दिल्ली चुनाव 2020 - एग़्ज़िट पोल का सच
दिल्ली में वोटिंग के बाद से हवा का रूख कई बार बदल चुका है। एग़्ज़िट पोल के नतीजे कहते हैं कि आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है। लेकिन बीजेपी के नेता इतने विश्वास में हैं कि उनका विश्वास देख के उनके विरोधियों का विश्वास हिल गया है।
ऊपर से चुनाव आयोग ने वोटिंग पर्सेंटेज़ की फाइनल फिगर रिलीज़ करने में देर कर दी तो अब आम आदमी पार्टी का शक और गहरा गया है। उनके नेताओं को लगने लगा है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि दाल में कुछ काला है। क्या ईवीएम में घपला हो गया है? क्या दिल्ली की हवा पलट गई है। क्या तीन बजे से साढ़े छह बजे के बीच जो वोटिंग हुई है उसमें कोई बड़ा उलट फेर हुआ है। क्या चुनाव के नतीजे सबको चौंका सकते हैं। कुछ चुनावी आंकड़ेबाज़ कह रहे हैं कि बीजेपी को तीस से छत्तीस सीट भी मिल सकती है।
बीजेपी जीत गई तो एग्ज़िट पोल ग़लत और आम आदमी पार्टी हार गई तो ईवीएम ग़लत। सब यही कहेंगे कि खेल हो गया। बड़ी पार्टी है। केंद्र में सरकार में है। खेल कर सकती है। लेकिन क्या ये खेल इतना आसान है? इसका सही-सही जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है। हाँ ईवीएम पर सवाल उठाने वाली पार्टी जीतने के बाद चुप हो जाती है ये बात कई बार हम देख चुके हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या दिल्ली में हुए एग्ज़िट पोल ग़लत साबित हो सकते हैं? हो जाए तो ताज्जुब नहीं क्योंकि पिछले कई चुनाव में एग्ज़िट पोल ग़लत साबित हो चुके हैं। 2013 और 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए और दोनों बार एग्ज़िट पोल ग़लत साबित हुए। पहले बीजेपी की सरकार बनाई जा रही थी लेकिन असली नतीजे आए तो बीजेपी को बहुमत नहीं मिली। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। 49 दिन सरकार में रहने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा की कांग्रेस और बीजेपी जनलोकपाल बिल में अड़ंगा अड़ा रहे हैं इसलिए इस्तीफ़ा दे दिया। 2015 में जब दुबारा चुनाव हुए तो इन्हीं एग्ज़िट पोल वालों ने कांटे की टक्कर का दावा किया था। लेकिन असली नतीजे में कोई कांटा नहीं दिखा, आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली और अब एक बार फिर एग्ज़िट पोल चर्चा में है। जब तक नतीजे नहीं आ जाते चर्चा में रहेंगे। एग्ज़िट पोल ग़लत क्यों होते हैं इस बारे में ऐजेंसी कभी नहीं बताती। हम सिर्फ़ अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मतदाता स्मार्ट हैं या तो वो इन एजेंसीज़ को सही बात नहीं बताता या फिर एजेंसी का एग्ज़िट पोल करने का तरीक़ा सही नहीं है। पहले एग्ज़िट पोल की जगह पोस्ट पोल सर्वे होते थे। जिसमें राजनीति के वैज्ञानिक और बड़े-बड़े समाजशास्त्री शामिल होते थे और सवालों की फ़ेहरिस्त के ज़रिए समाज की दिशा और दशा को समझने की कोशिश करते थे। और नागरिकों के राजनीतिक रुझान और उसके कारण को समझने की कोशिश करते थे। लेकिन अब पोस्ट पोल सर्वे बहुत कम होते हैं अब एग्ज़िट पोल होते हैं। जो सिर्फ़ और सिर्फ़ तमाशा है। टीवी चैनल पर तीन-चार दिन चीख़-चीख़ के बहस होती है। ख़ूब टीआरपी आती है और इश्तहार मिलते हैं। इस बार प्री पोल सर्वे और एग्ज़िट पोल के नतीजे लगभग एक जैसे हैं तो बहस की संभावना कम थी। एकतरफ़ा जीत दिख रही थी। लेकिन टीवी के कुछ एंकर्स एग्ज़िट पोल के नतीजे देखकर ऐसे बौखला उठे हैं कि अनाप-शनाप बकने लगे हैं और वोटरों को ही गाली देने लगे हैं। हमारे महान देश के गौरवशाली लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि मन मुताबिक़ एग्ज़िट पोल के नतीजे नहीं आने के कारण जनता को ही गाली सुननी पड़ी। पत्रकार जनता की आवाज़ होता है। मीडिया के माध्यम से आम जनता की समस्याओं को उजागर करना उसका काम होता है। अगर यही पत्रकार जनता को गाली देने लगे तो समझिए उसने मुखौटा पहन रखा है और सत्ता से मिल गया है। जानकारों से पूछिए कि ऐसा क्यों होता है? तो वो कहते हैं कि इस सवाल का जवाब आप आसानी से समझ जाएंगे जब आप ये समझेंगे कि टीवी मीडिया अब बाज़ार बन गया है। और बाज़ार वो जगह है जहाँ के बारे में कहा जाता है कि “न बाप बड़ा ना भैय्या सबसे बड़ा रुपैय्या।”
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बीजेपी जीत गई तो एग्ज़िट पोल ग़लत और आम आदमी पार्टी हार गई तो ईवीएम ग़लत। सब यही कहेंगे कि खेल हो गया। बड़ी पार्टी है। केंद्र में सरकार में है। खेल कर सकती है। लेकिन क्या ये खेल इतना आसान है? इसका सही-सही जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है। हाँ ईवीएम पर सवाल उठाने वाली पार्टी जीतने के बाद चुप हो जाती है ये बात कई बार हम देख चुके हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या दिल्ली में हुए एग्ज़िट पोल ग़लत साबित हो सकते हैं? हो जाए तो ताज्जुब नहीं क्योंकि पिछले कई चुनाव में एग्ज़िट पोल ग़लत साबित हो चुके हैं। 2013 और 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए और दोनों बार एग्ज़िट पोल ग़लत साबित हुए। पहले बीजेपी की सरकार बनाई जा रही थी लेकिन असली नतीजे आए तो बीजेपी को बहुमत नहीं मिली। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। 49 दिन सरकार में रहने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा की कांग्रेस और बीजेपी जनलोकपाल बिल में अड़ंगा अड़ा रहे हैं इसलिए इस्तीफ़ा दे दिया। 2015 में जब दुबारा चुनाव हुए तो इन्हीं एग्ज़िट पोल वालों ने कांटे की टक्कर का दावा किया था। लेकिन असली नतीजे में कोई कांटा नहीं दिखा, आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली और अब एक बार फिर एग्ज़िट पोल चर्चा में है। जब तक नतीजे नहीं आ जाते चर्चा में रहेंगे। एग्ज़िट पोल ग़लत क्यों होते हैं इस बारे में ऐजेंसी कभी नहीं बताती। हम सिर्फ़ अंदाज़ा लगा सकते हैं कि मतदाता स्मार्ट हैं या तो वो इन एजेंसीज़ को सही बात नहीं बताता या फिर एजेंसी का एग्ज़िट पोल करने का तरीक़ा सही नहीं है। पहले एग्ज़िट पोल की जगह पोस्ट पोल सर्वे होते थे। जिसमें राजनीति के वैज्ञानिक और बड़े-बड़े समाजशास्त्री शामिल होते थे और सवालों की फ़ेहरिस्त के ज़रिए समाज की दिशा और दशा को समझने की कोशिश करते थे। और नागरिकों के राजनीतिक रुझान और उसके कारण को समझने की कोशिश करते थे। लेकिन अब पोस्ट पोल सर्वे बहुत कम होते हैं अब एग्ज़िट पोल होते हैं। जो सिर्फ़ और सिर्फ़ तमाशा है। टीवी चैनल पर तीन-चार दिन चीख़-चीख़ के बहस होती है। ख़ूब टीआरपी आती है और इश्तहार मिलते हैं। इस बार प्री पोल सर्वे और एग्ज़िट पोल के नतीजे लगभग एक जैसे हैं तो बहस की संभावना कम थी। एकतरफ़ा जीत दिख रही थी। लेकिन टीवी के कुछ एंकर्स एग्ज़िट पोल के नतीजे देखकर ऐसे बौखला उठे हैं कि अनाप-शनाप बकने लगे हैं और वोटरों को ही गाली देने लगे हैं। हमारे महान देश के गौरवशाली लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि मन मुताबिक़ एग्ज़िट पोल के नतीजे नहीं आने के कारण जनता को ही गाली सुननी पड़ी। पत्रकार जनता की आवाज़ होता है। मीडिया के माध्यम से आम जनता की समस्याओं को उजागर करना उसका काम होता है। अगर यही पत्रकार जनता को गाली देने लगे तो समझिए उसने मुखौटा पहन रखा है और सत्ता से मिल गया है। जानकारों से पूछिए कि ऐसा क्यों होता है? तो वो कहते हैं कि इस सवाल का जवाब आप आसानी से समझ जाएंगे जब आप ये समझेंगे कि टीवी मीडिया अब बाज़ार बन गया है। और बाज़ार वो जगह है जहाँ के बारे में कहा जाता है कि “न बाप बड़ा ना भैय्या सबसे बड़ा रुपैय्या।”
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