अंतराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत आधी हुई लेकिन पेट्रोल-डीज़ल उतने ही महंगे

by Rahul Gautam 4 years ago Views 3875

In two months, the price of crude oil halved but p
दुनिया के 100 मुल्कों से ज्यादा में फ़ैल चुके कोरोना वायरस से वैश्विक स्तर पर आर्थिक चक्का धीमा होता जा रहा है। दुनियाभर पर छाए आर्थिक मंदी के बादलों के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार गिरकर अब 20 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है की कच्चे तेल की कीमतों में आई इस गिरावट का फ़ायदा आम उपभोक्ता को मिलेगा? 

केवल दो महीने पहले अंतराष्ट्रीय बाज़ार में क्रूड तेल जिसे आम भाषा में कच्चा तेल कहा जाता है, उसकी कीमत 68.18 डॉलर प्रति बैरल थी। एक बैरल का मतलब 159 लीटर होता है। भारत में तेल कंपनियों पर हर एक डॉलर की बढ़ोतरी का मतलब प्रति लीटर 45 पैसे की बढ़ोतरी होती है। उस समय नई दिल्ली में एक लीटर पेट्रेल की क़ीमत 75.35 रूपये हो गई थी। वहीं कोलकाता में 77.94 रूपये, मुंबई में 80.94 रूपये और बंगलूरू में 77.87 रूपये तक पहुंच गई थी। कच्चे तेल की क़ीमतों में हुई बढ़ोतरी का विपरीत असर रुपए की मज़बूती पर भी पड़ता है। इसका कारण है भारत भारी मात्रा में कच्चे तेल का आयात करता है जिसका असर उसके फॉरेन रिज़र्व पर पड़ता है। 


लेकिन सोमवार को अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 20 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कोरोना वायरस और तेल उत्पादक देशो में समन्वय का ना होना। सोमवार को कच्चे तेल के एक बैरल की कीमत 31 डॉलर तक पहुंच गई। हालांकि, दिल्ली में एक लीटर तेल की कीमत 70.63 है। यानि कच्चे तेल की कीमतों में हो रही गिरावट का फायदा ग्राहक की जेब तक नहीं पहुंच रहा है।  

तेल की कीमतों मार्केट से सीधी जुड़ी हुई है और उसमें प्रत्यक्ष रूप से सरकार का दखल नहीं है। जब-जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती है, तेल कंपनियां बाज़ार का हवाला देकर कीमतें बढ़ा देती है।  पर अब जब कीमतें कम हैं तो क्या तेल कंपनियों को तेल की कीमत कम नहीं करनी चाहिए? 

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