कई राज्यों में श्रम क़ानून कमज़ोर हुए, मज़दूरों के अधिकारों पर हमला

by Rahul Gautam 3 years ago Views 2367

Labor laws weakened in many states, workers' right
देश में लॉकडाउन लागू हुए 40 दिन से ज़्यादा हो चुके हैं और इस दौरान उद्योग धंधों की कमर टूट गई है. मगर अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए ठोस रणनीति को अपनाने की बजाय राज्य सरकारें श्रम क़ानूनों के पीछे पड़ गई हैं. अब तक छह राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और पंजाब ने मज़दूरों से जुड़े कानून ही ताक पर रख दिए हैं.

मध्य प्रदेश के नए श्रम क़ानून के मुताबिक कारख़ाने में मज़दूरों से 8 घंटे की बजाये 12 घंटे काम लिया जा सकेगा. हालांकि इसके लिए मज़दूरों की रज़ामंदी ज़रूरी होगी और उन्हें ओवर-टाइम के पैसे देने होंगे. अब राज्य में कारख़ाने थर्ड पार्टी से अपना निरीक्षण करवा सकेंगे और मज़दूरों से जुड़ा रजिस्टर मेन्टेन करने की ज़रूरत नहीं होगी. फैक्ट्री मालिकों को अब सरकारी इंस्पेक्शन की भी ज़रूरत नहीं होगी. इन बदलाव के तहत चालू होने वाली फैक्ट्री में मज़दूर अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़ी जानकारी फैक्ट्री मालिकों से नहीं मांग पाएंगे. साथ ही मालिक, अपने मज़दूरों को बिजली, साफ़ हवा के लिए वेंटिलेशन, शौचालय, बैठने की सुविधा, फर्स्ट ऐड की सुविधा, सुरक्षा उपकरण, कैंटीन, क्रेच, साप्ताहिक छुट्टी और काम के दौरान आराम करने आदि सुविधा देने के लिए मजबूर नहीं होंगे.


इसी तरह यूपी की योगी सरकार ने तीन साल तक के लिए मज़दूरों के अधिकार से जुड़े सभी कानून खत्म कर दिए हैं. सीएम ऑफिस की तरफ से बयान जारी कर कहा गया है कि लॉकडाउन से उद्योग धंधे को भारी धक्का पंहुचा है, इसलिए इन सभी कानूनों के हटने से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. कानूनों के फेरबदल के बाद मालिक किसी भी मज़दूर को अपने हिसाब से काम पर रख और निकाल सकेगा. उससे कोई पूछताछ नहीं होगी.

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इसी तरह राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी फैक्ट्री मालिक अब मज़दूरों से 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम ले सकेंगे. यहाँ भी तर्क अर्थव्यवस्था की बेहतरी का दिया जा रहा है, लेकिन मज़दूर संगठनों इससे सहमत नहीं हैं. मज़दूर संगठनों का आरोप है कि श्रम क़ानूनों में हुए बदलावों से मजदूर ग़ुलाम बनकर रह जाएंगे.

सीटू का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुधार के नाम पर मज़दूरों के शोषण की शुरुआत की जा रही है. सीपीआईएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि एक तरफ सरकार वेल्थ क्रिएटर की वकालत करती है, दूसरी तरफ वैल्यू क्रिएटर यानि मज़दूरों की अनदेखी करती है. इन कानूनों के अभाव में मजदूर बंधुआ होकर रह जायेंगे.

देश में लेबर लॉ और लेबर कोर्ट की पहले से ही हालत ख़राब है. लेबर लॉ में हुए बदलाव श्रम अधिकारों को ख़त्म करने में ताबूत की आख़िरी कील साबित होंगे.

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