सिंधिया अकेले नहीं, राहुल गांधी के कई करीबी पार्टी में हाशिये पर या छोड़कर चले गए

by Rahul Gautam 4 years ago Views 4468

Scindia is not alone, many close associates of Rah
कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से किनारा कर लिया है। पार्टी से अलग होते ही उन्होंने लिखा कैसे उनके और पार्टी के रास्ते में लगभग एक साल पहले ही अलग होने लग गए थे। लेकिन सिंधिया अकेले नहीं हैं। दरअसल, एक लम्बी लिस्ट है राहुल गांधी के करीबियों की, जो अब या तो पार्टी में किनारे लगा दिए गए हैं या पार्टी छोड़कर जा चुके हैं।

18 साल तक कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया की बग़ावत एमपी की कमलनाथ सरकार के लिए ख़तरा बन गई है. सिंधिया कांग्रेस छोड़ चुके हैं और उनके गुट के कई कांग्रेसी विधायक पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं. राज्य में इस नए संकट के बाद कमलनाथ इस्तीफ़ा देने को तैयार नहीं हैं और बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए पूरा ज़ोर लगा रही है. हालांकि यह संघर्ष कांग्रेस-बीजेपी के वर्चस्व का नहीं बल्कि कांग्रेस में जारी अंदरुनी कलह का है. इसे सोनिया गांधी के क़रीबियों बनाम राहुल गांधी के चहेतों की लड़ाई भी कहा जा रहा है. 


इसकी शुरूआत 2014 के आमचुनाव में करारी हार के बाद हुई. तब पार्टी पर राहुल गांधी का नियंत्रण बढ़ता जा रहा था और उनके आसपास युवा कांग्रेस नेताओं की टीम आकार लेने लगी थी. मीडिया अक्सर इन युवा कांग्रेस नेताओं को टीम राहुल बताता था. इनमें हरियाणा के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर, मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम, मध्य प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव, झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार, दिल्ली कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन, त्रिपुरा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रद्योत देबराममन, राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया सरीखे नेता शामिल थे.

दिसंबर 2017 में राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद इन सभी नेताओं का कद बढ़ा लेकिन सच्चाई यह है कि इनमें से ज्यादातर नेता विधानसभा चुनावों और 2019 के आम चुनाव में बुरी तरह फ्लॉप रहे. इनमें पहला नाम अशोक तंवर का है जिनकी अगुवाई में पार्टी हरियाणा में गर्त में चली गई. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हरियाणा की कमान शैलजा कुमारी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंपी गई और अशोक तंवर ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया.

इसी तरह मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से संजय निरुपम हटाए गए. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अरुण यादव को हटाकर कमान कमलनाथ को सौंप दी गई. झारखण्ड में पूर्व आईपीएस अधिकारी अजोय कुमार को कांग्रेस ने चेहरा बनाया गया लेकिन पुराने नेता काम नहीं करने देते, ऐसा आरोप लगाकर उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी। दिल्ली में राहुल गाँधी ने अजय माकन को तरजीह दी लेकिन वो भी पार्टी को मज़बूत नहीं कर पाए। हाल यह है कि दिल्ली चुनाव में वो कहीं नज़र तक नहीं आए.

त्रिपुरा के पूर्व अध्यक्ष प्रद्योत देबराममन भी पार्टी छोड़ चुके हैं। उन्होंने भी पार्टी छोड़ते वक़्त कहा था कि राहुल गाँधी के करीबियों को एक-एक करके ठिकाना लगाया जा रहा है। राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को भी डिप्टी सीएम के पद से खुद को संतुष्ट करना पड़ा क्योंकि सत्ता सोनिया गांधी के क़रीबी अशोक गहलोत को सौंपी गई. गाहे-बगाहे इन दोनों के मतभेद की ख़बर भी आती रहती है।

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ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी अंदरुनी कलह के शिकार बताए जाते हैं. उन्होंने अपने इस्तीफ़े में लिखा है कि कांग्रेस से दूरी की शुरुआत लगभग एक साल पहले हुई जब उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनाया गया। उसके बाद पार्टी सत्ता में आई, तब वे मुख्यमंत्री के पद पर अड़े रहे लेकिन वहां भी बाज़ी कमलनाथ मार ले गए। कहा जा रहा है कि यह लड़ाई अभी भी थमी नहीं है. सोनिया गांधी के क़रीबी बनाम राहुल के क़रीबियों के बीच जारी इस लड़ाई में आगे भी नुकसान की आशंका है. 

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