जेलों में बंद हर तीसरा विचाराधीन क़ैदी दलित या आदिवासी: एनसीआरबी
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने देश की जेलों में बंद क़ैदियों की जातीय पहचान से जुड़े आंकड़े जारी किए हैं. ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि देश की जेलों में बंद हर तीसरा विचाराधीन क़ैदी दलित या आदिवासी है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने देश की 1339 जेलों में बंद क़ैदियों की धार्मिक और जातीय पहचान का आंकड़ा जारी किया है. ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर तक 2018 तक देश की जेलों में बंद कुल विचाराधीन क़ैदियों की तादाद 3 लाख 23 हज़ार 537 है. अगर इन क़ैदियों की जातीय पृष्ठभूमि देखें तो सबसे ज़्यादा 67,050 विचाराधानी क़ैदी दलित और 35,102 विचाराधीन क़ैदी आदिवासी समुदाय के हैं. इनके अलावा ओबीसी समुदाय के 1 लाख 3 हज़ार 997 विचारधानी क़ैदी देशभर की जेलों में बंद हैं.
अब अगर एससी, एसटी समुदायों के विचाराधीन क़ैदियों की संख्या जोड़ दी जाए तो यह 1 लाख 2 हज़ार 152 तक पहुंच जाती है. इससे पता चलता है कि जेलों में इनकी संख्या लगभग एक तिहाई है जबकि देश में इन दोनों समुदायों की आबादी 25 फ़ीसदी है. 2011 में हुए जातिवार जनगणना के मुताबिक देश में अनुसूचित जाति के लोग 16.6 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के लोग 8.6 फीसदी हैं. अगर राज्यों की बात की जाए तो सबसे ज्यादा 21,595 दलित और आदिवासी बतौर विचाराधीन क़ैदी उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद हैं. वहीं मध्य प्रदेश में 10,845, बिहार में 8766, झारखंड में 7051, ओडिशा में 6838, राजस्थान में 6180, छत्तीसगढ़ में 5932, पंजाब में 5686, हरियाणा में 3654 और दिल्ली में 3594 विचाराधीन क़ैदी जेलों में बंद हैं जो दलित और आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। सिर्फ दलित विचाराधीन क़ैदियों की बात करें तो सबसे ज़्यादा 17931 क़ैदी उत्तर प्रदेश में बंद हैं. वहीं सबसे ज्यादा 5702 आदिवासी मध्यप्रदेश की जेलों में अपने मुकदमों की सुनवाई का इंतज़ार कर रहे हैं। देश में ऐसे क़ैदियों की संख्या हज़ारों में है जो सालों से सलाखों के पीछे रहने को मजबूर है और अपनी सुनवाई का इंतज़ार कर रहे हैं. इनमें ज्यादातर लोग गरीब और अशिक्षित हैं जो अपने लिए एक अदद वकील भी नहीं जुटा पाते.
अब अगर एससी, एसटी समुदायों के विचाराधीन क़ैदियों की संख्या जोड़ दी जाए तो यह 1 लाख 2 हज़ार 152 तक पहुंच जाती है. इससे पता चलता है कि जेलों में इनकी संख्या लगभग एक तिहाई है जबकि देश में इन दोनों समुदायों की आबादी 25 फ़ीसदी है. 2011 में हुए जातिवार जनगणना के मुताबिक देश में अनुसूचित जाति के लोग 16.6 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के लोग 8.6 फीसदी हैं. अगर राज्यों की बात की जाए तो सबसे ज्यादा 21,595 दलित और आदिवासी बतौर विचाराधीन क़ैदी उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद हैं. वहीं मध्य प्रदेश में 10,845, बिहार में 8766, झारखंड में 7051, ओडिशा में 6838, राजस्थान में 6180, छत्तीसगढ़ में 5932, पंजाब में 5686, हरियाणा में 3654 और दिल्ली में 3594 विचाराधीन क़ैदी जेलों में बंद हैं जो दलित और आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। सिर्फ दलित विचाराधीन क़ैदियों की बात करें तो सबसे ज़्यादा 17931 क़ैदी उत्तर प्रदेश में बंद हैं. वहीं सबसे ज्यादा 5702 आदिवासी मध्यप्रदेश की जेलों में अपने मुकदमों की सुनवाई का इंतज़ार कर रहे हैं। देश में ऐसे क़ैदियों की संख्या हज़ारों में है जो सालों से सलाखों के पीछे रहने को मजबूर है और अपनी सुनवाई का इंतज़ार कर रहे हैं. इनमें ज्यादातर लोग गरीब और अशिक्षित हैं जो अपने लिए एक अदद वकील भी नहीं जुटा पाते.
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