जनतंत्र से तानाशाही की ओर बढ़ रहा भारत: रिपोर्ट
साल 2020 के फरवरी महीने में दो बड़े जनतंत्र भारत और अमेरिका के नेता नरेन्द्र मोदी और डॉनल्ड ट्रंप की मुलाकात हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘अमेरिकी दोस्त’ के स्वागत में एक भव्य जलसे का आयोजन किया। इसके लिए अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम की सजावट की गई। इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने सहमति जताई कि भारत और अमेरिका का साथ आना जनतंत्र के लिए अच्छा संकेत है।
हालांकि महज़ इसके एक हफ्ते बाद ही स्वीडन की एक डेमोक्रेसी इंस्टिट्यूट ने एक रिपोर्ट जारी कर दुनिया को चौंका दिया। जबकि कोरोना के चक्कर में इस रिपोर्ट पर चर्चा न के बराबर हुई। रिपोर्ट में सामने आया है कि दुनिया में ऑटोक्रेसी यानि तानाशाही बढ़ी है। यही नहीं जी-20 देशों में शामिल लगभग सभी देशों में ऑटोक्रेसी की भावनाएं बढ़ रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जनतांत्रिक विशेषताओं में कमी आई है, मीडिया पर हमले हो रहे हैं, सेसंरशिप की घटनाएं बढ़ी है, चुनावी सव्च्छता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
2009 में दुनिया के जहां 54 फीसदी देश जनतांत्रिक थे वो अब सिमट कर 49 फीसदी रह गया है। वहीं दुनिया की 34 फीसदी आबादी अब ग़ैर जनतांत्रिक देशों रह रही है। बता दें कि भारत में जनतंत्र ख़त्म होने के मुहाने पहुंच गया है। 189 देशों में भारत 89वें स्थान पर है। जबकि श्रीलंका, भूटान और नेपाल जैसे देशों में भारत की तुलना में हालात बेहतर है। देखिए विस्तार से बता रहे हैं गोन्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ पंकज पचौरी आंकड़े बताते हैं कि साल 2013 के बाद से हालात बदतर हुए हैं। इनमें निष्पक्ष चुनाव में बाधा डालना, आम लोगों के अधिकारों का हनन, सांस्कृतिक और शैक्षिक मूल्यों पर दबाव और सरकार द्वारा मीडिया पर दबाव और सेंसरशिप की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
2009 में दुनिया के जहां 54 फीसदी देश जनतांत्रिक थे वो अब सिमट कर 49 फीसदी रह गया है। वहीं दुनिया की 34 फीसदी आबादी अब ग़ैर जनतांत्रिक देशों रह रही है। बता दें कि भारत में जनतंत्र ख़त्म होने के मुहाने पहुंच गया है। 189 देशों में भारत 89वें स्थान पर है। जबकि श्रीलंका, भूटान और नेपाल जैसे देशों में भारत की तुलना में हालात बेहतर है। देखिए विस्तार से बता रहे हैं गोन्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ पंकज पचौरी आंकड़े बताते हैं कि साल 2013 के बाद से हालात बदतर हुए हैं। इनमें निष्पक्ष चुनाव में बाधा डालना, आम लोगों के अधिकारों का हनन, सांस्कृतिक और शैक्षिक मूल्यों पर दबाव और सरकार द्वारा मीडिया पर दबाव और सेंसरशिप की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
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