प्रधानमंत्री मोदी की थाईलैंड यात्रा का अर्थ
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्रे मोदी तीन दिन के दौरे पर थाईलैंड पहुंचे हैं। पीएम मोदी थाईलैंड के प्रिमियर प्रयाग चान-ओ-चा से ASEAN समिट में मुलाकात करेंगे। इसके अलावा ईस्ट एशिया समिट और RCEP समिट में भी हिस्सा लेंगे। पीएम मोदी इन कार्यक्रमों के बाद भारतीय मूल के लोगों से मुलाकात करेंगे और इस दौरान गुरूनानक देव की 550वीं जयंती पर एक सिक्का लॉंच करेंगे। सवाल है कि इन बड़े कार्यक्रमों में शामिल होने के बाद भारत को क्या मिलेगा? भारत और थाईलैंड के बीच व्यापार को लेकर काफी असमानताएं हैं।
पिछले कई सालों से भारत और थाईलैंड के बीच व्यापार घाटे में ही रहा है। साल 2009-2013 तक भारत का निर्यात लगभग तिगुना हुआ, लेकिन उसके बाद से भारत और थाईलैंड के बीच व्यापार में काफी गिरावट दर्ज की गई है। साल 2014 में देश की सरकार बदलने के बाद भारत पश्चिमी देशों की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया। भारत के निर्यात में पिछले सालों में भारी गिरावट देखने को मिली। जब भारत ने हैवी मशीनें और कीमती पत्थर बेचना शुरू किया तो इसमें कुछ सुधार आया।
भारत और थाईलैंड के बीच आयात और निर्यात में काफी अंतर है। पिछले 9 सालों में भारत का थाईलैंड से आयात कमोबेश स्थिर ही रहे। जब भारत ने थाईलैंड से भारी मशीनें और प्लास्टिक आयात करना शुरू किया तो साल 2018 में इसमें 50 फीसदी की उछाल आई। इन आंकड़ों पर ग़ौर करने के बाद ये ये साफ हो जाता है कि बेहतर संपर्क और बुनियादी सुविधाओं के साथ थाईलैंड और भारत के बीच बड़े मियां और छोटे मियां वाले हालात रहे हैं। यदि भारत और ASEAN देशों की बात करें तो यहां भी हालात समान मालूम पड़ते हैं। साल 2009 में व्यापार जहां अच्छा चल रहा थी वहीं देश में सरकार बदलने के बाद साल 2014 से इसमें भी गिरावट दर्ज की गई। ASEAN और ईस्ट एशिया समिट, व्यापारिक संबंधों को तबतक मजबूती प्रदान नहीं कर सकता जबतक भारत साल 2009 से लटके रिज़नल कॉंप्रिहेंसिव पार्टनर्शिप पर हस्ताक्षर नहीं कर लेता। ASEAN में टैरिफ समता पर बातचीत समय लेने वाले और जटिल है। भारत के लिए सिंगापुर और ब्रुनेई के रूप में अलग-अलग देशों के साथ अपनी व्यापारिक प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाना काफी चुनौतीपूर्ण है। भारत में कृषि व्यापार पर ज्यादा टैरिफ लगता है जो एक चिंता का कारण भी है। भारत में खेती पर निर्भर लोगों की तादाद काफी बड़ी है। ASEAN, 80 के दशक के बाद से औद्दोगिक होना शुरू हुए। ASEAN देशों के मुक़ाबले भारत खेती पर 34 फीसदी टैरिफ लगाता है जबकि ASEAN देशों में ये केवल 13 फीसदी है। यही कारण है कि 498 वस्तुओं में से 302 वस्तुएं केवल खेती से संबंधित होते हैं। RCEP पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत टैरिफ कम करन के लिये बाध्य होगा, जिसका नुकसान सड़क पर पहले से विरोध कर रहे किसानों को होगा। 2016 की ASSOCHAM की एक रिपोर्ट ने भी सरकार के इस प्रकार के फैसले का विरोध किया है। जब पीएम मोदी और उनकी टीम तीन प्रमुख सम्मेलनों में बातचीत करने के लिये हिस्सा लेती है तो उन्हें ठंडे दिमाग से कुछ तथ्यों पर ध्यान देना होगा। भले ही भारत की जीडीपी ASEAN देशों के समान हों लेकिन वहां की प्रति व्यक्ति आय भारत के मुक़ाबले दोगुनी है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा 15 फीसदी है और लगभग 60 फीसदी लोग अपने पालन-पोषण के लिये खेती पर निर्भर हैं। थाईलैंड में बड़े-बड़े कार्यक्रम करने से इन तथ्यों को छुपा नहीं सकते।
भारत और थाईलैंड के बीच आयात और निर्यात में काफी अंतर है। पिछले 9 सालों में भारत का थाईलैंड से आयात कमोबेश स्थिर ही रहे। जब भारत ने थाईलैंड से भारी मशीनें और प्लास्टिक आयात करना शुरू किया तो साल 2018 में इसमें 50 फीसदी की उछाल आई। इन आंकड़ों पर ग़ौर करने के बाद ये ये साफ हो जाता है कि बेहतर संपर्क और बुनियादी सुविधाओं के साथ थाईलैंड और भारत के बीच बड़े मियां और छोटे मियां वाले हालात रहे हैं। यदि भारत और ASEAN देशों की बात करें तो यहां भी हालात समान मालूम पड़ते हैं। साल 2009 में व्यापार जहां अच्छा चल रहा थी वहीं देश में सरकार बदलने के बाद साल 2014 से इसमें भी गिरावट दर्ज की गई। ASEAN और ईस्ट एशिया समिट, व्यापारिक संबंधों को तबतक मजबूती प्रदान नहीं कर सकता जबतक भारत साल 2009 से लटके रिज़नल कॉंप्रिहेंसिव पार्टनर्शिप पर हस्ताक्षर नहीं कर लेता। ASEAN में टैरिफ समता पर बातचीत समय लेने वाले और जटिल है। भारत के लिए सिंगापुर और ब्रुनेई के रूप में अलग-अलग देशों के साथ अपनी व्यापारिक प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाना काफी चुनौतीपूर्ण है। भारत में कृषि व्यापार पर ज्यादा टैरिफ लगता है जो एक चिंता का कारण भी है। भारत में खेती पर निर्भर लोगों की तादाद काफी बड़ी है। ASEAN, 80 के दशक के बाद से औद्दोगिक होना शुरू हुए। ASEAN देशों के मुक़ाबले भारत खेती पर 34 फीसदी टैरिफ लगाता है जबकि ASEAN देशों में ये केवल 13 फीसदी है। यही कारण है कि 498 वस्तुओं में से 302 वस्तुएं केवल खेती से संबंधित होते हैं। RCEP पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत टैरिफ कम करन के लिये बाध्य होगा, जिसका नुकसान सड़क पर पहले से विरोध कर रहे किसानों को होगा। 2016 की ASSOCHAM की एक रिपोर्ट ने भी सरकार के इस प्रकार के फैसले का विरोध किया है। जब पीएम मोदी और उनकी टीम तीन प्रमुख सम्मेलनों में बातचीत करने के लिये हिस्सा लेती है तो उन्हें ठंडे दिमाग से कुछ तथ्यों पर ध्यान देना होगा। भले ही भारत की जीडीपी ASEAN देशों के समान हों लेकिन वहां की प्रति व्यक्ति आय भारत के मुक़ाबले दोगुनी है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा 15 फीसदी है और लगभग 60 फीसदी लोग अपने पालन-पोषण के लिये खेती पर निर्भर हैं। थाईलैंड में बड़े-बड़े कार्यक्रम करने से इन तथ्यों को छुपा नहीं सकते।
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