देश में लंबित मुक़दमें 3.65 करोड़ के पार, 2013-2020 के बीच सिर्फ 2 % जज बढ़े
देश की न्यायपालिका पर मुक़दमों का भार साल दर साल बढ़ता जा रहा है जिनका निबटारा करने वाले जजों की संख्या भी नाकाफी है. क़ानून मंत्रालय के नए आंकड़े बताते हैं कि देश की अदालतों से आम आदमी के लिए इंसाफ़ पाना आसान नहीं है.
देश की न्यायपालिका पर मुक़दमों का बोझ बढ़ता जा रहा है. कानून मंत्रालय के मुताबिक दिसंबर 2018 तक देशभर की अदालतों में 3 करोड़ 42 लाख मुक़दमे लंबित थे जो फरवरी 2020 में बढ़कर 3 करोड़ 65 लाख हो गए.
सुप्रीम कोर्ट में दिसंबर 2018 में 56 हज़ार 994 मामले लंबित थे जो फरवरी 2020 में बढ़कर 60 हज़ार 603 हो गए. हालांकि हाईकोर्ट में मामले बढ़ने की बजाय घटे हैं. देश के 24 हाई कोर्ट्स में दिसंबर 2018 में 49 लाख 79 हज़ार मामले थे जो फरवरी 2020 में घटकर 46 लाख 15 हज़ार रह गए. जिला अदालतों का हाल सबसे बुरा है जहां दिसंबर 2018 में 2 करोड़ 92 लाख लंबित थे जो फरवरी 2020 में बढ़कर 3 करोड़ 19 लाख रह गए. अदालतों पर मुक़दमों का बढ़ता बोझ की सीधा मतलब यह है कि किसी भी आदमी के लिए जल्दी इंसाफ पाना दूर की कौड़ी है. देश के तमाम न्यायाधीश मुक़दमों के बढ़ते भार पर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं. केंद्र सरकार से कई बार मांग की गई है कि अदालतों और जजों की तदाद बढ़ाई जाए लेकिन मोदी सरकार के छह साल के कार्यकाल में भी न्यायिक व्यवस्था में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है. वीडियो देखिए नए आंकड़ों के मुताबिक निचली अदालतों के लिए 24 हज़ार 18 जजों के पद मंज़ूर हैं लेकिन तैनाती सिर्फ 19 हज़ार 160 जजों की है. यानी जजों के लिए स्वीकृत 21 फीसदी पद खाली पड़े हैं. साल 2013 में जजों के 23 फीसदी पद खाली पड़े थे और पिछले 7 सालों में सिर्फ 2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. ये आंकड़े बताते हैं कि देश की अदालतों में चक्कर लगाकर न्याय हासिल किसी संजीवनी बूटी लेन से कम नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में दिसंबर 2018 में 56 हज़ार 994 मामले लंबित थे जो फरवरी 2020 में बढ़कर 60 हज़ार 603 हो गए. हालांकि हाईकोर्ट में मामले बढ़ने की बजाय घटे हैं. देश के 24 हाई कोर्ट्स में दिसंबर 2018 में 49 लाख 79 हज़ार मामले थे जो फरवरी 2020 में घटकर 46 लाख 15 हज़ार रह गए. जिला अदालतों का हाल सबसे बुरा है जहां दिसंबर 2018 में 2 करोड़ 92 लाख लंबित थे जो फरवरी 2020 में बढ़कर 3 करोड़ 19 लाख रह गए. अदालतों पर मुक़दमों का बढ़ता बोझ की सीधा मतलब यह है कि किसी भी आदमी के लिए जल्दी इंसाफ पाना दूर की कौड़ी है. देश के तमाम न्यायाधीश मुक़दमों के बढ़ते भार पर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं. केंद्र सरकार से कई बार मांग की गई है कि अदालतों और जजों की तदाद बढ़ाई जाए लेकिन मोदी सरकार के छह साल के कार्यकाल में भी न्यायिक व्यवस्था में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है. वीडियो देखिए नए आंकड़ों के मुताबिक निचली अदालतों के लिए 24 हज़ार 18 जजों के पद मंज़ूर हैं लेकिन तैनाती सिर्फ 19 हज़ार 160 जजों की है. यानी जजों के लिए स्वीकृत 21 फीसदी पद खाली पड़े हैं. साल 2013 में जजों के 23 फीसदी पद खाली पड़े थे और पिछले 7 सालों में सिर्फ 2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. ये आंकड़े बताते हैं कि देश की अदालतों में चक्कर लगाकर न्याय हासिल किसी संजीवनी बूटी लेन से कम नहीं है.
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