हिमाचल प्रदेश: बंदरों के आतंक से परेशान हैं किसान, मारने पर सरकार दे रही है एक हज़ार का इनाम
हाल ही में हिमाचल किसान सभा की दो दिवसीय बैठक के दौरान, किसानों ने कबूला कि अपनी फसलों को उत्पाती बंदरों के प्रकोप से बचाने के लिए उन्हें ज़हर देकर मारने की कोशिश की है। शिमला, सोलन, सिरमौर और ऊना के कई जिलों के किसान बंदरों से बहुत ज़्यादा परेशान हैं। किसान, चूहे मारने वाली दवाई का इस्तेमाल कर बंदरों का सफाया कर है।
किसानों का कहना है की करोड़ों रुपय की फसल बर्बाद हो रही है लेकिन हिमाचल सरकार से शिकायत के बावजूद कोई सुनवाई नहीं है और ना ही वन विभाग ने इनकी कोई सुध ली है। किसानों ने परेशान होकर मक्का, गेहूं और फलों सहित कई अन्य फसलों की खेती बंद कर दी है। एक रिपोर्टें के मुताबिक बंदरों का आतंक 10 जिलों की 2,500 पंचायतों में फैला हुआ है और नुकसान क़रीब 500 करोड़ रुपये प्रति वर्ष से अधिक आंका गया है।
लेकिन किसानों द्वारा बंदरों को ज़हर देकर मारने से पर्यावरण पर ख़तरा पैदा हो गया है। ज़हर खाकर मरने वाले बंदर को अगर दूसरे जंगली जानवर खाते हैं तो उनकी भी मौत हो जाती है। अगर ये बंदर किसी नदी या तालाब के किनारे मरते हैं तो पूरा पानी ज़हरीला हो सकता है। हालाँकि उन बंदरों को सरकार ने मारने की इजाज़त दे रखी है जो नुक़सान पहुँचा रहे हैं। वहीं सरकार ने इन बंदरों को मारने पर एक हज़ार रुपए ईनाम की भी घोषणा कर रखी है लेकिन शर्त ये है कि ज़हर देकर मारने वाले लोगों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। इसी प्रकार की समस्या उत्तराखंड के किसान भी झेल रहे हैं। हिंदू धर्म में बंदरों को भगवान हनुमान के रूप में देखा जाता है, इसलिए कई बार सरकारें बंदरों की आबादी क़ाबू करने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठा पाती हैं।
लेकिन किसानों द्वारा बंदरों को ज़हर देकर मारने से पर्यावरण पर ख़तरा पैदा हो गया है। ज़हर खाकर मरने वाले बंदर को अगर दूसरे जंगली जानवर खाते हैं तो उनकी भी मौत हो जाती है। अगर ये बंदर किसी नदी या तालाब के किनारे मरते हैं तो पूरा पानी ज़हरीला हो सकता है। हालाँकि उन बंदरों को सरकार ने मारने की इजाज़त दे रखी है जो नुक़सान पहुँचा रहे हैं। वहीं सरकार ने इन बंदरों को मारने पर एक हज़ार रुपए ईनाम की भी घोषणा कर रखी है लेकिन शर्त ये है कि ज़हर देकर मारने वाले लोगों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। इसी प्रकार की समस्या उत्तराखंड के किसान भी झेल रहे हैं। हिंदू धर्म में बंदरों को भगवान हनुमान के रूप में देखा जाता है, इसलिए कई बार सरकारें बंदरों की आबादी क़ाबू करने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठा पाती हैं।
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