यूपी: रोज़गार योजना में सिर्फ पूर्वांचल के ज़िले, पश्चिमी यूपी दायरे से बाहर
UP: Only livelihoods of Purvanchal in employment scheme, outside the scope of Western UP
लॉकडाउन में महानगरों से पलायन करने वाले मज़दूरों को रोज़गार देने के लिए केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर रोजगार अभियान शुरू किया है. शुक्रवार को प्रधानमंत्री मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये यूपी में इस अभियान का आग़ाज़ किया. इस दौरान उन्होंने पूर्वी यूपी के गोंडा, बहराइच, संत कबीर नगर, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर और जालौन ज़िले के प्रवासी मज़दूरों से बातचीत भी की.
यह योजना पूर्वी उत्तर प्रदेश के 31 ज़िलों में लागू की जाएगी जिनमें से 26 लोकसभा सीटें बीजेपी ने 2019 के आमचुनाव में जीती थीं. योजना में बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और फतेहपुर जैसे पिछड़े ज़िलों को शामिल किया गया है लेकिन इसी कैटगरी में आने वाले चंदौली, चित्रकूट और सोनभद्र इसके दायरे से बाहर हैं.
हैरानी की बात है कि पश्चिमी यूपी को इस योजना से पूरी तरह वंचित रखा गया है जहां 2019 के आमचुनाव में बीजेपी को कई सीटें गंवानी पड़ी थीं. इस योजना का लक्ष्य शहरों से गांव लौटे मज़दूरों को उनके घर के आस-पास ही काम देना और एंटरप्रोन्योरशिप को बढ़ावा देना है. साथ ही, इससे औद्योगिक संगठनों और ज़रूरी संस्थानों को भी जोड़ा जाएगा ताकि रोज़गार के अवसर पैदा किए जा सकें. सीएम योगी आदित्यनाथ का दावा है कि इस योजना के तहत 1.25 करोड़ लोगों को रोजगार दिया जाएगा. रोज़गार देने के लिए पब्लिक टॉयलेट, पीएम आवास योजना, सड़क निर्माण जैसे काम को शामिल किया गया है. एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान यूपी में 35 लाख मज़दूर अलग-अलग राज्यों से वापस लौटे. उन्होंने कहा कि इसके तहत हर दिन 60 लाख श्रमिकों को काम दिया जाएगा. मगर सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस योजना के दायरे में ज़्यादातर पूर्वांचल के ही ज़िलों को क्यों रखा गया है जहां बीजेपी का जनाधार ज़्यादा है. पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी और सीएम योगी का गृह ज़िला गोरखपुर भी पूर्वांचल में आता है. मज़दूरों का पलायन पश्चिमी यूपी में भी हुआ, विकास की ज़रूरत पश्चिम के ज़िलों में भी है तो फिर यह भेदभाव क्यों ?
हैरानी की बात है कि पश्चिमी यूपी को इस योजना से पूरी तरह वंचित रखा गया है जहां 2019 के आमचुनाव में बीजेपी को कई सीटें गंवानी पड़ी थीं. इस योजना का लक्ष्य शहरों से गांव लौटे मज़दूरों को उनके घर के आस-पास ही काम देना और एंटरप्रोन्योरशिप को बढ़ावा देना है. साथ ही, इससे औद्योगिक संगठनों और ज़रूरी संस्थानों को भी जोड़ा जाएगा ताकि रोज़गार के अवसर पैदा किए जा सकें. सीएम योगी आदित्यनाथ का दावा है कि इस योजना के तहत 1.25 करोड़ लोगों को रोजगार दिया जाएगा. रोज़गार देने के लिए पब्लिक टॉयलेट, पीएम आवास योजना, सड़क निर्माण जैसे काम को शामिल किया गया है. एक अनुमान के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान यूपी में 35 लाख मज़दूर अलग-अलग राज्यों से वापस लौटे. उन्होंने कहा कि इसके तहत हर दिन 60 लाख श्रमिकों को काम दिया जाएगा. मगर सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस योजना के दायरे में ज़्यादातर पूर्वांचल के ही ज़िलों को क्यों रखा गया है जहां बीजेपी का जनाधार ज़्यादा है. पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी और सीएम योगी का गृह ज़िला गोरखपुर भी पूर्वांचल में आता है. मज़दूरों का पलायन पश्चिमी यूपी में भी हुआ, विकास की ज़रूरत पश्चिम के ज़िलों में भी है तो फिर यह भेदभाव क्यों ?
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