GoFlashback - हाशिम अंसारी और रामचंद्र परमहंस से क्या सीख सकते हैं अयोध्या विवाद के पैरोकार?

by Ankush Choubey 4 years ago Views 3265

Hashim Ansari-Paramhans Ramchandra
GoFlashback - हाशिम अंसारी और रामचंद्र परमहंस से क्या सीख सकते हैं अयोध्या विवाद के पैरोकार?

बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि ज़मीन विवाद मामले में 40 दिन तक चली सुनवाई 16 अक्टूबर को पूरी हो गयी. इस विवाद में अब फैसले का इंतज़ार हो रहा है. मंदिर-मस्जिद का ये झगड़ा हिंदू-मुस्लिम के रिश्ते बिगाड़ने की वजह बन चुका है लेकिन इस विवाद के सबसे पुराने पैरोकारों के साथ ऐसा नहीं था।


इस मुक़दमे के दो सबसे पुराने पैरोकार मोहम्मद हाशिम अंसारी और महंत रामचंद्र दास परमहंस थे. महंत रामचंद्र दास परमहंस उस वक़्त राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख और हिन्दू पक्ष के पैरोकार थे जबकि मोहम्मद हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद की तरफ से सबसे पहले मुकदमा दायर करने वाले पैरोकार थे। हाशिम अंसारी ने 22 - 23 दिसम्बर 1949 को विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति प्रकट होने के बाद फैज़ाबाद कोर्ट में मुदकमा दायर किया था।

इन दोनों पैरोकारों के बीच वैचारिक मतभेद थे, दोनों मंदिर-मस्जिद विवाद के मुख्य पैरोकार थे लेकिन इनके आपसी रिश्ते में कभी कड़वाहट नहीं आई. इनके संबंधो में मधुरता हमेशा बनी रही. दोनों सुनवाई के लिए कोर्ट साथ में एक ही रिक्शे पर बैठकर जाया करते थे और साथ में बैठकर चाय भी पीते थे। कचहरी में सुनवाई पूरी होने और घर लौटने के बाद महंत रामचंद्र दास परमहंस और हाशिम अंसारी साथ बैठकर देर रात  तक ताश भी खेला करते थे. हालांकि कोर्ट के अंदर दोनों अपना पक्ष बड़ी बेबाक़ी के साथ रखा करते थे और सुनवाई के दौरान तीखी बहस भी हुआ करती थी। मगर कोर्ट के अंदर का मसला कोर्ट में ही छोड़कर दोनों आगे बढ़ जाते थे।

महंत रामचंद्र दास परमहंस पर किताब लिखने वाले संतोष त्रिपाठी के मुताबिक अयोध्या के हिंदू साधु-संतों से हाशिम अंसारी के रिश्ते कभी खराब नहीं हुए। जब महंत रामचंद्र परमहंस की मौत की खबर हाशिम अंसारी को मिली तो वह पूरी रात उनके शव के पास ही बैठे रहे और दूसरे दिन अंतिम संस्कार के बाद ही वह अपने घर गए। हाशिम अंसारी का परिवार कई पीढ़ियों से ही अयोध्या में हैं जबकि महंत रामचंद्र दास परमहंस की जड़ें बिहार में है.

वो 1934 में अपना घर छोड़कर अयोध्या आंदोलन से जुड़ गए और अयोध्या में ही रहने लगे और उनकी मृत्यु भी अयोध्या भी ही हुई। इन दोनों मुख्य पैरोकारों की ज़िंदगी इसी तरह तकरीबन छह दशकों तक चलती रही लेकिन अब दोनों ही इस दुनिया में नहीं है. सवाल ये है कि क्या मंदिर-मस्जिद के मौजूदा पैरोकार बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि के सबसे पुराने पैरोकार से कुछ प्रेरणा ले सकते हैं? 

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