लावारिस लाशों के वारिस शरीफ चाचा, जिन्हें मिली पद्म श्री
अयोध्या के मुहम्मद शरीफ़ वो शख़्स हैं जिन्हें लावारिस लाशों का वारिस कहा जाता है. मुहम्मद शरीफ़ 27 साल से लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं. जैसे ही केंद्र सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार देने का ऐलान किया, अयोध्या के खिड़की अली बेग मुहल्ले में उनके घर बधाई देने वालों का तांता लग गया.
केंद्र सरकार ने साल 2020 के लिए पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया है लेकिन पुरस्कार पाने वाली हस्तियों में कुछ नाम बेहद सुर्ख़ियों में हैं. ऐसा ही एक नाम मुहम्मद शरीफ़ का है जो अयोध्या में लावारिस लाशों के वारिस कहे जाते हैं. मुहम्मद शरीफ़ अयोध्या में उन लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं जिनका कोई वारिस नहीं होता. मुहम्मद शरीफ़ को पद्म श्री सम्मान मिलने के बाद अयोध्या के खिड़की अली बेग मुहल्ले में जश्न का माहौल है और उनके घर के बाहर मुबारकबाद देने वालों का तांता लगा है.
मुहम्मद शरीफ़ ने बताया कि जब कोतवाल उन्हें पद्मश्री सम्मान की इत्तेला देने आए तो वो डर गए. उन्हें लगा कि उनसे कोई जुर्म हो गया है लेकिन बाद में ज़िले के पुलिस कप्तान ने उनके पैर छुए. मुहम्मद शरीफ के मुताबिक उनका एक बेटा मेडिकल सर्विस से जुड़ा हुआ था और 27 साल पहले सुलतानपुर में उसकी हत्या हो गई थी. मगर उन्हें हत्या की ख़बर एक महीने बाद मिला और वो उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाए थे. तभी से मुहम्मद शरीफ़ ने लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का काम शुरू किया और अब तक 3000 हिंदू और 2500 मुसलमानों के शवों का अंतिम संस्कार उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के मुताबिक कर चुके हैं. 27 साल की कड़ी तपस्या के चलते मुहम्मद शरीफ़ अयोध्या में क़ौमी एकता की मिसाल बन चुके हैं. पद्मश्री मिलने से अभिभूत उनके बेटे मुहम्मद सगीर ने कहा कि इंसानियत में विश्वास बनाए रखने के लिए यह काम उनका परिवार आगे भी करता रहेगा.
मुहम्मद शरीफ़ ने बताया कि जब कोतवाल उन्हें पद्मश्री सम्मान की इत्तेला देने आए तो वो डर गए. उन्हें लगा कि उनसे कोई जुर्म हो गया है लेकिन बाद में ज़िले के पुलिस कप्तान ने उनके पैर छुए. मुहम्मद शरीफ के मुताबिक उनका एक बेटा मेडिकल सर्विस से जुड़ा हुआ था और 27 साल पहले सुलतानपुर में उसकी हत्या हो गई थी. मगर उन्हें हत्या की ख़बर एक महीने बाद मिला और वो उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर पाए थे. तभी से मुहम्मद शरीफ़ ने लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का काम शुरू किया और अब तक 3000 हिंदू और 2500 मुसलमानों के शवों का अंतिम संस्कार उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के मुताबिक कर चुके हैं. 27 साल की कड़ी तपस्या के चलते मुहम्मद शरीफ़ अयोध्या में क़ौमी एकता की मिसाल बन चुके हैं. पद्मश्री मिलने से अभिभूत उनके बेटे मुहम्मद सगीर ने कहा कि इंसानियत में विश्वास बनाए रखने के लिए यह काम उनका परिवार आगे भी करता रहेगा.
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