ख़बर ये है: लॉकडाउन में कुछ ख़बरें लॉक हो जाती है...
दो तरह की ख़बरें है।
ख़बर ये है कि विदेशों से हवाई जहाज़ से कुछ भारतीय लोगों को देश लाया गया।
ख़बर ये भी है कि मज़दूर रेल की पटरी पर कट कर मर गए। ख़बर ये है कि सरकार विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए चिंतित है। ख़बर ये भी है कि मज़दूर सैकड़ों मील पैदल चलकर घर जा रहे हैं। ख़बर ये है कि सिंगापुर, मालडीव्ज़, दुबई, अमरीका से सैकड़ों भारतीय वापस लाए जा रहे हैं। ख़बर ये भी है कि मजदूरों से ट्रेन का भारी किराया वसूला जा रहा है। ख़बर ये है कि लोग तरह-तरह के पकवान की फ़ोटो व्हाट्सप्प पर डाल रहे हैं। ख़बर ये भी है कि भारत में मज़दूर भूख से सड़क पर मर रहे हैं। ख़बर ये है कि शराब के ठेके खुल गए और हर दिन सरकार को भारी मुनाफ़ा हो रहा है। ख़बर ये भी है कि मज़दूरों पर पुलिस लाठियाँ बरसा रही है। ख़बर ये है कि सरकार लोगों की जान बचाने को तत्पर है। ख़बर ये भी है कि मजदूरों को कीड़े-मकोड़े की तरह उन पर स्प्रे कर दिया गया। ख़बर ये है कि इकोनॉमी डाउन है। ख़बर ये भी है कि मज़दूरों के काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं। मज़दूरों के हित के क़ानून ख़त्म किये जा रहे हैं। श्रम क़ानूनों में बदलाव किए जा रहे हैं। मज़दूरों को ज़बरदस्ती रोक लिया गया है। मज़दूरों के बिना काम नहीं चलता। न कारख़ानों में। ना खेतों में। मज़दूर है तो आप का काम चल रहा है। पर फ़िलहाल मज़दूर सड़क पर चल रहा है। दिन भर रात भर। पैदल, बदहवास। बद हवासी की हालात में महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले के करीब कुछ मज़दूर जो रेल की पटरी पर सो रहे थे, उनके ऊपर से मालगाड़ी गुज़र गई. इनमें से 16 की मौत हो गई. कुछ बच्चे भी शामिल थे. घटना सुबह करीब 6:30 बजे की है. ये सभी जालना से औरंगाबाद के लिए निकले थे. लॉकडाउन के कारण सड़क पर पुलिस का पहरा था। इसलिए रेल की पटरी के रास्ते घर जा रहे थे। थक कर बीच में सो गए। और नींद में एक मालगाड़ी उनके ऊपेर से गुज़र गई। रोटी की तलाश में शहर आए थे। लाशों के पास रोटियाँ बिखरी हुई मिली। लेकिन लॉकडाउन में कुछ ख़बरें लॉक हो जाती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है और कहा है कि वे इस हादसे से ख़फ़ा हैं और रेल मंत्री पीयूष गोयल से बात की है लेकिन हालात क़ाबू में नहीं हैं। लाखों मज़दूर सड़कों पर हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में क़रीब दस करोड़ लोग ऐसे हैं जो गांव से शहर, फिर शहर से वापस गांव या गांव से अन्य गांवों की ओर माइग्रेट करते हैं। यानी कमोबेश हर दस भारतीयों में एक। सबसे अधिक संख्या यूपी, बिहार कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान के मज़दूरों की है. साढ़े पाँच करोड़ सिर्फ़ यूपी से हैं। सवा तीन करोड़ पश्चिम बंगाल से हैं। पौने तीन करोड़ बिहार से हैं। डेढ़ करोड़ सर्कुलर माइग्रेशन करने वाले ये लोग शहरी इलाकों में अंसगठित कामगारों का बड़ा हिस्सा हैं, जो श्रम बाजार की सबसे कम आमदनी या सबसे न्यूनतम वेतन वाली जरूरतों में खपा दिए जाते हैं। 40 लाख लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की कोई गिनती नहीं है। पूरी दुनिया संकट से गुज़र रही है। दुनिया के कई देश इस संकट पर काफ़ी हद तक क़ाबू पा चुके हैं। देश की जनता को परेशानी से निकाल चुके हैं। भारत भी संकट से गुज़र रहा है। सरकार ने कई फ़ैसले लिए। जिनमें से कई फ़ैसले ग़लत भी हो सकते हैं। नीति आयोग के पूर्व सदस्य प्रोफ़ेसर अभिजीत सेन का कहना है कि, “लॉकडाउन को उपयुक्त तरीके से लागू नहीं किया गया। लॉकडाउन लागू करते समय प्रवासी मजदूरों के विषय पर पर्याप्त विचार एवं संवाद की कमी साफ़ दिखी है। इसके कारण ही प्रारंभ में कई स्थानों पर प्रवासी मजदूर बाहर निकल आए थे। अब कुछ सप्ताह गुजरने के बाद उनके समक्ष रोजगार एवं आजीविका की समस्या है।” “बड़ी संख्या में मजदूर अपने घरों को जाना चाहते हैं। जब लॉकडाउन खुलेगा और औद्योगिक इकाइयां पूरी तरह से काम करने लगेंगी, तब उद्योगों के सामने मजदूरों की कमी की समस्या होगी। इन चीजों के बारे में पहले विचार किया जाना चाहिए था। उद्योगों के साथ भी संवाद होना चाहिए था। यहां पर समन्वय की कमी दिखी है जिसका कुछ न कुछ प्रभाव तो पड़ेगा। कोविड-19 के रेड जोन में इसका असर ज्यादा हो सकता है।” हर संकट का सबसे ज्यादा खामियाजा उन लोगों को भुगतना होता है जो इसके लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं, ये भी सच है।
ख़बर ये भी है कि मज़दूर रेल की पटरी पर कट कर मर गए। ख़बर ये है कि सरकार विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए चिंतित है। ख़बर ये भी है कि मज़दूर सैकड़ों मील पैदल चलकर घर जा रहे हैं। ख़बर ये है कि सिंगापुर, मालडीव्ज़, दुबई, अमरीका से सैकड़ों भारतीय वापस लाए जा रहे हैं। ख़बर ये भी है कि मजदूरों से ट्रेन का भारी किराया वसूला जा रहा है। ख़बर ये है कि लोग तरह-तरह के पकवान की फ़ोटो व्हाट्सप्प पर डाल रहे हैं। ख़बर ये भी है कि भारत में मज़दूर भूख से सड़क पर मर रहे हैं। ख़बर ये है कि शराब के ठेके खुल गए और हर दिन सरकार को भारी मुनाफ़ा हो रहा है। ख़बर ये भी है कि मज़दूरों पर पुलिस लाठियाँ बरसा रही है। ख़बर ये है कि सरकार लोगों की जान बचाने को तत्पर है। ख़बर ये भी है कि मजदूरों को कीड़े-मकोड़े की तरह उन पर स्प्रे कर दिया गया। ख़बर ये है कि इकोनॉमी डाउन है। ख़बर ये भी है कि मज़दूरों के काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं। मज़दूरों के हित के क़ानून ख़त्म किये जा रहे हैं। श्रम क़ानूनों में बदलाव किए जा रहे हैं। मज़दूरों को ज़बरदस्ती रोक लिया गया है। मज़दूरों के बिना काम नहीं चलता। न कारख़ानों में। ना खेतों में। मज़दूर है तो आप का काम चल रहा है। पर फ़िलहाल मज़दूर सड़क पर चल रहा है। दिन भर रात भर। पैदल, बदहवास। बद हवासी की हालात में महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले के करीब कुछ मज़दूर जो रेल की पटरी पर सो रहे थे, उनके ऊपर से मालगाड़ी गुज़र गई. इनमें से 16 की मौत हो गई. कुछ बच्चे भी शामिल थे. घटना सुबह करीब 6:30 बजे की है. ये सभी जालना से औरंगाबाद के लिए निकले थे. लॉकडाउन के कारण सड़क पर पुलिस का पहरा था। इसलिए रेल की पटरी के रास्ते घर जा रहे थे। थक कर बीच में सो गए। और नींद में एक मालगाड़ी उनके ऊपेर से गुज़र गई। रोटी की तलाश में शहर आए थे। लाशों के पास रोटियाँ बिखरी हुई मिली। लेकिन लॉकडाउन में कुछ ख़बरें लॉक हो जाती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया है और कहा है कि वे इस हादसे से ख़फ़ा हैं और रेल मंत्री पीयूष गोयल से बात की है लेकिन हालात क़ाबू में नहीं हैं। लाखों मज़दूर सड़कों पर हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में क़रीब दस करोड़ लोग ऐसे हैं जो गांव से शहर, फिर शहर से वापस गांव या गांव से अन्य गांवों की ओर माइग्रेट करते हैं। यानी कमोबेश हर दस भारतीयों में एक। सबसे अधिक संख्या यूपी, बिहार कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान के मज़दूरों की है. साढ़े पाँच करोड़ सिर्फ़ यूपी से हैं। सवा तीन करोड़ पश्चिम बंगाल से हैं। पौने तीन करोड़ बिहार से हैं। डेढ़ करोड़ सर्कुलर माइग्रेशन करने वाले ये लोग शहरी इलाकों में अंसगठित कामगारों का बड़ा हिस्सा हैं, जो श्रम बाजार की सबसे कम आमदनी या सबसे न्यूनतम वेतन वाली जरूरतों में खपा दिए जाते हैं। 40 लाख लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की कोई गिनती नहीं है। पूरी दुनिया संकट से गुज़र रही है। दुनिया के कई देश इस संकट पर काफ़ी हद तक क़ाबू पा चुके हैं। देश की जनता को परेशानी से निकाल चुके हैं। भारत भी संकट से गुज़र रहा है। सरकार ने कई फ़ैसले लिए। जिनमें से कई फ़ैसले ग़लत भी हो सकते हैं। नीति आयोग के पूर्व सदस्य प्रोफ़ेसर अभिजीत सेन का कहना है कि, “लॉकडाउन को उपयुक्त तरीके से लागू नहीं किया गया। लॉकडाउन लागू करते समय प्रवासी मजदूरों के विषय पर पर्याप्त विचार एवं संवाद की कमी साफ़ दिखी है। इसके कारण ही प्रारंभ में कई स्थानों पर प्रवासी मजदूर बाहर निकल आए थे। अब कुछ सप्ताह गुजरने के बाद उनके समक्ष रोजगार एवं आजीविका की समस्या है।” “बड़ी संख्या में मजदूर अपने घरों को जाना चाहते हैं। जब लॉकडाउन खुलेगा और औद्योगिक इकाइयां पूरी तरह से काम करने लगेंगी, तब उद्योगों के सामने मजदूरों की कमी की समस्या होगी। इन चीजों के बारे में पहले विचार किया जाना चाहिए था। उद्योगों के साथ भी संवाद होना चाहिए था। यहां पर समन्वय की कमी दिखी है जिसका कुछ न कुछ प्रभाव तो पड़ेगा। कोविड-19 के रेड जोन में इसका असर ज्यादा हो सकता है।” हर संकट का सबसे ज्यादा खामियाजा उन लोगों को भुगतना होता है जो इसके लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं, ये भी सच है।
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