लॉकडाउन: टीवी के दर्शकों में 43 फीसदी की उछाल, सरकार का विज्ञापनों पर ख़र्च 244 फीसदी बढ़ा
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देश में उत्तरी राज्यों के लोग टीवी ज़्यादा देख रहे हैं। टीवी की ख़पत में सबसे ज़्यादा 76 फीसदी की उछाल राजस्थान में देखी गई है। पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में 64 फीसदी की बढ़त हुई है। इसी तरह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में 52 फीसदी, बिहार और झारखंड में 56 फीसदी, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 57 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है। जबकि मनोरंजन की राजधानी कहे जाने वाले महाराष्ट्र में केवल 38 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। स्पॉर्ट्स चैनल के विज्ञापनों में 86 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा बिज़नेस न्यूज़ में 44 फीसदी, टीवी न्यूज़ में 26 फीसदी, भक्ति चैनलों के विज्ञापन में 11 फीसदी की बढ़त हुई है। जबकि फिल्मी चैनल पिछड़ गए हैं, इनमें केवल पांच फीसदी की आंशिक बढ़ोत्तरी हुई है। इस बीच टीवी पर सरकार ज़्यादा ख़र्च कर रही है। इसके अलावा एफएमसीजी विज्ञापनों में दो कंपनियां Hindustan Unilever और Reckitt Benckiser Group, पहले और दूसरे नंबर पर हैं। उधर टीवी को करीब 50 फीसदी का राजस्व देने वाली सभी एफएमसीजी कंपनियां पिछड़ गई हैं। जबकि नए संगठनों को बाज़ार में दिखने का ये अच्छा मौका है। रिपोर्ट के मुताबिक़ जनवरी से लेकर मार्च तक, इन तीन महीनों में सोशल मैसेजिंग के विज्ञापनों में सबसे ज़्यादा बढ़त देखी गई है। एनजीओ के विज्ञापनों में 628 फीसदी की भारी उछाल आई। उधर सरकार ने भी टीवी पर किए जाने वाले अपने खर्च में 244 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है। हालांकि इस लॉकडाउन में मोबाइल फोन और ई-कॉमर्स कंपनियों के विज्ञापनों का योगदान केवल 183 फीसदी ही बढ़ा है। बता दें कि प्रसार भारती पर रामायण और महाभारत जैसे भक्ती सीरियल के शुरू करने से देश में टीवी दर्शकों में वृद्धि हुई है। ऐसे में सरकार के मंत्रियों और भाजपा नेताओं द्वारा समर्थित पब्लिक ब्रॉडकास्टर के दर्शकों की संख्या कई सौ गुना बढ़ चुकी है। सवाल है कि क्या सरकार, जनता के टैक्स का पैसा केवल टीवी पर ख़र्च कर वाह-वाही लूटना चाहती है या स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए सेफ्टी गियर प्रदान करना? सरकार को अपने संसाधनों पर कम ख़र्च कर गलियों और सड़कों पर रहने वाले ज़रूरतमंदों की ज़रूरतों पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए।
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