नागरिकता कानून पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच आर-पार की लड़ाई

by Shahnawaz Malik 4 years ago Views 1552

Cross-border fight between the central government
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है. पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल के बाद अब उन राज्यों से भी इस क़ानून के ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी हैं जहां बीजेपी की सरकार नहीं है. राज्य सरकारें नागरिकता क़ानून को अवैध बताते हुए इसे राज्यों में लागू करने से इनकार कर रही हैं…

नागरिकता क़ानून पर केंद्र सरकार और राज्यों के बीच संघर्ष तेज़ हो गया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर हमला बोला. उन्होंने कहा कि संसद से बिल पास होने और क़ानून बन जाने से उन्हें इसे मानने के लिए केंद्र सरकार मजबूर नहीं कर सकती. ममता बनर्जी साफ़ कर चुकी हैं कि नागरिकता क़ानून और एनआरसी को वह पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देंगी. उनकी पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर कर दी है.


केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने कहा, ‘यह क़ानून भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र पर हमला है. धर्म के आधार पर नागरिकता देने का फ़ैसला संविधान को ख़ारिज करना है. यह फ़ैसला सिर्फ हमारे देश को पीछे ले जाएगा. हमारी मेहनत और संघर्ष से हासिल की गई आज़ादी ख़तरे में है.’

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘धर्म के आधार पर लोगों को बांटने वाला कोई भी क़ानून ग़ैरक़ानूनी, अनैतिक और असंवैधानिक है. भारत की ताक़त इसकी विविधता है और नागरिकता क़ानून संविधान के मूलभूत सिंद्धात का उल्लंघन करता है. लिहाज़ा, कांग्रेस सरकार यह क़ानून पंजाब में लागू नहीं होने देगी.’

महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बालासाहेब थोराट ने भी इसकी मुख़ालिफ़त की है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने साफ़ किया है कि उनकी वही स्टैंड होगा जो पार्टी का होगा.

वहीं भोपाल से कांग्रेस विधायक आरिफ़ मसूद ने सीएम कमलनाथ से मांग की है कि पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल की तर्ज़ पर मध्यप्रदेश सरकार को भी इस क़ानून को रिजेक्ट करना चाहिए, वरना वो विधानसभा सदस्य के पद से इस्तीफ़ा दे देंगे.

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वहीं जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने भी ट्वीट किया है, ‘संसद में बहुमत साबित हो चुका है. अब न्यायपालिका से इतर देश की आत्मा को बचाने की ज़िम्मेदारी 16 ग़ैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों पर है. इन राज्यों को नागरिकता क़ानून को अपने यहां लागू करना है. पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री नागरिकता संशोधन बिल और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न को मना कर चुके हैं. अब बारी अन्य मुख्यमंत्रियों की है कि वे अपना पक्ष साफ़ करें.’

वहीं क़ानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि नागरिकता तय करना राज्य नहीं केंद्र सरकार का विषय है. ऐसे में राज्य सरकारें यह क़ानून लागू नहीं करने के लिए क्या क़दम उठाएंगी, यह देखना बाक़ी है.

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