कोरोना काल में 20 हज़ार करोड़ का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट कितना जायज़ है?
देश में कोरोनावायरस के खिलाफ जंग संसाधनों की कमी के चलते निर्णायक दौर में नहीं पहुंच सकी है. स्वास्थ्य का ढांचा इतना कमज़ोर है कि ना मरीज़ों को एंबुलेंस मयस्सर है और ना ही पर्याप्त अस्पताल हैं. दूसरी ओर फ्रंटलाइन वॉरियर्स कहे जा रहे डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स प्रोटेक्टिव गियर्स जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना कोरोना मरीज़ों का सामना कर रहे हैं. देश में चल रही कोरोना जांच की सुस्त रफ़्तार की वजह भी संसाधनों की कमी है.
ऐसे माहौल में केंद्र सरकार 20 हज़ार करोड़ रुपए के अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर आगे बढ़ रही है. इस प्रोजेक्ट के तहत देश की नई संसद, नया केंद्रीय सचिवालय, प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति के लिए नई इमारतें बनाई जाएंगी.
सवाल उठ रहे हैं कि अगर यही 20 हज़ार करोड़ रुपए स्वास्थ्य के मद में ख़र्च किए जाएं तो आर्थिक तंगी और कोरोना संकट के दौर में यह करोड़ों लोगों के लिए कितना बड़ा मरहम साबित हो सकती है. देश में ऐसे मरीजों की कमी नहीं जिनकी मौत देरी से अस्पताल पहुंचने के कारण होती है. इन ज़िन्दगियों को एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एम्बुलेंस से बचाया जा सकता है जिसकी कीमत 20 लाख रुपए है. इस एम्बुलैंस में दिल को शॉक देने वाली मशीन, पल्स चेकिंग सिस्टम, ऑक्सीजन सिलेंडर जैसी बेहतरीन सुविधाएं होती हैं. 20 हज़ार करोड़ रुपए में ऐसी 10 हज़ार एम्बुलेंस खरीदी जा सकती हैं. बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस तो 20 हज़ार खरीदी जा सकती हैं. वीडियो देखिए एक अनुमान के मुताबिक देश में केवल 48 हज़ार वेंटीलेटर है लेकिन कोरोना की जंग में वेंटीलेटर बेहद अहम हैं. यह वायरस फेफड़ों पर हमला करता है और मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है. 20 हज़ार करोड़ रुपए से ऐसे 1 लाख 30 हज़ार वेंटीलेटर ख़रीदे जा सकते हैं. सरकारी अस्तपालों में कोरोना की जांच मुफ्त है लेकिन प्राइवेट अस्तपालों में इसकी कीमत 4500 रुपए है. अगर किसी परिवार के 5 लोगों को कोरोना का टेस्ट करवाना पड़े तो उन्हें उसके लिए 22 हज़ार रुपए तक खर्च करने पड़ेंगे, जोकि एक गरीब इंसान के लिए बड़ी रकम है. सेंट्रलविस्टा पर खर्च होने वाली अनुमानित राशि से 42 लाख 50 हज़ार टेस्टिंग किट खरीदी जा सकती है. सवाल सिर्फ इतना है कि हमारी प्राथमिकता में स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर बनाना शामिल है या नहीं.
सवाल उठ रहे हैं कि अगर यही 20 हज़ार करोड़ रुपए स्वास्थ्य के मद में ख़र्च किए जाएं तो आर्थिक तंगी और कोरोना संकट के दौर में यह करोड़ों लोगों के लिए कितना बड़ा मरहम साबित हो सकती है. देश में ऐसे मरीजों की कमी नहीं जिनकी मौत देरी से अस्पताल पहुंचने के कारण होती है. इन ज़िन्दगियों को एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एम्बुलेंस से बचाया जा सकता है जिसकी कीमत 20 लाख रुपए है. इस एम्बुलैंस में दिल को शॉक देने वाली मशीन, पल्स चेकिंग सिस्टम, ऑक्सीजन सिलेंडर जैसी बेहतरीन सुविधाएं होती हैं. 20 हज़ार करोड़ रुपए में ऐसी 10 हज़ार एम्बुलेंस खरीदी जा सकती हैं. बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस तो 20 हज़ार खरीदी जा सकती हैं. वीडियो देखिए एक अनुमान के मुताबिक देश में केवल 48 हज़ार वेंटीलेटर है लेकिन कोरोना की जंग में वेंटीलेटर बेहद अहम हैं. यह वायरस फेफड़ों पर हमला करता है और मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है. 20 हज़ार करोड़ रुपए से ऐसे 1 लाख 30 हज़ार वेंटीलेटर ख़रीदे जा सकते हैं. सरकारी अस्तपालों में कोरोना की जांच मुफ्त है लेकिन प्राइवेट अस्तपालों में इसकी कीमत 4500 रुपए है. अगर किसी परिवार के 5 लोगों को कोरोना का टेस्ट करवाना पड़े तो उन्हें उसके लिए 22 हज़ार रुपए तक खर्च करने पड़ेंगे, जोकि एक गरीब इंसान के लिए बड़ी रकम है. सेंट्रलविस्टा पर खर्च होने वाली अनुमानित राशि से 42 लाख 50 हज़ार टेस्टिंग किट खरीदी जा सकती है. सवाल सिर्फ इतना है कि हमारी प्राथमिकता में स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर बनाना शामिल है या नहीं.
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