घटती आमदनी और बढ़ते खर्च के बीच केंद्र सरकार देश कैसे चलाएगी ?

by Abhishek Kaushik 3 years ago Views 2177

How will the central government run the country am
पहले से मंदी की गिरफ्त में आई देश की अर्थव्यवस्था कोरोना काल में और डूबती जा रही है। रोज़गार ख़त्म हो रहा है, उद्योग-धंधे सिकुड़ रहे हैं और सरकार अपने टैक्स वसूली के लक्ष्य पर लगातार पिछड़ रही है. यानि सरकार के पास आमदनी नहीं है और खर्चे पुरे करने के लिए उसको देश का घाटा बढ़ाना ही होगा।

सरकार के खाली ख़ज़ाने का मुख्य कारण टैक्स कलेक्शन में भारी कमी आना है। पिछले साल पहली तिमाही के अंत में राजकोषीय घाटा बजट अनुमान के 61.4 फीसदी पर था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चालू वित्त वर्ष के लिये राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 7.96 लाख करोड़ रुपये रखा था जो जीडीपी का 3.5 फीसदी है। लेकिन ये पहली तिमाही में ही अनुमान के 83.2 फीसदी यानी 6.62 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। सवाल है देश चलाने के लिए बाकी 9 महीने का पैसा कहा से आएगा।  


बता दे देश की आर्थिक स्थिति पहले से ही ख़राब थी। वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.6 फीसदी पर पहुंच गया था जो सात साल के सबसे उच्च स्तर पर था। ये सब टैक्स कलेक्शन में भारी कमी के चलते हुआ।

ग्रॉस टैक्स कलेक्शन के साथ साथ नेट टैक्स राजस्व में पिछले साल के मुक़ाबले 46 फीसदी की कमी आई है। नेट टैक्स राजस्व पिछले साल की पहली तिमाही में दो लाख 51 हज़ार 411 करोड़ से घटकर इस तिमाही में एक लाख 34 हज़ार 822 करोड़ रह गया है।

वहीं कॉर्पोरेट टैक्स 23 फीसदी, इनकम टैक्स 36 फीसदी, कस्टम्स 61 फीसदी, एक्साइज ड्यूटी की वसूली 4.3 फीसदी तक घट गई है। इन सबके बीच केंद्र सरकार की सबसे ज्यादा उम्मीद वाली जीएसटी ने 53 फीसदी की चोट मारी है। जीएसटी कलेक्शन पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में एक लाख 16 हज़ार 805 करोड़ था लेकिन इस साल की पहली तिमाही में 55 हज़ार 47 करोड़ रह गया है। यही कारण है जिसकी वजह से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इसको लेकर खींचतान जारी है।

वही दूसरी तरफ सरकार के खर्च की करें तो ये अकेली ऐसी चीज़ है जो घटने की जगह तेज़ी से बढ़ी है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ये 7 लाख 21 हज़ार 705 करोड़ था लेकिन इस तिमाही में ये 13 फीसदी से बढ़ कर 8 लाख 15 हज़ार 944 करोड़ हो गया है। बढ़ते खर्च और कम कमाई के चलते केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है और सवाल है आखिर अपना घाटा पूरा करने के लिए सरकार कहा से पैसे लाएगी।

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