मुस्लिम बच्चों में स्कूल ड्रॉप-आउट ज़्यादा, देखें राज्यों की लिस्ट
देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बावजूद हर साल लाखों बच्चे बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं. इस मामले में मुस्लिम समुदाय का हाल ज़्यादा बुरा है जिसके बच्चों का सेकेंडरी लेवल पर स्कूल ड्राप-आउट रेट, राष्ट्रीय ड्राप-आउट रेट से ज्यादा है. मानव संसाधन मंत्रालय के मुताबिक साल 2017-18 में राष्ट्रीय स्कूल ड्राप-आउट रेट 18.96 % है, जबकि मुस्लिम बच्चों का स्कूल ड्राप-आउट रेट 23.1% है।
शिक्षा का अधिकार क़ानून लागू होने के बावजूद सरकार देश के सभी बच्चों को शिक्षा दे पाने में नाकाम साबित हो रही हैं. सबसे बुरा हाल मुस्लिम समुदाय के बच्चों का है जिसका ड्रॉप-आउट रेट औसत ड्रॉप-आउट से ज़्यादा है.
अगर बात करें उत्तर भारत की तो 2017-18 में हरियाणा में स्कूल ड्रॉप-आउट रेट 13.4 फीसदी था लेकिन मुसलमान बच्चों में यह दर 35.1 फीसदी थी. राजधानी दिल्ली के एजुकेशन मॉडल की चर्चा ज़ोरशोर से होती है लेकिन यहां भी हालात ख़राब हैं। दिल्ली में साल 2017-18 में 2016-17 में 17.5 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी जबकि मुसलमान बच्चों में यही दर रही 25.1 फीसदी। पंजाब में साल 2017-18 में 12.4 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया लेकिन मुस्लिम समुदाय के बच्चों में यह दर 8 फीसदी की रही. उत्तर प्रदेश में औसतन ड्राप-आउट रेट 19 फीसदी था, जबकि मुसलमानो में यही दर 12.9 फीसदी दर्ज की गई. मध्य प्रदेश में साल 2017-18 में 24.2 फीसदी बच्चों ने 10वीं तक पहुंचते-पहुंचते पढ़ाई छोड़ दी जबकि उसी साल 24.4 फीसदी मुस्लिम बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी। राजस्थान में कुल 10.5 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी, जबकि मुस्लिम समाज में यही दर 3.5 फीसदी रही. बिहार में साल 2017-18 में 32 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी जबकि 36.9 फीसदी मुस्लिम बच्चे पढ़ाई से महरूम रह गए। पश्चिम भारत की बात करें, तो महाराष्ट्र में 12.6 फीसदी बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया लेकिन 22.4 फीसदी मुस्लिम बच्चे पढ़ाई से महरूम रह गए। गुजरात में 20.6 फीसदी कुल बच्चो ने स्कूल से मुंह फेरा, लेकिन मुस्लिम बच्चों में यही दर थी 4.3 फीसदी। गोवा में 7.3 फीसदी था कुल औसत, लेकिन मुस्लिम समाज के बच्चे 30.7 फीसदी की तादाद में स्कूल से बाहर हो गए।
शिक्षा का अधिकार क़ानून लागू होने के बावजूद सरकार देश के सभी बच्चों को शिक्षा दे पाने में नाकाम साबित हो रही हैं. सबसे बुरा हाल मुस्लिम समुदाय के बच्चों का है जिसका ड्रॉप-आउट रेट औसत ड्रॉप-आउट से ज़्यादा है.
अगर बात करें उत्तर भारत की तो 2017-18 में हरियाणा में स्कूल ड्रॉप-आउट रेट 13.4 फीसदी था लेकिन मुसलमान बच्चों में यह दर 35.1 फीसदी थी. राजधानी दिल्ली के एजुकेशन मॉडल की चर्चा ज़ोरशोर से होती है लेकिन यहां भी हालात ख़राब हैं। दिल्ली में साल 2017-18 में 2016-17 में 17.5 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी जबकि मुसलमान बच्चों में यही दर रही 25.1 फीसदी। पंजाब में साल 2017-18 में 12.4 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया लेकिन मुस्लिम समुदाय के बच्चों में यह दर 8 फीसदी की रही. उत्तर प्रदेश में औसतन ड्राप-आउट रेट 19 फीसदी था, जबकि मुसलमानो में यही दर 12.9 फीसदी दर्ज की गई. मध्य प्रदेश में साल 2017-18 में 24.2 फीसदी बच्चों ने 10वीं तक पहुंचते-पहुंचते पढ़ाई छोड़ दी जबकि उसी साल 24.4 फीसदी मुस्लिम बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी। राजस्थान में कुल 10.5 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी, जबकि मुस्लिम समाज में यही दर 3.5 फीसदी रही. बिहार में साल 2017-18 में 32 फीसदी बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी जबकि 36.9 फीसदी मुस्लिम बच्चे पढ़ाई से महरूम रह गए। पश्चिम भारत की बात करें, तो महाराष्ट्र में 12.6 फीसदी बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया लेकिन 22.4 फीसदी मुस्लिम बच्चे पढ़ाई से महरूम रह गए। गुजरात में 20.6 फीसदी कुल बच्चो ने स्कूल से मुंह फेरा, लेकिन मुस्लिम बच्चों में यही दर थी 4.3 फीसदी। गोवा में 7.3 फीसदी था कुल औसत, लेकिन मुस्लिम समाज के बच्चे 30.7 फीसदी की तादाद में स्कूल से बाहर हो गए।
बात करे पूर्वी हिस्से की तो ओडिशा में साल 2017-18 में 28.3 फीसदी बच्चों ने नौवीं और दसवीं में पढ़ाई छोड़ दी लेकिन यहां मुस्लिम छात्र छात्राओं में स्कूल छोड़ने की दर 47.4 फीसदी रही. इसी तरह असम में 2017-18 में 33.7 फीसदी बच्चे नौवीं और दसवीं में पढ़ाई छोड़ रहे थे लेकिन यही दर मुसलमान छात्रों में 41.7 फीसदी थी। इसी तरह पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बच्चों में ड्रॉप आउट रेट 22 फीसदी रहा जहां ड्रॉप आउट का औसत रेट 14.6 है. वहीं दक्षिण भारत के राज्यों की बात करें तो तमिलनाडु में साल 2017-18 में औसतन स्कूल-ड्रॉप आउट रेट 16.2 फीसदी था जबकि मुसलमान बच्चों में यह दर थी 12 फीसदी। केरल में बच्चों का स्कूल ड्रॉप-आउट रेट था 12 फीसदी, वहीं मुस्लिम बच्चो में ड्रॉप आउट 24.6 फीसदी दर्ज किया गया. आंध्र प्रदेश में जहा 22.9 फीसदी बच्चे नौवीं और दसवीं में पढ़ाई से दूर हो गए, वही मुस्लिम बच्चो में यही दर रही 23.3 फीसदी। कर्नाटक में जहा 24.3 फीसदी बच्चों ने स्कूल जाना बंद कर दिया, वही मुस्लिम बच्चों में ड्रॉप आउट 27.3 में रहा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक गरीबी, शारीरिक अक्षमता और काम-काज का महत्त्व न समझना स्कूल ड्रॉपआउट की बड़ी वजह हैं. वीडियो देखिए
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