बिना इजाज़त, डीयू कैंपस में लगा दी गई सावरकर की मूर्ती
एबीवीपी के नेतृत्व वाली दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष शक्ति सिंह की अगुवाई में यूनिवर्सिटी प्रशासन की इजाज़त लिए बिना नॉर्थ कैंपस में मूर्तियां लगा दी हैै। इनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शहीद-ए-आज़म भगत सिंह और विनायक दामोदर सावरकर की मूर्ति लगाई गई है।
डीयूएसयू के अध्यक्ष शक्ति सिंह का दावा है कि उन्हें मजबूरन ऐसा करना पड़ा क्योंकि कैंपस में मूर्ति लगाने की मांग यूनिवर्सिटी प्रशासन लगातार अनसुना कर रहा था। हालांकि एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने रात के अंधेरे में मुर्ती लगाई थी, जब आसपास छात्र नहीं थे।
एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन ने कहा कि एबीवीपी ने रात के अंधेरे में चुपके से मूर्ति इसलिए लगाई, क्योंकि उन्हें विरोध का डर था। कुंदन ने कहा कि एनएसयूआई ने भी कैंपस में महात्मा गांधी की मूर्ति लगाने की मांग की थी जो नहीं मिली। मगर एबीवीपी ने यही काम जबरन कर लिया है। वहीं वामपंथी छात्र संगठन एआईएसए की दिल्ली इकाई की अध्यक्ष कवलप्रीत कौर ने सावरकर और भगत सिंह की मूर्ति एक साथ लगाए जाने का विरोध किया। कवलप्रीत ने अपने फेसबुक हैंडल पर लिखा, ‘भगत सिंह के साथ लगाकर आरएसएस और एबीवीवी ने सावरकर को एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी बनाने की कोशिश की है। भगत सिंह साम्राज्यवाद, सांप्रदायिक राजनीति के ख़िलाफ़ थे। उन्होंने अपना ज़िंदगी एक समाजवादी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए कुर्बान की जबकि वीडी सावरकर ने अंग्रेज़ों के सामने दया याचिकाएं लगाईं। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अहमदाबाद में हिंदू महासभा के सम्मेलन में द्विराष्ट्र के सिद्धांत का प्रस्ताव रखा और धर्म के आधार पर दो अलग हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र की मांग की। कवलप्रीत ने ये भी लिखा कि भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की आड़ में एबीवीपी सावरकर के विचारों को वैधता देने की कोशिश में है जोकि स्वीकार्य नहीं है। कुछ छात्रों का ये भी कहना है कि शहीद-ए-आज़म भगत सिंह साम्यवादी विचारधारा के मानने वाले और हिंदुत्ववादी विचारधारा के मुखरविरोधी थे, लेकिन वीडी सावरकर राजनीतिक हिंदुत्ववादी विचारधारा के जनक हैं। सावरकर 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के आठ मुलज़िमों में भी शामिल थे लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था.
एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन ने कहा कि एबीवीपी ने रात के अंधेरे में चुपके से मूर्ति इसलिए लगाई, क्योंकि उन्हें विरोध का डर था। कुंदन ने कहा कि एनएसयूआई ने भी कैंपस में महात्मा गांधी की मूर्ति लगाने की मांग की थी जो नहीं मिली। मगर एबीवीपी ने यही काम जबरन कर लिया है। वहीं वामपंथी छात्र संगठन एआईएसए की दिल्ली इकाई की अध्यक्ष कवलप्रीत कौर ने सावरकर और भगत सिंह की मूर्ति एक साथ लगाए जाने का विरोध किया। कवलप्रीत ने अपने फेसबुक हैंडल पर लिखा, ‘भगत सिंह के साथ लगाकर आरएसएस और एबीवीवी ने सावरकर को एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी बनाने की कोशिश की है। भगत सिंह साम्राज्यवाद, सांप्रदायिक राजनीति के ख़िलाफ़ थे। उन्होंने अपना ज़िंदगी एक समाजवादी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए कुर्बान की जबकि वीडी सावरकर ने अंग्रेज़ों के सामने दया याचिकाएं लगाईं। सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अहमदाबाद में हिंदू महासभा के सम्मेलन में द्विराष्ट्र के सिद्धांत का प्रस्ताव रखा और धर्म के आधार पर दो अलग हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र की मांग की। कवलप्रीत ने ये भी लिखा कि भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस की आड़ में एबीवीपी सावरकर के विचारों को वैधता देने की कोशिश में है जोकि स्वीकार्य नहीं है। कुछ छात्रों का ये भी कहना है कि शहीद-ए-आज़म भगत सिंह साम्यवादी विचारधारा के मानने वाले और हिंदुत्ववादी विचारधारा के मुखरविरोधी थे, लेकिन वीडी सावरकर राजनीतिक हिंदुत्ववादी विचारधारा के जनक हैं। सावरकर 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के आठ मुलज़िमों में भी शामिल थे लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था.
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