कृषि से जुड़े केन्द्र सरकार के तीन अध्यादेशों के ख़िलाफ़ किसान संगठनों का विरोध-प्रदर्शन
कृषि से जुड़े केन्द्र सरकार के तीन अध्यादेशों के ख़िलाफ हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसान सड़क पर उतर गए है। सड़क पर उतरे किसान फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन), कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और एसेंशियल एक्ट 1955 को लेकर लाए गए अध्यादेश को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
किसानों का कहना है कि फार्मर्स प्रड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) में बदलाव किया गया है। प्रर्दशनकारी किसानों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से मंडिकरण की व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी। इससे किसानों को कम मुनाफा होगा। इससे सबसे ज़्यादा मुनाफा कॉर्पोरेट और बिचौलियों को हेगा।
वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर का कहना है कि किसानों को उनकी फसल की बिक्री के लिए एपीएमसी एक्ट में बदलाव नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि एक नया एक्ट बनाया गया है जो व्यापार के लिए है। इसका नाम 'किसान उपज व्यापार वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अध्यादेश 2020' रखा गया है। किसानों का कहना है कि दूसरे अध्यादेश कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में बदलाव करने से किसानों को नुकसान होगा। किसान संगठनों ने कहा, 'किसान अपनी ही ज़मीन पर कंपनियों के मज़दूर बन जाएंगे और किसानों का अपना वजूद ख़त्म हो जाएगा। किसान संगठन यह भी कहते हैं कि इससे किसानों का मुनाफा नहीं बल्कि प्राइवेट कंपनियों और संस्थाओं का मुनाफा होगा। इसपर भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि 'इस अध्यादेश की आड़ में सरकार देश पर कृषि का पश्चिम मॉडल थोपना चाहती है। किसान महासंघ का मानना है कि भारतीय किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं की जा सकती। क्योंकि हमारे देश में कृषि व्यवसाय नहीं जीवनयापन का एक साधन है जबकि पश्चमि देशों में यह व्यवसाय है।' तीसरे एसेंशियल कमो़डिटी एक्ट 1955 में सरकार ने अध्यादेश लाकर बदलाव कर दिया है। इस बदलाव के साथ ही आलू, प्याज, दलहन, तिलहन जैसे तमाम फसलों के भंडारण पर लगी रोक हटा ली गई है। किसान संगठन मानते हैं कि इससे किसानों को नहीं बल्कि बड़ी कंपनियों को ही फायदा होगा। किसान संगठनों का कहना है कि इससे पुंजिवति वर्ग अनाज का भंडारण कर लेंगे और उसे औने-पौने दामों में बेचेंगे। जानकारों का कहना है कि हमारे देश में अधिकतर छोटे-मंझौले किसान हैं और उनके पास लंबे समय तक के भंडारण की ठीक व्यवस्था नहीं है। इससे पुंजिपति वर्ग भंडारण करके महंगे दामों में बेचेंगे और इसकी कालाबाज़ी शुरु हो जाएगी।
वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर का कहना है कि किसानों को उनकी फसल की बिक्री के लिए एपीएमसी एक्ट में बदलाव नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि एक नया एक्ट बनाया गया है जो व्यापार के लिए है। इसका नाम 'किसान उपज व्यापार वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अध्यादेश 2020' रखा गया है। किसानों का कहना है कि दूसरे अध्यादेश कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में बदलाव करने से किसानों को नुकसान होगा। किसान संगठनों ने कहा, 'किसान अपनी ही ज़मीन पर कंपनियों के मज़दूर बन जाएंगे और किसानों का अपना वजूद ख़त्म हो जाएगा। किसान संगठन यह भी कहते हैं कि इससे किसानों का मुनाफा नहीं बल्कि प्राइवेट कंपनियों और संस्थाओं का मुनाफा होगा। इसपर भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि 'इस अध्यादेश की आड़ में सरकार देश पर कृषि का पश्चिम मॉडल थोपना चाहती है। किसान महासंघ का मानना है कि भारतीय किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं की जा सकती। क्योंकि हमारे देश में कृषि व्यवसाय नहीं जीवनयापन का एक साधन है जबकि पश्चमि देशों में यह व्यवसाय है।' तीसरे एसेंशियल कमो़डिटी एक्ट 1955 में सरकार ने अध्यादेश लाकर बदलाव कर दिया है। इस बदलाव के साथ ही आलू, प्याज, दलहन, तिलहन जैसे तमाम फसलों के भंडारण पर लगी रोक हटा ली गई है। किसान संगठन मानते हैं कि इससे किसानों को नहीं बल्कि बड़ी कंपनियों को ही फायदा होगा। किसान संगठनों का कहना है कि इससे पुंजिवति वर्ग अनाज का भंडारण कर लेंगे और उसे औने-पौने दामों में बेचेंगे। जानकारों का कहना है कि हमारे देश में अधिकतर छोटे-मंझौले किसान हैं और उनके पास लंबे समय तक के भंडारण की ठीक व्यवस्था नहीं है। इससे पुंजिपति वर्ग भंडारण करके महंगे दामों में बेचेंगे और इसकी कालाबाज़ी शुरु हो जाएगी।
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