GoFlashback - हिटलर की ख़ातिर 'ज़हर चखने' वाली औरत की कहानी

by Ritu Versha 4 years ago Views 4690

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बतौर हिटलर की फूड टेस्टर रह चुकी मार्गोट वोक के लिए भोजन किसी घातक ऑनलाइन गेम के एक खेल जैसा था जिसमें हर निवाला उनकी जान भी ले सकता था. फिर भी मजबूरन उन्हें वो खाना खाना ही पड़ता था. हालाँकि, उन्हें जो भोजन दिया जाता था, वो काफ़ी लज़ीज़ हुआ करता था लेकिन ये किसी की दरियादिली का नतीज़ा नहीं था.

दरसल, 25 वर्षीय मार्गोट को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की जान बचाने का काम दिया गया था. उस समय ऐसी अफवाह थी ब्रिटिश हिटलर को ज़हर देना चाहते है. इस वजह से हिटलर ने कभी मांस नहीं खाया। वे केवल शाकाहारी भोजन में शामिल चावल, नूडल्स, मिर्च, मटर और फूलगोभी खाया करते थे.


इस शाकाहारी भोजन को फ़ूड टेस्टर्स पहले चखा करती थीं ताकि उसमें ज़हर है या नहीं, ये पता लग सके. मार्गोट प्रशिया के रास्टेनबर्ग स्थित मुख्यालय में कार्यरत 15 महिलाओं में से एक थीं जिनका इस्तेमाल गिनी पिग की तरह किया जाता था और वो हमेशा इसी दहशत में रहती थी कि पता नहीं किस निवाले पर उनकी मौत लिखी होगी.

दिलचस्पी की बात ये है कि इस बात की भनक दिसंबर 2012 के पहले किसी को नहीं थी. खुद मार्गोट ने 96 साल की उम्र में पहली बार हिटलर की फूड टेस्टर होने के काम को ज़ाहिर किया था.

मार्गोट ने कहा कि हिटलर शाकाहारी था, इसीलिये जो खाना चखना होता था वह शाकाहारी ही होता था। उन ढाई साल के दौरान हम 14 लडकियां एक से एक लजीज खाना खाया करती थीं, लेकिन साथ ही हमें बहुत डर लगता था कि पता नहीं इस बार अगर खाने में जहर मिला हो, तो हमारा मरना तय है।

उस डर को याद करते हुए मार्गोट कहती है कि हर मील को खाते हुए उन्हें ये डर था कि कहीं वो मील उनकी आखरी मील न हो जाये। फिर वे एक घंटा इंतजार करते थे कि कहीं वे बीमार तो नहीं हो रहे. जब ऐसा नहीं होता था तो वे ख़ुशी से फूट कर रोने लगती थीं।

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