सोशल डिस्टेंसिंग यानी 'दूर से सलाम'

by Darain Shahidi 3 years ago Views 5328

This time Salute from afar
गले मिलना भूल जाइए 

इस बार ईद के मौक़े पर दूर से सलाम,


दूर से सलाम क्यूँकि दूरी रखनी है। 

दूर से सलाम क्यूँकि कोरोना का डर है। 

दूर से सलाम क्यूँकि नौकरी चली गई।

दूर से सलाम क्यूँकि व्यापार ठप्प है। 

दूर से सलाम क्यूँकि बाज़ार बंद हैं। 

वीडियो देखिये 

बड़े छोटे सभी व्यापारी ईद का इंतज़ार करते हैं क्यूँकि ये धंधे का सीज़न होता है। लेकिन आज बाज़ार बंद है और जहां बाज़ार खुले भी हैं वहां से ख़रीदार ग़ायब है। ख़रीदार के ग़ायब होने के कई कारण हैं। सोशल डिस्टेंसिंग एक बड़ी वजह है लेकिन उससे भी बड़ी वजह है एक डर जो ईद मनाने वालों को है। कहीं कोरोना फैलाने का आरोप अब ईद की ख़रीदारी करने वालों पर ना आ जाए। फ़ेक विडीओ वाइरल होने का डर है। ये डर ऐसा डर है जिसने करोड़ों के धंधे को चौपट कर दिया है। ईद तो लोग जैसे तैसे मना लेंगे। पर क्या उद्योग धंधों को वापस पटरी पर लाने का कोई प्लान सरकार के पास है। अगर नहीं है तो क्या जनता ऐसी सरकार को भी दूर से सलाम कर देगी? क्या विपक्ष ने इस संकट में अपनी ज़िम्मेदारी निभाई ? ज़ोरदार तरीक़े से जनता के हक़ में आवाज़ उठाई? अगर नहीं तो ऐसे विपक्ष को भी दूर से सलाम। 

काम न मिलने और जरूरी सामान की खरीद-फरोख्त न होने की वजह से बहुत से लोग ऐसे हैं जो खाने के लिए भी तरस गए हैं। ऐसे भी बहुत से लोग हैं, जो किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना चाहते और उनके घरों में राशन तक नहीं है। ऐसे लोग हमारे आसपास किसी भी धर्म-मज़हब के हो सकते हैं। ईद की खरीदारी से पहले जरूरतमंदों की मदद जरूरी है। 

भारत में त्योहारों का अर्थव्यवस्था में योगदान है। अर्थव्यवस्था बिगड़ी तो त्योहार फीके, ईद हो या दिवाली। त्योहार के दौरान कंज्यूमर स्पेंडिंग ऊपर जाती है और इकॉनमी को बल मिलता है।  

फीकी पड़ी हुई ईद का सबसे अधिक असर पड़ा है कपड़ा उद्योग पर। ईद में नए कपड़े पहनने का रिवाज हैं। मुसलमानों में ये सुन्नत माना जाता है क्यूँकि ये मान्यता है कि पैग़म्बर मुहम्मद साहब नए कपड़े पहनते थे। इसलिए ईद पर नए कपड़ों की अहमियत बढ़ जाती है। लेकिन इस बार नए कपड़े नहीं बिक रहे हैं। 

नए कपड़ों को दूर से सलाम। अलग अलग संगठन अपील कर रहे हैं कि इस बार ईद में पुराने कपड़े पहन कर काम चलाएं। जिनके पास पैसे नहीं हैं वो तो मजबूर हैं लेकिन जिनके पास पैसे हैं वो भी कह रहे हैं कि नए कपड़े ना ख़रीदें ऑनलाइन भी ना ख़रीदें। इससे बेहतर है कि किसी को खाना खिला दें। मदद करें। दान दें। 

लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। कंज्यूमर स्पेंडिंग का जो ट्रेंड है उसे देखने पर साफ़ पता चलता है कि ईद से पहले बड़े पैमाने पर नए कपड़े ख़रीदे और बेचे जाते हैं। ईद पर नए कपड़ों की ख़रीदारी न करने का असर कपड़ा उद्योग पर पड़ सकता है। भारत में टेक्सटाइल इंडस्ट्री ऐग्रिकल्चर के बाद सबसे अधिक रोज़गार देता है। आपको मालूम ही है की गुजरात महाराष्ट्र और दक्षिण के कई प्रदेशों में जहां ये उद्योग फल फूल रहा था कोरोना के कारण बर्बादी की कगार पर है। 

मिनिस्ट्री ऑफ़ टेक्सटाइल के दो साल पुराने आंकड़ों के अनुसार मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर का अठारह फ़ीसदी रोज़गार टेक्सटाइल एंड विअरिंग अपैरल सेक्टर से आता है। यहां अन्स्किल्ड और स्किल्ड लेबर को बड़े पैमाने पर काम मिलता है। लेकिन फ़िलहाल टेक्स्टायल इंडस्ट्री बैठ गई है। सूरत से लेकर भिवंडी तक त्रिचि से लेकर बनारस तक। बड़े उद्योग से लेकर कॉटेज इंडस्ट्री और हस्तकरघा और बुनकर सब परेशान हैं। करोड़ों का माल पड़ा है लेकिन ख़रीदने वाला कोई नहीं है। 

नया प्रोडक्शन बंद पड़ा है। सिर्फ़ सूरत के कपड़ा उद्योग को देखें तो वहां लाखों मज़दूर काम करते हैं। इसमें से 80-90 फ़ीसदी मज़दूर प्रवासी हैं। जो या तो घर जा चुके हैं या जाना चाहते हैं। कपड़ा उद्योग अपना 35-40 फ़ीसदी कारोबार मार्च, अप्रैल और मई के महीने में करता है, क्योंकि इन महीनों के दौरान शादियों और त्यौहारों का मौसम होता है। टेक्सटाइल प्रोसेसिंग हाउस बंद है, पांच से छह लाख करघे जहां बुनाई का काम होता है, सब बंद पड़े हैं।  पांच से छह लाख कारीगर बुनाई का काम करते हैं और दस लाख से ज़्यादा मज़दूर इस उद्योग में हैं। पूरा व्यापार मज़दूरों के कंधों पर है। 

जीडीपी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा टेक्सटाइल इंडस्ट्री से आता है। 2011 से लेकर 2014 तक उसमें ज़बरदस्त उछाल आया था। उसके बाद इसकी ग्रोथ स्थिर हो गई थी लेकिन फिर भी ये दो दशमलव तीन फ़ीसदी पर था। लेकिन अब सब चौपट होने का अंदेशा है। ईद तो अगले साल भी आएगी, अभी दिवाली भी आएगी, लेकिन चिंता ये है कि खेती के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोज़गार के अवसर मुहय्या करने वाला ये सेक्टर कैसे उठेगा।

प्रधानमंत्री ने भी राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है कि कोरोना संकट में जरूरतमंदों का ध्यान रखिए। और जनता ध्यान रख रही है। एक दूसरे की मदद करने में कोई भी पीछे नहीं है। जहां जहां लॉकडाउन में थोड़ी छूट मिली है वहां वहां ट्रक और बस से वापस अपने अपने घरों को जाने वाले मज़दूरों को खाना खिलाने का और पानी पिलाने का काम जारी है। 

लेकिन क्या सरकार जनता का ध्यान रख रही है? क्या उद्योग धंधों को वापस पटरी पर लाने का कोई प्लान सरकार के पास है? इसलिए शुरू में कहा कि अगर नहीं है तो क्या जनता ऐसी सरकार को भी दूर से सलाम कर देगी? क्या विपक्ष ने इस संकट में अपनी ज़िम्मेदारी निभाई? ज़ोरदार तरीक़े से जनता के हक़ में आवाज़ उठाई? अगर नहीं तो ऐसे विपक्ष को भी दूर से सलाम।

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