कोरोनावायरस बनाम ग़रीबी, क्या है ज्यादा ख़तरनाक ?

by Abhishek Kaushik 4 years ago Views 297540

Coronavirus vs Poverty, what's more dangerous?
पूरे विश्व को हिला देने वाली कोरोनावायरस की महामारी से सभी देश परेशान है। सभी देश अपनी अपनी कोशिशों में लगे है जिससे इस महामारी से लड़ा जाए। लेकिन भारत में मजदूरों के लिए कोरोना वायरस से भी ज्यादा बड़ा खतरा है ग़रीबी और भूक जिसे सरकार संभालने में नाकाम साबित होती दिख रही है।


स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (स्वान) नाम के एक एनजीओ ने लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों पर एक सर्वे किया है। यह सर्वे 25 मार्च से 14 अप्रैल के बीच हुआ, जो करीब 11 हज़ार प्रवासी मजदूरों पर किया गया है। इस सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन में 89 फीसदी प्रवासी मजदूरों को उनके एंप्लॉयर ने वेतन का भुगतान नहीं किया है।


इस सर्वे में ये साफ़ ज़ाहिर है की गरीबी और भुकमरी इन मजदूरों के लिए कोरोना से ज्यादा बड़ा खतरा है। इसमें राज्य और केंद्र सरकार दोनों की लापरवाही झलकती है। 11 हजार प्रवासी मजदूरों में से केवल 51 फीसदी ऐसे है जिनके पास 1 दिन से कम का राशन बचा है जबकि 72 फीसदी ने बताया कि उनका राशन दो दिन में खत्म हो जाएगा। वहीं रुपए और खाने के कम होने के कारण कुछ मजदूर कम खाना खा रहे हैं जबकि कुछ भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। 

अगर सर्वे के आंकड़ों पर नज़र डालें तो लॉकडाउन के पहले दो सप्ताह में केवल 1 फीसदी प्रवासी मजदूरों को ही मिल सका सरकारी राशन। और यही आंकड़ा 3 सप्ताह के लॉकडाउन में केवल 4 फीसदी तक पंहुचा।

96 फीसदी ऐसे मजदूर थे जिन्हें सरकार की ओर से कोई राशन का सामान नहीं मिला था। वहीं 70 फीसदी मजदूरों को किसी भी प्रकार का पका हुआ खाना नहीं मिल पाया।

बात अगर मजदूरों के पास जमा राशि की करें तो 78 फीसदी मजदूरों के पास 300 से कम रुपए बचे थे। और इस रिपोर्ट में 89 फीसदी ऐसे मजदूर थे जिनको लॉकडाउन के दौरान अपने मालिक यानी एंप्लायर से कोई वेतन नहीं मिला।

सर्वे में शामिल 11,159 प्रवासी मजदूरों में से 17 फीसदी रोज़ के वेतनभोगी हैं यानी अपने गुजर बसर के लिए वो दिहाड़ी पर काम करते है।  मतलब ज्यादातर फैक्ट्री या निर्माण कार्यों में दिहाड़ी मजदूर हैं। वहीं इनमें से 8 फीसदी घरेलू कार्य और ड्राइवर जैसे पेशे के जरिए मजदूरी पाते हैं। इसके अलावा 8 फीसदी ऐसे है जो छोटा मोटा अपना कारोबार करके जीवन गुज़ारा करते हैं। इनका औसतन रोज़ाना का वेतन 402 रुपए है।

पूछे जाने पर ज्यादातर मजदूरों ने बताया की इन्हे अपने बिल्डर या कंपनी के नाम की भी जानकारी नहीं है, जिसके लिए वे काम करते थे। ये मजदूर केवल उन लोगों को जानते है जिनके साथ इनको ठेकेदार काम करने के लिए लाए थे या ये केवल अपने ठेकेदारों के नाम जानते हैं।

पूछे जाने पर मजदूरों ने बताया की वे लोग अपने ठेकेदारों या मालिकों से किसी भी तरह संपर्क नहीं कर पा रहे है और उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। अब ऐसे में ये मजदूर मजबूर है और पूरी तरह सरकार पर निर्भर है लेकिन सरकार की तरफ से इनको ख़ास मदद पहुँचती नहीं दिखाई दे रही है।

Latest Videos

Latest Videos

Facebook Feed