नागरिकता क़ानून के चलते अब तक 80 मौतें, यूएनएचआरसी पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार आयोग इस क़ानून की बारीक़ी से निगरानी कर रहा है और इसे पहले ही बुनियादी रूप से भेदभाव वाला क़रार दे चुका है. विदेश मंत्रालय ने इसपर कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
विवादित नागरिकता संशोधन क़ानून पर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने भारत की सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. मानवाधिकार आयोग की कमिश्नर मिशेल बैशलेट ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ देश की सर्वोच्च अदालत में दख़ल याचिका दायर की है.
विदेश मंत्रालय इसपर तुरंत प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय ने प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार आयोग ने जेनेवा स्थित भारतीय मिशन को इत्तेला दी है कि उनके दफ़्तर ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर भारत की सुप्रीम कोर्ट में एक दख़ल याचिका दायर की है. नागरिकता संशोधन क़ानून भारत का आंतरिक मामला है और क़ानून बनाना भारतीय संसद का संप्रभु अधिकार है. हम पूरी दृढ़ता के साथ कह रहे हैं कि भारत की संप्रभुता से जुड़े मुद्दों पर किसी विदेशी पार्टी का कोई अधिकार नहीं है.’ रवीश कुमार ने यह भी कहा, ‘हमारी राय स्पष्ट है कि नागरिकता संशोधन क़ाननू संवैधानिक रूप से वैध हमारे संवैधानिक मूल्यों के मुताबिक है. यह क़ानून बंटवारे की त्रासदी से उपजे मानवाधिकार के मुद्दों पर हमारी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है. भारत क़ानून के मुताबिक चलने वाला एक लोकतांत्रिक देश है. हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका में हमारा पूरा भरोसा है. हमें विश्वास है कि हमारी आवाज़ और क़ानूनी रूप से टिकाऊ स्थिति के चलते सुप्रीम कोर्ट हमें दोषमुक्त करेगी.’
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विदेश मंत्रालय इसपर तुरंत प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय ने प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्रसंघ मानवाधिकार आयोग ने जेनेवा स्थित भारतीय मिशन को इत्तेला दी है कि उनके दफ़्तर ने नागरिकता संशोधन क़ानून पर भारत की सुप्रीम कोर्ट में एक दख़ल याचिका दायर की है. नागरिकता संशोधन क़ानून भारत का आंतरिक मामला है और क़ानून बनाना भारतीय संसद का संप्रभु अधिकार है. हम पूरी दृढ़ता के साथ कह रहे हैं कि भारत की संप्रभुता से जुड़े मुद्दों पर किसी विदेशी पार्टी का कोई अधिकार नहीं है.’ रवीश कुमार ने यह भी कहा, ‘हमारी राय स्पष्ट है कि नागरिकता संशोधन क़ाननू संवैधानिक रूप से वैध हमारे संवैधानिक मूल्यों के मुताबिक है. यह क़ानून बंटवारे की त्रासदी से उपजे मानवाधिकार के मुद्दों पर हमारी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है. भारत क़ानून के मुताबिक चलने वाला एक लोकतांत्रिक देश है. हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका में हमारा पूरा भरोसा है. हमें विश्वास है कि हमारी आवाज़ और क़ानूनी रूप से टिकाऊ स्थिति के चलते सुप्रीम कोर्ट हमें दोषमुक्त करेगी.’
संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार आयोग पहले ही इस क़ानून को बुनियादी रूप से भेदभाव करने वाला बता चुका है. 13 दिसंबर को जारी एक बयान में आयोग ने कहा था कि हम इस बात से चिंतित हैं कि भारत का नया नागरिकता संशोधन क़ानून बुनियादी रूप से भेदभाव करने वाला है. नागरिकता का नया क़ानून अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में दमन से बचने के लिए आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात करता है मगर मुसलमानों को यही सुविधा नहीं देता. सभी प्रवासियों की परिस्थिति चाहे जैसी हो, सम्मान, सुरक्षा और मानवाधिकार हासिल करने का उन्हें अधिकार है. संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार आयोग ने तब यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट नए क़ानून की सावधानी से समीक्षा करेगा और इसका ध्यान रखेगा कि यह क़ानून अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों को लेकर भारत की ज़िम्मेदारियों के मुताबिक है या नहीं. वीडियो देखिये विवादित नागरिकता क़ानून को लेकर देशभर में माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है. इस क़ानून की वजह से हुई हिंसक झड़पों, संघर्षों और दंगों में अभी तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है.Raveesh Kumar, MEA: India is a democratic country governed by the rule of law. We all have utmost respect for and full trust in our independent judiciary. We are confident that our sound and legally sustainable position would be vindicated by the Hon’ble Supreme Court.(4/4) https://t.co/JhQNZsq8hY
— ANI (@ANI) March 3, 2020
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