मुश्किल में बहुत है मगर इंसान ही तो है, गुज़र जायेगा
( उन सबके नाम जो घर बैठे उकता गये हैं और इस मुश्किल वक्त के गुज़रने का इंतज़ार कर रहे हैं. )
लेखक - पंकज पचौरी
गुज़र जायेगा
गुज़र जायेगा
मुश्किल में बहुत है
मगर इंसान ही तो है, गुज़र जायेगा
पैदल गुज़रेगा, रिक्शे से गुज़रेगा, साइकिल, ट्रक, बस और ट्रेक्टर ट्राली से गुज़रेगा
रेलगाड़ी न मिली तो पटरी पर सो जायेगा
गुज़र जायेगा
चलेगा हज़ारों मील, बिना बहस बिना दलील
इधर जायेगा, उधर जायेगा, किसी भी तरह अपने घर जायेगा
गुज़र जायेगा
मिलेगा कुछ तो मिलबांट कर खा लेगा, न मिला तो भी निभा लेगा
वर्ना फाकों से उकता के मर जायेगा
गुज़र जायेगा
मुश्किल में है मगर इंसान ही तो है
गुज़र जायेगा
सरकारी वादों से बचेगा, बेहतरी के दावों से बचेगा
शहर की महामारी से बचेगा, हाईवे पर लॉरी से बचेगा
जो बचेगा उसी से तर जायेगा
गुज़र जायेगा
स्याह रात से नहीं डरेगा, मौत से दो दो हाथ करेगा
ज़िन्दगी तल्ख़ है तो तल्ख़ ही सही, हक़ीक़त से नहीं घबराएगा
गुज़र जायेगा
बेदर्दों ने तो छोड़ दिया साथ, घर पहुंचेगा खाली हाथ
ख़्वाबों की पुकार पर अब न वापस आएगा
गुज़र जायेगा
मुश्किल में बहुत है मगर इंसान ही तो है.
गुज़र जायेगा।
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