भारत-अमेरिका: दोस्त-दोस्त न रहा

by Darain Shahidi 3 years ago Views 5307

Trump's 'Senseless' H1-B Visa Suspension Hits Indi
अमेरिका जो कर रहा है वो भारत के लिए ठीक नहीं है। दुनिया के कई देशों में कोरोना महामारी फैल चुकी थी उसके बावजूद हम करोड़ों रुपये ख़र्च करके नमस्ते ट्रम्प करते हैं। कोरोना के ख़तरे से जान जोखिम में डालकर उनका स्वागत करते हैं। अहमदाबाद की सड़कों पर लाखों की तादाद में उतरते हैं और वे वीज़ा पर रोक लगा देते हैं। ये कैसी दोस्ती है?

एच-1 बी वीजा के साथ-साथ जो दूसरे वर्किंग वीज़ा हैं उन्हें भी टेम्प्रोरी तौर पर सस्पेंड करने के लिए आदेश जारी कर दिया गया। और जो पाबंदी पहले टेम्प्रोरी थी उसे आगे बढ़ा दिया। इसका सबसे बड़ा नुक़सान भारत के प्रोफेशनल्स का होगा, हर साल अमेरिका 85,000 एच-1बी वीजा जारी करता है और इनमें से 70 फीसदी वीजा भारतीय कर्मचारियों को ही मिलते हैं। 


वीडियो देखिये

एच-1 बी वीज़ा क्या है?  

ये ऐसा वीज़ा है जो विदेश से सिर्फ़ उनलोगों को अमेरीका लाने के लिए दिया जाता है जो हाइली स्किल्ड हैं। यानी वो काम जिसे अमेरीकी नहीं कर पाते या इस काम को करने के लिए अमेरीका में प्रोफेशनल्स की कमी हो। इस वीजा की वैलिडिटी छह साल की होती है। अमेरिकी कंपनियों की डिमांड की वजह से भारतीय आईटी प्रोफेशनल्‍स इस वीजा को सबसे ज़्यादा हासिल करते हैं।

टीसीएस और इंफोसिस जैसी बड़ी भारतीय कंपनियां, अमाज़ोन, गूगल या माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों के बीच ऐसा तालमेल बन गया जो एक दूसरे पर निर्भर हैं। भारतीय कम्पनियां अपने प्रोफेशनल्स को एच-1 बी वीज़ा के ज़रिए ही अमेरीका भेजती हैं। अब ट्रम्प का कहना है की बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए पहले अमेरीकी नागरिकों को नौकरी दी जाएगी बाद में विदेशियों को। अब उन्हें कौन समझाए कि जिस काम को करने के लिए अमेरीका में लोग ही नहीं हैं तो नौकरी किस आधार पर दी जाएगी?

गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई अमेरीकी सरकार के इस फ़ैसले से नाराज़ हैं। अमेरिकी कंपनियों में एच-1 बी वीजा पर काम करने वाले इंडियन प्रोफेशनल्स नौकरी से निकाले जा सकते हैं। नए नियम के अनुसार अगर 60 दिन के अंदर दूसरी नौकरी नहीं मिली तो बोरिया बिस्तर बाँध के परिवार समेत भारत लौटना पड़ेगा। यानी जिस तरह से भारत की सड़कों पर मज़दूरों का पलायन देखा गया कुछ-कुछ वैसा ही अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर भी देखने को मिल सकता है। अमेरीका में रहने वाले आईटी मज़दूरों का पलायन।


अमेरीका में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। देखा जाए तो प्रवासियों में दूसरा सबसे बड़ा समुदाय भारतीयों का है और ये संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले कुछ दशकों में ये बढ़कर 24 लाख के क़रीब पहुँच गई है। वैसे तो हमारे देश के लोग अमेरीका में कोने कोने में छाए हुए हैं लेकिन भारतीयों की सबसे बड़ी आबादी कैलिफोर्निया और टेक्सास के आस-पास के इलाक़ों में है। ईस्ट कोस्ट के कई इलाक़ों में भारतीय अच्छी ख़ासी संख्या में मौजूद हैं।

अमेरीका में जो प्रवासी भारतीय रहते हैं उनमें से 82 फ़ीसदी 18 से 64 साल की आयु वर्ग के लोग हैं। कमोबेश यही स्थिति सभी प्रवसीयों की है। यानी अधिकतर स्टूडेंट्स हैं और आईटी प्रोफ़ेशनल्स हैं। और इस आबादी का एक ऐसा हिस्सा भी है जो अकेडमिक्स में है। बाक़ी व्यापारी हैं।

ये लोग देश में काफ़ी पैसा भेजते हैं। आप देखिए की किस तरह से यूएई के बाद अमेरीका से सबसे अधिक पैसा रेमिटेंस के ज़रिए भारत आता है। अब तो ये रक़म 11,715 मिलियन से कहीं ज़्यादा बढ़ गई है।

भारत को नुक़सान ही नुक़सान है। अब सवाल ये है कि हमारे दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प ऐसा क्यों कर रहे हैं। दरअसल, ट्रम्प हमेशा से एमिग्रेंट्स के ख़िलाफ़ रहे हैं। ये उनका चुनावी मुद्दा भी रहा है। उनका भी यही कहना है कि अमेरीका को आत्मनिर्भर होना चाहिए। लेकिन वो आत्मनिर्भर होने के आड़ में भारत का नुक़सान कर रहे हैं। फिर किस बात की दोस्ती?

ऐसा काम कोई दोस्त कर सकता है क्या?  एच-1 बी वीजा के नाम पर शिकंजा ऐसा कसा है कि भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स के लिए अमरीका में रहना ही मुश्किल हो जाएगा और भगवान न करे कि भारत में जिस तरह सड़कों पर मज़दूरों का पलायन देखने को मिला कुछ वैसा ही पलायन अमेरिका के अलग-अलग शहरों में एयरपोर्ट्स पर भी देखने को ना मिलें। अगर ऐसा हुआ तो हमें फिर कभी नमस्ते ट्रम्प कहने से तौबा कर लेनी चाहिए।

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