तालाबंदी के दौरान कर्ज़ के बोझ तले दबे मज़दूरों में हिंसा का ख़ौफ़: रिपोर्ट

by Rahul Gautam 3 years ago Views 3294

Violence among workers buried under debt during lo
कोरोना महामारी के चलते देश में लगाई गई तालाबंदी की सबसे ज्यादा मार रोज़ाना काम करके खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ी है. अब डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन तालाबंदी के दौरान शहरों से गांवों की ओर पलायन करने वाले दिहाड़ी मज़दूरों पर एक रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक करोड़ों लोग भुखमरी की कगार पर हैं और कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं.

इस रिपोर्ट के मुताबिक तकरीबन 80 फीसदी दिहाड़ी मज़दूरों का मानना है कि वे अब कभी भी उनपर चढ़ा हुआ कर्ज़ा नहीं उतार पाएंगे. 50 फीसदी मज़दूरों का यहां तक कहना है कि कर्ज़ के चलते उन्हें हिंसा का शिकार होने का डर सता रहा है. आईआईएम अहमदाबाद के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर चिन्मय तुंबे के मुताबिक लॉकडाउन के पहले चरण में ही करीब 3 करोड़ लोग अपने राज्यों को वापस लौटे थे और ये 3 करोड़ लोग शहरों में काम करने वाली वर्कफोर्स का 15-20 फीसदी हिस्सा हैं.


डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन के मुताबिक तालाबंदी की शुरुआत में ही कई मज़दूरों को उनके मालिकों ने पैसा देना बंद कर दिया था. अपने हाल पर छोड़े गए इन दिहाड़ी मज़दूरों में 93 फीसदी ऐसे थो जो एक दिन में 200 रुपए से लेकर 600 रुपए तक कमाते थे मगर लॉकडाउन के शुरुआती 3 हफ्तों में ही बाहर कर दिए गए थे.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तालाबंदी के चलते दिहाड़ी मज़दूरों की बड़े पैमाने पर मौत हुई. इनमें 167 लोगों की मौत भुखमरी और 209 की मौत लगातार चलने से हो गयी. अगर इनमें आर्थिक तंगी के चलते हुई आत्महत्या, श्रमिक ट्रैन और सड़क हादसों में हुई मौतों का आंकड़ा जोड़ें तो यह संख्या हज़ार के ऊपर पहुंचने की आशंका है.

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