'लॉकडाउन' अन्नदाताओं के लिए मुसीबत, मज़दूर भी परेशान
आपको याद होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद की कैंटीन में खाना खाने के बाद विज़िटर्स बुक में लिखा था अन्नदाता सुखी भव:। आज देश में कोरोना महामारी के बीच देश का वही अन्नदाता सबसे अधिक दुखी हैं।
देश की जीडीपी का 17 से 18 फ़ीसदी हिस्सा किसान देते हैं। 50 फ़ीसदी से ज़्यादा रोज़गार एग्रिकल्चर सेक्टर से आता है। लेकिन कोरोना के कारण खाना खिलाने वाला किसान परेशान है। खेतों में गन्ने, गेहूं और सरसों की फसल पककर तैयार है लेकिन यह घर तक कैसे आएगी? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। कई राज्यों में गांव के हर रास्ते पर बैरियर है। किसान और मज़दूर खेतों पर भी नहीं जा रहे हैं। अनुमति न मिलने के कारण फसलों को काट नहीं पा रहे।
ये कैसा दौर है? इसपर सांत्वना श्रिकांत के एक कविता का अंश पढ़िये। अपने खेतों से दूर सो गए हैं देश के अन्नदाता नंगे पांव चल पड़े कामगार, अश्रुधारा बहा रहे असहाय। बिलख रहे नौनिहाल और भूख के बोझ से द्रवित है वसुंधरा, लुप्त हो रही मानवता युद्धरत है व्यवस्था उनके लिए जो या तो भूख से मरेंगे या फिर वैश्विक साजिश से- यह महामारी का दौर है। कई जगह मज़दूर नहीं मिल रहे तो घर के ही लोग गन्ने की कटाई कर रहे हैं। गन्ने को स्टोर नहीं किया जा सकता। चीनी मिल तक पहुँचना होता है। वही हाल फूलों और सब्ज़ीयों का भी है । मंडीयों तक ना पहुँचे तो बेकार हो जाती है । कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्तमान में 20 राज्यों में एमएसपी पर दलहन और तिलहन की खरीद की जा रही है। नेफेड द्वारा 1,79,852.21 मीट्रिक टन दलहन और 1,64,195.14 मीट्रिक टन तिलहन की खरीद की गई है। जिसका एफसीआई मूल्य 1605.43 करोड़ रुपये है, इस माध्यम से 2,05,869 किसानों को फ़ायेदा हुआ है। लेकिन ऐसे किसान जो दूर दराज़ के इलाक़े में हैं या गन्ने की खेती करते हैं उनका हाल बुरा है। देश भर में लाखों किसान ऐसे हैं जो फूलों की खेली करते हैं। लॉकडाउन में फूलों की खेती करने वाले किसानों की हालात सबसे अधिक ख़राब है। शादियाँ नहीं हो रही हैं और मंदिर बंद हैं। ऐसे में फूल उगाने वाले किसानों की ख़ुद की ज़िंदगी मुरझा गई है। फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के आँकड़ों के मुताबिक़ इस साल एक मार्च तक सात करोड़ 70 लाख टन अनाज सरकार के पास है। कृषि मंत्री का कहना है कि खाने की कोई कमी नहीं होगी। लेकिन अजीब चक्रव्यूह है कि किसान फ़सल काट नहीं पा रहे हैं। काट पा रहे हैं तो मंडियों तक नहीं पहुँचा पा रहे हैं। मंडियों तक पहुँचा पा रहे हैं तो बेच नहीं पा रहे। बेच नहीं पाएँगे तो खाएँगे क्या। यानी घूम फिर कर मामला वहीं आ जाता है पेट के सवाल पर। सरकार को सोचना चाहिए की बल्कि उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए की खाना खिलाने वाला भूखा ना रहे।
ये कैसा दौर है? इसपर सांत्वना श्रिकांत के एक कविता का अंश पढ़िये। अपने खेतों से दूर सो गए हैं देश के अन्नदाता नंगे पांव चल पड़े कामगार, अश्रुधारा बहा रहे असहाय। बिलख रहे नौनिहाल और भूख के बोझ से द्रवित है वसुंधरा, लुप्त हो रही मानवता युद्धरत है व्यवस्था उनके लिए जो या तो भूख से मरेंगे या फिर वैश्विक साजिश से- यह महामारी का दौर है। कई जगह मज़दूर नहीं मिल रहे तो घर के ही लोग गन्ने की कटाई कर रहे हैं। गन्ने को स्टोर नहीं किया जा सकता। चीनी मिल तक पहुँचना होता है। वही हाल फूलों और सब्ज़ीयों का भी है । मंडीयों तक ना पहुँचे तो बेकार हो जाती है । कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्तमान में 20 राज्यों में एमएसपी पर दलहन और तिलहन की खरीद की जा रही है। नेफेड द्वारा 1,79,852.21 मीट्रिक टन दलहन और 1,64,195.14 मीट्रिक टन तिलहन की खरीद की गई है। जिसका एफसीआई मूल्य 1605.43 करोड़ रुपये है, इस माध्यम से 2,05,869 किसानों को फ़ायेदा हुआ है। लेकिन ऐसे किसान जो दूर दराज़ के इलाक़े में हैं या गन्ने की खेती करते हैं उनका हाल बुरा है। देश भर में लाखों किसान ऐसे हैं जो फूलों की खेली करते हैं। लॉकडाउन में फूलों की खेती करने वाले किसानों की हालात सबसे अधिक ख़राब है। शादियाँ नहीं हो रही हैं और मंदिर बंद हैं। ऐसे में फूल उगाने वाले किसानों की ख़ुद की ज़िंदगी मुरझा गई है। फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के आँकड़ों के मुताबिक़ इस साल एक मार्च तक सात करोड़ 70 लाख टन अनाज सरकार के पास है। कृषि मंत्री का कहना है कि खाने की कोई कमी नहीं होगी। लेकिन अजीब चक्रव्यूह है कि किसान फ़सल काट नहीं पा रहे हैं। काट पा रहे हैं तो मंडियों तक नहीं पहुँचा पा रहे हैं। मंडियों तक पहुँचा पा रहे हैं तो बेच नहीं पा रहे। बेच नहीं पाएँगे तो खाएँगे क्या। यानी घूम फिर कर मामला वहीं आ जाता है पेट के सवाल पर। सरकार को सोचना चाहिए की बल्कि उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए की खाना खिलाने वाला भूखा ना रहे।
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