भारत माता की जय: बच्चों को गोद में लिए सड़कों पर पैदल चलने को मज़बूर 'मां'
भारत माता की जय। ये देश हमारी मां है लेकिन ये माओं का भी तो देश है। सड़कों पर पैदल चलती मां का भी तो देश है। सड़क पर नज़र डालिए तो हर जगह मज़दूर औरतें हैं। जिनके बारे में बात नहीं हो रही। दिहाड़ी मज़दूरों के साथ-साथ चलने वाली छोटे-छोटे बच्चों को गोद लिए हर माँ बहुत दुखी है।
शहरों से गाँव जाते दिहाड़ी मज़दूरों में आधी औरतें हैं। वे पैदल जा रही हैं साथ-साथ। गर्भवती हैं लेकिन चल रही हैं। सर पर बोझ लादे चल रही हैं। बच्चे को गोद में लिए चल रही हैं। नंगे पैर चल रही हैं। भूखे प्यासे। पैदल चलती महिलाओं में कई गर्भवती महिलाएँ भी हैं। सड़क पर ही बच्चे को जन्म दे रही हैं और आगे बढ़ रही हैं।
एक महिला ने रास्ते में बच्चे को जन्म दिया थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर पैदल निकल पड़ी। महाराष्ट्र के नाशिक से मध्यप्रदेश के सतना तक का पैदल सफ़र तय करना था। गूगल मैप बताता है कि लगातार पैदल चलते रहें तो ये सफ़र दो सौ छह घंटे का है। अपने राज्य की सीमा में घुसने पर इन्हें क्वारंटाइन में भेजा जा रहा है जहाँ महिलाओं के लिए सुविधा ना के बराबर है बेहतर सुविधा माँगने पर मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है। सैनिटेरी नैपकिंस नहीं हैं। बीमारी का ख़तरा है। कोरोना के अलावा और भी ढेर सारे इन्फ़ेक्शन हैं जिनसे अगर महिलाएँ ना बचें तो जान जा सकती है। नेशनल कमिशन फॉर वोमेन यानी एनसीडब्ल्यू का कहना है कि ढेर सारी महिलाएँ ऐसी भी हैं जो अकेले ही काम की तलाश में निकल कर घर सम्भाल रही थी। लॉकडउन में उनके लिए और भी बड़ा ख़तरा है। ना अकेले निकल सकती हैं और जहाँ हैं वहाँ रह भी नहीं सकती क्योंकि काम छूट गया है, पैसा नहीं है, राशन समाप्त हो चुका है। उत्तर प्रदेश के औरय्या में 24 मज़दूर मर गए, औरतें और बच्चे ज़ख़्मी हो गए। मध्य प्रदेश में सागर के पास एक और सड़क हादसा हो गया और घर वापस लौट रही चार मज़दूर औरतों की जान चली गई। सिर्फ़ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कुल मिलाकर अलग-अलग जगहों पर सिर्फ़ 16 मई को 34 मर्द, औरत और बच्चे सड़क हादसे में मर गए। मज़दूरों की मौत का सिलसिला जारी है। परिवार के परिवार उजड़ रहे हैं। सरकार का कहना है कि कितने मज़दूर सड़कों पर हैं उसका कोई अंदाज़ा नहीं है। सर्वे बताते हैं कि भारत में प्रवासी मज़दूरों की कुल संख्या दस करोड़ से ज़्यादा है। अलग अलग एनजीओ के सर्वे बताते हैं कि इनकी संख्या कहीं ज़्यादा है। गाँव से शहर आए मज़दूरों के साथ औरतें भी आती हैं और घरों में काम पर लग जाती हैं। मेड्स बनकर फ़्लैट्स में काम करती हैं। मर्द का काम छूट जाता है तो औरतें घर सम्भालती हैं। कहीं-कहीं काम करने वाली औरतों की संख्या मर्दों से ज़्यादा है। कोरोना से पहले एक सर्वे के अनुसार 2022 तक डोमेस्टक वर्कफोर्स की तादाद दस करोड़ से ज़्यादा होने वाली थी। इसमें मर्द औरत दोनों शामिल हैं लेकिन महिलाओं की तादाद अधिक है। मर्द काम की तलाश में गाँव से शहर आता है तो उनके साथ उनसे जुड़ी महिलाएँ भी आती हैं और काम पर लग जाती हैं। पूरा परिवार इसी तरह से चलता है। जब परिवार पर आफ़त आती है तो पूरा परिवार साथ निकलता है। जहाँ मां है वहाँ पूरा परिवार उसकी धुरी पर घूमता है। आज दाना पानी उठ गया है तो माँ घर जाना चाहती है। पूरे परिवार को लेकर सुरक्षित घर पहुँचना चाहती है। सरकार से मदद मिल सकती है। मिलनी चाहिए। सबसे पहले मां को मिलनी चाहिए। क्योंकि मुसीबत बड़ी है और घर बहुत दूर है। वीडियो देखिये
एक महिला ने रास्ते में बच्चे को जन्म दिया थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर पैदल निकल पड़ी। महाराष्ट्र के नाशिक से मध्यप्रदेश के सतना तक का पैदल सफ़र तय करना था। गूगल मैप बताता है कि लगातार पैदल चलते रहें तो ये सफ़र दो सौ छह घंटे का है। अपने राज्य की सीमा में घुसने पर इन्हें क्वारंटाइन में भेजा जा रहा है जहाँ महिलाओं के लिए सुविधा ना के बराबर है बेहतर सुविधा माँगने पर मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है। सैनिटेरी नैपकिंस नहीं हैं। बीमारी का ख़तरा है। कोरोना के अलावा और भी ढेर सारे इन्फ़ेक्शन हैं जिनसे अगर महिलाएँ ना बचें तो जान जा सकती है। नेशनल कमिशन फॉर वोमेन यानी एनसीडब्ल्यू का कहना है कि ढेर सारी महिलाएँ ऐसी भी हैं जो अकेले ही काम की तलाश में निकल कर घर सम्भाल रही थी। लॉकडउन में उनके लिए और भी बड़ा ख़तरा है। ना अकेले निकल सकती हैं और जहाँ हैं वहाँ रह भी नहीं सकती क्योंकि काम छूट गया है, पैसा नहीं है, राशन समाप्त हो चुका है। उत्तर प्रदेश के औरय्या में 24 मज़दूर मर गए, औरतें और बच्चे ज़ख़्मी हो गए। मध्य प्रदेश में सागर के पास एक और सड़क हादसा हो गया और घर वापस लौट रही चार मज़दूर औरतों की जान चली गई। सिर्फ़ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कुल मिलाकर अलग-अलग जगहों पर सिर्फ़ 16 मई को 34 मर्द, औरत और बच्चे सड़क हादसे में मर गए। मज़दूरों की मौत का सिलसिला जारी है। परिवार के परिवार उजड़ रहे हैं। सरकार का कहना है कि कितने मज़दूर सड़कों पर हैं उसका कोई अंदाज़ा नहीं है। सर्वे बताते हैं कि भारत में प्रवासी मज़दूरों की कुल संख्या दस करोड़ से ज़्यादा है। अलग अलग एनजीओ के सर्वे बताते हैं कि इनकी संख्या कहीं ज़्यादा है। गाँव से शहर आए मज़दूरों के साथ औरतें भी आती हैं और घरों में काम पर लग जाती हैं। मेड्स बनकर फ़्लैट्स में काम करती हैं। मर्द का काम छूट जाता है तो औरतें घर सम्भालती हैं। कहीं-कहीं काम करने वाली औरतों की संख्या मर्दों से ज़्यादा है। कोरोना से पहले एक सर्वे के अनुसार 2022 तक डोमेस्टक वर्कफोर्स की तादाद दस करोड़ से ज़्यादा होने वाली थी। इसमें मर्द औरत दोनों शामिल हैं लेकिन महिलाओं की तादाद अधिक है। मर्द काम की तलाश में गाँव से शहर आता है तो उनके साथ उनसे जुड़ी महिलाएँ भी आती हैं और काम पर लग जाती हैं। पूरा परिवार इसी तरह से चलता है। जब परिवार पर आफ़त आती है तो पूरा परिवार साथ निकलता है। जहाँ मां है वहाँ पूरा परिवार उसकी धुरी पर घूमता है। आज दाना पानी उठ गया है तो माँ घर जाना चाहती है। पूरे परिवार को लेकर सुरक्षित घर पहुँचना चाहती है। सरकार से मदद मिल सकती है। मिलनी चाहिए। सबसे पहले मां को मिलनी चाहिए। क्योंकि मुसीबत बड़ी है और घर बहुत दूर है। वीडियो देखिये
Latest Videos