रेस पार्टी साफ मना कर चुकी है. महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं ने भी इस क़ानून का विरोध किया है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी इस क़ानून की खुलकर मुख़ालिफ़त कर चुके हैं. यानी महाराष्ट्र में भी मामला फंसा हुआ है. इनके अलावा केरल की एलडीएफ सरकार और पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार भी इस क़ानून के ख़िलाफ़ खड़ी है. उग्र प्रदर्शनों के चलते बिहार की नीतीश सरकार और ओडिशा की बीजद सरकार भी अब एनआरसी लागू नहीं करने का हवाला देकर अपना विरोध तेज़ कर रही है. पूर्वोत्तर के सात राज्यों में भारी विरोध के चलते पांच राज्यों को इस क़ानून में पहले ही छूट दी जा चुकी है. असम और त्रिपुरा के कई हिस्सों में यह क़ानून लागू होना है क्योंकि यहां बीजेपी की सरकार है लेकिन जनता यहां जमकर विरोध कर रही है. अगर झारखंड की सत्ता बीजेपी के हाथ से फिसलती है तो यहां भी कांग्रेस के सहयोग से बनने वाली सरकार इस क़ानून के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल सकती है. वीडियो देखिये यानी कम से कम 11 राज्य इस क़ानून के ख़िलाफ़ खड़े हैं और कुछ राज्यों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि नागरिकता तय करना राज्यों का काम नहीं बल्कि केंद्र का विशेषाधिकार है और राज्यों को क़ानून मानना पड़ेगा. मगर सवाल उठ रहे हैं कि बिना राज्य सरकारों के समर्थन के केंद्र सरकार इस क़ानून को कैसे लागू करवाएगी.
राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में इस विवादित क़ानून को लागू करने से कांग्रेस पार्टी साफ मना कर चुकी है. महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं ने भी इस क़ानून का विरोध किया है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी इस क़ानून की खुलकर मुख़ालिफ़त कर चुके हैं. यानी महाराष्ट्र में भी मामला फंसा हुआ है. इनके अलावा केरल की एलडीएफ सरकार और पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार भी इस क़ानून के ख़िलाफ़ खड़ी है. उग्र प्रदर्शनों के चलते बिहार की नीतीश सरकार और ओडिशा की बीजद सरकार भी अब एनआरसी लागू नहीं करने का हवाला देकर अपना विरोध तेज़ कर रही है. पूर्वोत्तर के सात राज्यों में भारी विरोध के चलते पांच राज्यों को इस क़ानून में पहले ही छूट दी जा चुकी है. असम और त्रिपुरा के कई हिस्सों में यह क़ानून लागू होना है क्योंकि यहां बीजेपी की सरकार है लेकिन जनता यहां जमकर विरोध कर रही है. अगर झारखंड की सत्ता बीजेपी के हाथ से फिसलती है तो यहां भी कांग्रेस के सहयोग से बनने वाली सरकार इस क़ानून के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल सकती है. वीडियो देखिये यानी कम से कम 11 राज्य इस क़ानून के ख़िलाफ़ खड़े हैं और कुछ राज्यों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि नागरिकता तय करना राज्यों का काम नहीं बल्कि केंद्र का विशेषाधिकार है और राज्यों को क़ानून मानना पड़ेगा. मगर सवाल उठ रहे हैं कि बिना राज्य सरकारों के समर्थन के केंद्र सरकार इस क़ानून को कैसे लागू करवाएगी.
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