मोदी सरकार में स्टॉक मार्केट में बर्बादी का रिकॉर्ड बन गया
मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में शेयर की कीमतों में 50 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ था लेकिन अब शेयर मार्केट का गणित पूरी तरह बिगड़ चुका है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में शेयर धारकों का जितना पैसा स्टॉक मार्किट में स्वाहा हुआ, उतना ब्रिटेन को छोड़कर पूरी दुनिया में कहीं नहीं हुआ. आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था की तरह कैपिटल मार्केट्स भी सिकुड़ रही है.
पिछले 1 साल में शेयर धारकों के 543 बिलियन डॉलर धुआँ हो चुके हैं. तबाही का यह आंकड़ा अमेरिका, चीन और फ्रांस जैसे देशों में देखने को नहीं मिला जहां कोरोना महामारी की चोट ज़्यादा गहरी है. देश की विकास दर 11 साल के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है. कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते जून में भारत की अर्थव्यवस्था 25 फीसदी तक सिकुड़ जाएगी.
तबाही के आंकड़े बताते हैं कि निवेशकों का विश्वास अर्थव्यवस्था और पीएम मोदी की प्राथमिकताओं को लेकर बुरी तरह हिल गया है. नागरिकता कानून, ट्रिपल तलाक़ और कश्मीर की स्वायत्ता खत्म करने में सरकार इस क़दर व्यवस्त हो गई कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर कोई ख़ास तरक़्क़ी नहीं हुई. नोटबंदी और जीएसटी से जो धक्का जीडीपी को लगना था, वो अलग लगा. हाल यह है कि 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से भारतीय कंपनियां अपने मुनाफे के लक्ष्य से 23 फीसदी तक पीछे रह जा रही हैं. वीडियो देखिए आंकड़े यह भी बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के 6 साल के कार्यकाल में इक्विटी मार्केट 178 बिलियन डॉलर तक फूला जबकि इतने ही वक़्त में मनमोहन सिंह की सरकार में इक्विटी मार्किट में 1.06 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई थी. मनमोहन सरकार ने इसी दौरान 2008 की वैश्विक मंदी को भी झेला था. बीते सोमवार को अंतरराष्ट्रीय रेटिंग्स एजेंसी मूडी ने भारत को निवेश के तौर पर नेगेटिव केटेगरी में रखा है. हालात बिगड़ने पर मूडी भारत को जंक कैटगरी में डाल सकता है. यानी भारतीय अर्थव्यवस्था कबाड़ होने के क़रीब पहुंच चुकी है. अब हर किसी की नज़र एसएंडपी और फिच जैसी एजेंसियों पर है कि वे भारत की रेटिंग किस कैटगरी में डालते हैं.
तबाही के आंकड़े बताते हैं कि निवेशकों का विश्वास अर्थव्यवस्था और पीएम मोदी की प्राथमिकताओं को लेकर बुरी तरह हिल गया है. नागरिकता कानून, ट्रिपल तलाक़ और कश्मीर की स्वायत्ता खत्म करने में सरकार इस क़दर व्यवस्त हो गई कि आर्थिक सुधार के मोर्चे पर कोई ख़ास तरक़्क़ी नहीं हुई. नोटबंदी और जीएसटी से जो धक्का जीडीपी को लगना था, वो अलग लगा. हाल यह है कि 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से भारतीय कंपनियां अपने मुनाफे के लक्ष्य से 23 फीसदी तक पीछे रह जा रही हैं. वीडियो देखिए आंकड़े यह भी बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के 6 साल के कार्यकाल में इक्विटी मार्केट 178 बिलियन डॉलर तक फूला जबकि इतने ही वक़्त में मनमोहन सिंह की सरकार में इक्विटी मार्किट में 1.06 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई थी. मनमोहन सरकार ने इसी दौरान 2008 की वैश्विक मंदी को भी झेला था. बीते सोमवार को अंतरराष्ट्रीय रेटिंग्स एजेंसी मूडी ने भारत को निवेश के तौर पर नेगेटिव केटेगरी में रखा है. हालात बिगड़ने पर मूडी भारत को जंक कैटगरी में डाल सकता है. यानी भारतीय अर्थव्यवस्था कबाड़ होने के क़रीब पहुंच चुकी है. अब हर किसी की नज़र एसएंडपी और फिच जैसी एजेंसियों पर है कि वे भारत की रेटिंग किस कैटगरी में डालते हैं.
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