डॉक्टर परेशान, 'फूल नहीं तनख़्वाह चाहिए'

by GoNews Desk 3 years ago Views 6135

Doctors In Trouble, No Need Flowers, Need Salary
जान है तो जहाँ है।

डॉक्टर ही भगवान है। 


लेकिन ख़बर ये है की डॉक्टर परेशान है।

प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया है।

लेकिन दिल्ली के दो अस्पतालों के डॉक्टर्स को तीन महीने से तनख्वाह नहीं मिली है।

जब कोरोना शुरू हुआ था तो कुछ जगहों पर पड़ोसियों ने किस तरह से कुछ डॉक्टरों को तंग किया। फिर कहीं पिटाई हुई, कहीं पत्थर चले। फिर सरकार को लगा कि ज़्यादती हो रही है। तो एक दिन ये तय किया गया कि इनपर पत्थर नहीं फूल बरसाए जाने चाहिए। तुरंत करोड़ों रुपय के फूलों का इन्तज़ाम हुआ और हवाई जहाज़ और हेलिकॉपटरों से फूल बरसाए गए।  फूल बरसाने में हुए ख़र्चे में से थोड़ा सा पैसा निकाल कर डॉक्टरों की तनखाह दी जा सकती थी। 

लेकिन ख़बर ये है दिल्ली के दो अस्पताल के डॉक्टर्स को तीन महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। तेलंगाना जूनियर डॉक्टर्स असोसिएशन ने कहा है कि वे हैदराबाद में गांधी हॉस्पिटल के डॉक्टर पर कथित हमले के ख़िलाफ़ हड़ताल जारी रखेंगे। पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना के सागर दत्त मेडिकल कॉलेज में कल जूनियर डॉक्टर्स ने अस्पताल के कोविड अस्पताल घोषित होने के बाद बाकी मरीज़ों का ठीक ढंग से इलाज न होने को लेकर विरोध प्रदर्शन किया।

कोरोना महामारी के समय में डॉक्टरों को लेकर सबकी अलग अलग राय हो सकती है। ये एक अलग बहस का विषय हो सकता है। लेकिन ये तो सच है कि देश में वैसे ही डॉक्टरों की कमी है। ऊपर से बदसलूकी। ये एक बड़ा कारण है कि हर साल डॉक्टरों की एक बड़ी संख्या विदेश जाकर बस जाती है। किस देश में कितने डॉक्टर भारत से जाकर बस रहे हैं।

जहाँ डब्ल्यूएचओ के स्टैंडर्ड के हिसाब से एक हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए वहाँ भारत के अलग-अलग राज्यों में ये संख्या डब्ल्यूएचओ के स्टैंडर्ड से कोसों दूर है। बिहार में 28 हज़ार से ज़्यादा। उत्तर प्रदेश में क़रीब 20 हज़ार। झारखंड में 18 हज़ार से ज़्यादा, मध्य प्रदेश में 17 हज़ार से ज़्यादा महाराष्ट्र में क़रीब 17 हज़ार। छत्तीसगढ़ में क़रीब 16 हज़ार और भारत में औसत 11 हज़ार। 

डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में 20 लाख डॉक्टरों की ज़रूरत है जबकि असलियत में इसके आधे भी नहीं है। हर साल भारत में 30 हज़ार नए डॉक्टर निकलते हैं। यानी कुल आबादी के हिसाब से ये फ़ासला भरने में 40 साल लग जाएँगे। हालाँकि सरकार का दावा है कि डब्ल्यूएचओ के स्टैंडर्ड को भारत ने हासिल कर लिया है लेकिन ये दावा तब किया गया है जब इसमें ट्रेडिशनल मेडिसिन के डाक्टर्स आयुष की संख्या को भी जोड़ दिया गया। ये तो आँकडेबाज़ी का खेल है। लेकिन एक और समस्या है भारतीय डॉक्टर बड़ी संख्या में विदेश चले जाते हैं।  

डब्ल्यूएचओ के अनुसार क़रीब एक लाख से ज़्यादा डॉक्टर अमरीका, इंग्लैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया चले जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया में हर पाँच डॉक्टरों में एक भारतीय है और कनाडा में हर दस डॉक्टर में एक भारतीय है। ब्रिटेन में कुल डॉक्टरों में नौ फ़ीसदी भारतीय हैं।

बड़े पैमाने पर ब्रेन ड्रेन होता रहा है। सरकार ने इस गैप को भरने के लिए जो क़दम उठाया है जिसमें नेशनल मेडिकल कमिशन बिल के तहत।  नेशनल मेडिकल कमिशन 86 साल पुराने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जगह लेगा डॉक्टरों का कहना है कि इसका सेक्शन-32 चिंताजनक है जिसमें 3.5 लाख अयोग्य मेडिकल प्रैक्टिश्नर्स को मॉडर्न मेडिसिन प्रैक्टिस करने की अनुमति होगी। डॉक्टरों का कहना है कि डाग्नोसिस और प्रोग्नोसिस के बुनियादी फ़र्क़ को समझे बिना डॉक्टरी के पेशे में ऐसे लोगों को उतारना कुछ वैसा ही होगा जैसा नीम हकीम ख़तरे जान। 

डॉक्टरों की हालत ख़राब होगी तो स्वास्थ्य व्यवस्था ख़राब होगी। फिर शिकायत होती है कि देश में पढ़ाई करके डॉक्टर विदेश चले जाते हैं। लेकिन सरकार ने क्या कभी सोचा है कि डॉक्टर विदेश क्यों जाते हैं। ख़ास कर अमरीका, कनाडा, यूके और ऑस्ट्रेलिया? क्योंकि वहाँ हेल्थ पर बजट का अच्छा ख़ासा हिस्सा ख़र्च होता है। सरकार जनता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। सरकार डॉक्टरों को इज़्ज़त से रखती है और हर सरकारी अस्पताल में समय पर वेतन मिल जाता है। 

Latest Videos

Latest Videos

Facebook Feed