नेता vs अभिनेता

by Darain Shahidi 4 years ago Views 3449

Leader vs actor
नेता vs अभिनेता 


जिसका डर था वही हुआ। एक लाइन से सब पीछे पड़ गए दीपिका पादुकोण के। ट्विटर पर फ़ेस्बुक पर इन्स्टग्रआम पर शुरू हो गया  BOYCOTT Chhapaak. छपाक एक फ़िल्म है जिसमें दीपिका हेरोईन हैं। सोशल मीडिया पर दीपिका को भद्दी भद्दी गालियाँ दी जा रही हैं। क्यूँ ? क्यूँकि वो JNU गई और उस बहादुर लड़की से मिली जो JNU स्टूडेंट यूनीयन की प्रेज़िडेंट हैं। उसका नाम आइशे घोष है और संडे को नक़ाबपोश गुंडों ने उसके सर पर वार किया था जिससे उसका सर फट गया था और ख़ून से चेहरा लथपथ हो गया था। दीपिका पादुकोण उस लड़की से मिली और इसी बात पर तूफ़ान खड़ा हो गया। सत्ता के चापलूस तिलमिला उठे।

दीपिका ने कहा की उन्हें इन सब से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और

इस बात पर गर्व है कि वे किसी से नहीं डरती। ये देखकर काफ़ी अच्छा लग रहा है की लोग अपनी आवाज़ उठाने के लिए सड़कों पर निकल रहे हैं। क्यूँकि अगर हम बदलाव चाहते हैं तो ये करना बहुत ज़रूरी है।

“I feel proud that we are not scared... It is nice to see people are coming out on the streets to voice this and express [themselves]. Because if we want to see change, this is very important.”

फ़िल्म इंडस्ट्री के लोग खुल कर देश भर में प्रोटेस्ट कर रहे स्टूडेंट्स के साथ आ गए हैं। उनका कहना है की नेता हमेशा असली मुद्दों से भटकाने के लिए कभी धर्म कभी जाति और कभी लाठी का सहारा लेते हैं। इसलिए आज बॉलीवुड स्टूडेंट्स के साथ हो गया है। उनका कहना है की जो नक़ाबपोश JNU में घुसे थे और स्टूडेंट्स को मारा था उन्हें पकड़ो और सज़ा दो। दीपिका पादुकोण भी यही संदेश देना चाहती हैं। इसमें कोई ग़लत बात है क्या? फिर दीपिका को इतनी गाली क्यूँ दी जा रही है? क्या वो नक़ाबपोश उनके अपने लोग तो नहीं थे?

आम तौर पर ये देखा गया है कि फ़िल्मी दुनिया राजनीति से दूर रहती है और हीरो हेरोईन राजनीति में आते भी है तो चुनाव लड़ने के लिए या प्रधानमंत्री के साथ फ़ोटो खिंचाने के लिए। लेकिन इस बार ना चुनाव है ना PM के साथ फ़ोटो खिंचवाने का मौक़ा। बल्कि एकाध अपवाद को छोड़ कर फ़िल्मी दुनिया PM और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ जो स्टूडेंट्स सड़कों पर हैं, उनके साथ खड़ी है।

बड़े बड़े directors और actors और singers जिन्होंने international stage पर भारत का नाम रौशन किया है। सब सड़कों पर हैं।

anurag kashyap, anubhav sinha, swanand kirkire, zoya akhtar, vishal bhardwaj, taapsi pannu, diya mirza. ये सब लोग मुंबई में JNU के समर्थन में सड़कों पर उतरे और अपने अपने ढंग से किसी ने गाना गाकर किसी ने कविता सुनाकर किसी ने सिर्फ़ अपनी बात कहकर JNU में हुए हमले के ख़िलाफ़ अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर किया।

अब ये कलाकार लाठी डंडे घूँसे और लात की भाषा तो जानते नहीं इसलिए जो भाषा इन्हें सबसे अच्छी आती है उसी में तो विरोध करेंगे। लोकतंत्र में बात कहने का बड़ा महत्व है। जैसे JNUSU प्रेज़िडेंट आइशे घोष जब टाँके लगवा के अस्पताल से लौटी तब  उन्होंने कहा कि वे लड़ाई जारी रखेंगी लेकिन डिबेट के माध्यम से। अब आप सोचिए की जिसे रात के अन्धेरे में गुंडे घायल कर गए वो उनसे भी डिबेट करने की बात कह रही है। शायद यही JNU के संस्कार हैं। वरना वो ये बात क्यूँ कहती।

पत्रकार रोहित खिलनानी ने एक लिस्ट ट्वीट किया है जिसमें फ़िल्मी दुनिया की तमाम बड़ी हस्तीयों के नाम हैं जो स्टूडेंट्स के समर्थन में या तो सड़कों पर उतरे या फिर किसि ना किसी रूप में अपना प्रोटेस्ट दर्ज करवाया। ये लिस्ट काफ़ी लम्बी है।

बहरहाल, ऐसा लगता है कि फ़िल्मी दुनिया के लोग बदल रहे हैं अब वो सिर्फ़ मेक अप से भरे चिकने चुपड़े चेहरे नहीं हैं, उनकी एक सोच है और उस सोच को सबके सामने रखने में ज़रा भी नहीं डरते। बॉलीवुड की दो महिलाएँ स्वरा भास्कर और ऋचा चड्ढा हर जगह अवाम की आवाज़ बन कर खड़ी नज़र आती हैं। नए दौर के फ़िल्म कलाकार जनता की आवाज़ में आवाज़ मिलाना चाहते हैं। शायद वे जनता के दर्द को समझते हैं।   

फ़िल्म स्टार आयुशमान खुराना को आप जानते हैं। जानते ही होंगे। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि आयुशमान आजकल कविता लिखने लगे हैं। सुनिए उनकी एक ताज़ा कविता जो उन्होंने ट्वीट किया है।

‘इंसानियत से बड़ा कुछ नहीं

धर्म नहीं, सियासत नहीं.

धन नहीं, विरासत नहीं.

किसी की हो सोच नई,

हो अलग तो अलग सही,

पर तुझे उस सोच को नोचने का हक़ नहीं,

यही भारत का लोकतंत्र है,

और इसमें किसी को शक़ नहीं’

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