'स्वच्छ भारत' में हर साल बढ़ रहा है गटर साफ करने वालों के मौत का आंकड़ा
गटर/ सेप्टिक टैंक की सफ़ाई करते हुए मरने का शर्मनाक सिलसिला देश में जारी है। हर साल सैकड़ों लोग इस तकलीफदेह और जानलेवा काम को करते हुए मारे जाते है। गुरूवार को भी तमिलनाडु के थुथुकुडी जिले में चार युवकों की सेप्टिक टैंक में घुस कर सफाई करते समय मौत हो गई। मरने वाले 20 से 24 साल के युवक थे। उनकी पहचान पंडी (24), इसकिराजा (20), बाला (23) और दिनेश (20) के रूप में हुई है जो पड़ोसी ज़िले तिरुनेलवेली के रहने वाले थे।
4 में से 3 युवक तो पहले भी गटर की सफाई करते रहे थे लेकिन 20 वर्षीय दिनेश उनके साथ गटर में इसलिए उतरा था क्यूंकि कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन के बाद उसके पास कोई काम नहीं था। अब पुलिस ने तेज़ी दिखाते हुए इस मामले में घर के मालिक के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कर ली है। बता दे, हर साल देश में सबसे ज्यादा गटर और सीवर साफ़ करते हुए मौते तमिल नाडु में ही होती है।
वैसे तो मैनुअल स्केवेंजिंग यानि हाथ से मैला ढोने का काम एक जुर्म है जिसे 2013 में ही सरकारी तौर पर रोक लगा दी गयी थी लेकिन फिर भी हर साल इसकी वजह से कई निर्दोष लोगो की जान जाती है। देश के हर कोने से ऐसे मामले सामने आते रहते है जहां स्वच्छता कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के टैंक और गटर साफ करने के लिए उतारा जाता है। सरकारी आंकड़े खुद गवाही देते है की कैसे हर साल सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए मरने वालो का आंकड़ा कम होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है। सरकार खुद मानती है की साल 2019 में पुरे देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए 110 लोगों की जान चली गई थी। वहीं मंत्रालय के मुताबिक 2018 में 66, 2017 में 83 और 2016 में 50 लोगों की मौत सीवर की सफ़ाई करने के दौरान हुई है। मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड इंपावरमेंट के आंकड़े ये भी बताते है की भले ही सरकार ने मैला ढोने की प्रथा पर कानून बनाकर रोक लगा दी लेकिन आज भी देश में तक़रीबन 60 हज़ार लोग मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं. गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तो ये संख्या लाखो में है। 21वीं सदी के भारत के लिए यह आंकड़ा किसी शर्म से कम नहीं है.
वैसे तो मैनुअल स्केवेंजिंग यानि हाथ से मैला ढोने का काम एक जुर्म है जिसे 2013 में ही सरकारी तौर पर रोक लगा दी गयी थी लेकिन फिर भी हर साल इसकी वजह से कई निर्दोष लोगो की जान जाती है। देश के हर कोने से ऐसे मामले सामने आते रहते है जहां स्वच्छता कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के टैंक और गटर साफ करने के लिए उतारा जाता है। सरकारी आंकड़े खुद गवाही देते है की कैसे हर साल सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए मरने वालो का आंकड़ा कम होने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है। सरकार खुद मानती है की साल 2019 में पुरे देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए 110 लोगों की जान चली गई थी। वहीं मंत्रालय के मुताबिक 2018 में 66, 2017 में 83 और 2016 में 50 लोगों की मौत सीवर की सफ़ाई करने के दौरान हुई है। मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड इंपावरमेंट के आंकड़े ये भी बताते है की भले ही सरकार ने मैला ढोने की प्रथा पर कानून बनाकर रोक लगा दी लेकिन आज भी देश में तक़रीबन 60 हज़ार लोग मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं. गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तो ये संख्या लाखो में है। 21वीं सदी के भारत के लिए यह आंकड़ा किसी शर्म से कम नहीं है.
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