सैलानियों के बिना सूने हैं बनारस के घाट, नाविक बोले- घर में खाने को एक दाना नहीं
लॉकडाउन में काम बंद होने से हर वर्ग परेशान है लेकिन समाज के कमज़ोर तबक़े पर इसकी मार ज़्यादा पड़ रही है. उसके लिए लॉकडाउन में खाली बैठे रहना बेहद मुश्किल है. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के मल्लाहों का यही हाल है जो अपने सांसद से ख़ुश नहीं हैं.
मल्लाहों के मुताबिक बनारस के 80 से ज़्यादा घाटों पर तकरीबन 3 हज़ार 500 नावें चलती थीं. एक नाविक हर दिन 300-400 रूपये तक कमा लेता था लेकिन लॉकडाउन में आमदनी पूरी तरह ठप है.
मल्लाहों के मन में यह टीस भी है कि केंद्र सरकार के लाखों करोड़ के राहत पैकेज में उनके लिए कुछ भी नहीं है. मल्लाहों ने कहा कि कैश ट्रांसफर न सही लेकिन सरकार ने लोन का भी कोई इंतज़ाम नहीं किया. दिक़्क़त यह है कि लॉकडाउन के दो महीने किसी तरह कट जाएंगे लेकिन नाविकों का संघर्ष नहीं ख़त्म होगा. जून के आख़िर में मॉनसून दस्तक दे देता है और गंगा का जल स्तर बढ़ने के बाद नदी में नाव नहीं उतरती. मल्लाहों ने नदी से मछली पकड़कर अपने परिवार का पेट पालने की कोशिश की तो पुलिस ने उनसे रिश्वत मांगना शुरू कर दिया. इलाहाबाद से बनारस तक के बीच मल्लाहों की बड़ी आबादी है लेकिन परिवार के लिए एक वक़्त का खाना चलाना भी अब मुश्किल हो गया है. घर में जमा पूंजी ख़त्म है. छोटे-मोटे गहने भी बेचे जा चुके हैं और कर्ज़ तक लेना पड़ा है. बनारस में मल्लाहों की बड़ी आबादी का परिवार सैलानियों से चलता था. मगर कोरोना की महामारी से टूरिज़्म सेक्टर की कमर टूट गई है. बनारस में सैलानी कब लौटेंगे और मल्लाहों की ज़िंदगी पटरी पर कब लौटेगी, यह कोई नहीं जानता.
मल्लाहों के मन में यह टीस भी है कि केंद्र सरकार के लाखों करोड़ के राहत पैकेज में उनके लिए कुछ भी नहीं है. मल्लाहों ने कहा कि कैश ट्रांसफर न सही लेकिन सरकार ने लोन का भी कोई इंतज़ाम नहीं किया. दिक़्क़त यह है कि लॉकडाउन के दो महीने किसी तरह कट जाएंगे लेकिन नाविकों का संघर्ष नहीं ख़त्म होगा. जून के आख़िर में मॉनसून दस्तक दे देता है और गंगा का जल स्तर बढ़ने के बाद नदी में नाव नहीं उतरती. मल्लाहों ने नदी से मछली पकड़कर अपने परिवार का पेट पालने की कोशिश की तो पुलिस ने उनसे रिश्वत मांगना शुरू कर दिया. इलाहाबाद से बनारस तक के बीच मल्लाहों की बड़ी आबादी है लेकिन परिवार के लिए एक वक़्त का खाना चलाना भी अब मुश्किल हो गया है. घर में जमा पूंजी ख़त्म है. छोटे-मोटे गहने भी बेचे जा चुके हैं और कर्ज़ तक लेना पड़ा है. बनारस में मल्लाहों की बड़ी आबादी का परिवार सैलानियों से चलता था. मगर कोरोना की महामारी से टूरिज़्म सेक्टर की कमर टूट गई है. बनारस में सैलानी कब लौटेंगे और मल्लाहों की ज़िंदगी पटरी पर कब लौटेगी, यह कोई नहीं जानता.
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