दुनिया की सर्वश्रेस्थ 'माँ' बना ये पिता
पुणे के एक पुरुष सॉफ्टवेयर इंजीनियर को विमेंस डे के दिन 'दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मम्मी' के ख़िताब से नवाज़ा जाएगा। दरअसल, आदित्य तिवारी नाम के इस शख्स ने 4 साल पहले डाउन सिंड्रोम से पीड़ित एक बच्चे को गोद लिया था और तभी से उसका ख्याल एक माँ की तरह ही रख रहे है।
सिर्फ एक औरत को ही माँ का दर्जा दिया जा सकता है, इस बात को गलत साबित किया है पुणे में रहने वाले इस पिता ने। पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर, आदित्य तिवारी ने 2016 में डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे को गोद लिया था। ये एक ऐसी अवस्था होती है जिसमे बौद्धिक क्षमता सामान्य व्यक्ति से कम होती है।
आदित्य का कहना है की ऐसे कई डिसेबल्ड बच्चे हैं जिन्हे कोई गोद नहीं लेना चाहता मगर, हर बच्चे को एक परिवार की ज़रूरत होती है और वे एक ऐसे बच्चे को परिवार और प्यार देकर अपनाना चाहते थे। आदित्य ने अपने बच्चे को सिंगल पैरेंट के बतौर अडॉप्ट किया और उसकी अच्छी परवरिश के लिए अपनी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी तक छोड़ दी। ऐसा कर के वे सबसे कम उम्र में किसी बच्चे को गोद लेने वाले पहले पुरुष बन गए। अब 8 मार्च को इंटरनेशनल विमेंस डे के दिवस उन्हें 'दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मम्मी' के ख़िताब से नवाज़ा जायेगा ताकि उनके जीवन से और लोगो को प्रेरणा मिल सके। इसके लिए बेंगलुरु में वैमपॉवर नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन होगा जिसमे आदित्य को इस खिताब से सम्मान्नित किया जाएगा। साथ ही वे इस कार्यक्रम में होने वाले पैनल डिस्कशन का भी हिस्सा रहेंगे ताकि वे अपने अनुभव सांझा कर सके। अवनीश को अडॉप्ट करने के बाद से आदित्य ने कई सेमिनार/वर्कशॉप में हिस्सा लिया है ताकि दुनिया को बताया जा सके की ऐसे डिफरेंटली एबल्ड बच्चों की परवरिश कैसे की जाए। अवनीश को अपनाने के बाद ही उन्होंने महसूस किया कि भारत में बौद्धिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए कोई अलग श्रेणी नहीं थी, न ही सरकार ने उन्हें विकलांग मान रही थी। इसके बाद उन्होंने सरकार को कई ऑनलाइन याचिका भेजी और ऐसे बच्चों के लिए एक अलग श्रेणी बनाने की अपील की। वीडियो देखिये आदित्य के इन्हीं प्रयासों से भारत में इंटेलेक्चुअली डिसएबल्ड बच्चों की एक अलग केटेगरी बन सकी। आदित्य ने जब अवनीश को अडॉप्ट किया, तब वह केवल 22 महीने का था। एडॉप्शन के बाद उन्हें एक लम्बी कानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़नी पड़ी और और छोटी उम्र में एक बच्चे के पालन पोषण के लिए कई सवालों का सामना करना पड़ा । मगर उन्होंने ना कभी हार मानी और ना ही अवनीश के प्रति अपनी ममता को टूटने दिया।
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आदित्य का कहना है की ऐसे कई डिसेबल्ड बच्चे हैं जिन्हे कोई गोद नहीं लेना चाहता मगर, हर बच्चे को एक परिवार की ज़रूरत होती है और वे एक ऐसे बच्चे को परिवार और प्यार देकर अपनाना चाहते थे। आदित्य ने अपने बच्चे को सिंगल पैरेंट के बतौर अडॉप्ट किया और उसकी अच्छी परवरिश के लिए अपनी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी तक छोड़ दी। ऐसा कर के वे सबसे कम उम्र में किसी बच्चे को गोद लेने वाले पहले पुरुष बन गए। अब 8 मार्च को इंटरनेशनल विमेंस डे के दिवस उन्हें 'दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मम्मी' के ख़िताब से नवाज़ा जायेगा ताकि उनके जीवन से और लोगो को प्रेरणा मिल सके। इसके लिए बेंगलुरु में वैमपॉवर नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन होगा जिसमे आदित्य को इस खिताब से सम्मान्नित किया जाएगा। साथ ही वे इस कार्यक्रम में होने वाले पैनल डिस्कशन का भी हिस्सा रहेंगे ताकि वे अपने अनुभव सांझा कर सके। अवनीश को अडॉप्ट करने के बाद से आदित्य ने कई सेमिनार/वर्कशॉप में हिस्सा लिया है ताकि दुनिया को बताया जा सके की ऐसे डिफरेंटली एबल्ड बच्चों की परवरिश कैसे की जाए। अवनीश को अपनाने के बाद ही उन्होंने महसूस किया कि भारत में बौद्धिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए कोई अलग श्रेणी नहीं थी, न ही सरकार ने उन्हें विकलांग मान रही थी। इसके बाद उन्होंने सरकार को कई ऑनलाइन याचिका भेजी और ऐसे बच्चों के लिए एक अलग श्रेणी बनाने की अपील की। वीडियो देखिये आदित्य के इन्हीं प्रयासों से भारत में इंटेलेक्चुअली डिसएबल्ड बच्चों की एक अलग केटेगरी बन सकी। आदित्य ने जब अवनीश को अडॉप्ट किया, तब वह केवल 22 महीने का था। एडॉप्शन के बाद उन्हें एक लम्बी कानूनी और सामाजिक लड़ाई लड़नी पड़ी और और छोटी उम्र में एक बच्चे के पालन पोषण के लिए कई सवालों का सामना करना पड़ा । मगर उन्होंने ना कभी हार मानी और ना ही अवनीश के प्रति अपनी ममता को टूटने दिया।
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