सोने पर 3 फ़ीसदी लेकिन हैंड सैनेटाइज़र पर 18 फ़ीसदी टैक्स क्यों?
दुनिया कोरोनावायरस से जंग लड़ रही है. इस वायरस को मात देने में फिज़िकल डिस्टेंसिंग के अलावा बार-बार हाथ धोना सबसे कारगर हथियार बताया गया है. लोग अपने बचाव के लिए हैंड सैनेटाइज़र अपनी जेब में रखकर घूम रहे हैं. मगर अफ़सोस की बात यह है कि केंद्र सरकार ने इस एसेंशियल कमोडिटी पर 18 फ़ीसदी जीएसटी लगाने का ऐलान कर दिया है. इस फ़ैसले के बाद केंद्र सरकार पर आरोप लग रहा है कि उसने इस आपदा को अपना खाली खज़ाना भरने के अवसर में बदल दिया है.
मशहूर वेबसाइट स्टैटिस्टा के मुताबिक साल 2019 में भारत में हैंड सैनिटाइज़र का कुल बाज़ार 352 मिलियन डॉलर था, जोकि 2020 में 611 मिलियन डॉलर रहने की संभावना है. इस आंकड़े से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इतने बड़े बाज़ार पर 18 फीसदी टैक्स लगाने से सरकार की कितनी आमदनी होगी.
हालांकि वित्त मंत्रालय का कहना है कि सैनिटाइज़र पर कम जीएसटी लगाने से ना बनाने वालों को ना खरीदने वालों को कोई फायदा पहुंचेगा। मंत्रालय के मुताबिक़ सैनिटाइज़र को उसी श्रेणी में रखा गया है जिसमें साबुन, डेटोल जैसे अन्य चीज़ें हैं और उस श्रेणी पर 18 फीसदी ही जीएसटी लगता है। यही हाल कमोबेश मास्क का भी है जिसका देश में बाज़ार लगभग 10 से 12 हज़ार करोड़ रुपए तक का है. कमाल की बात ये है कि जिस मास्क को ना पहनने पर कई राज्यों में जुर्माना है, सरकार उस पर भी 5 फीसदी टैक्स बटोर रही है. इससे भी सरकार की झोली में काफी पैसा जा रहा है. तमाम शोधों में यह भी साफ़ हो चुका है कि कोरोनावायरस मरीज़ के फेफड़ों पर हमला करता है और कई मरीजों को कृत्रिम ऑक्सीजन देनी पड़ती है. यहां यह जानना ज़रूरी है कि सरकार इस मेडिकल ग्रेड ऑक्सीज़न पर भी 12 फीसदी टैक्स ले रही है. इनकी तुलना अगर सोने से करें तो मालूम पड़ता है कि सरकार ने सोने पर केवल 3 फीसद टैक्स लगा रखा है। यानि सोने पर लगने वाला टैक्स महामारी से लड़ने के काम में वाली चीज़ों से बेहद कम है. सवाल उठ रहे हैं कि सरकार की प्राथमिकता संक्रमण को हराना है या फिर इसके नाम पर खाली खज़ाना भरना है.
हालांकि वित्त मंत्रालय का कहना है कि सैनिटाइज़र पर कम जीएसटी लगाने से ना बनाने वालों को ना खरीदने वालों को कोई फायदा पहुंचेगा। मंत्रालय के मुताबिक़ सैनिटाइज़र को उसी श्रेणी में रखा गया है जिसमें साबुन, डेटोल जैसे अन्य चीज़ें हैं और उस श्रेणी पर 18 फीसदी ही जीएसटी लगता है। यही हाल कमोबेश मास्क का भी है जिसका देश में बाज़ार लगभग 10 से 12 हज़ार करोड़ रुपए तक का है. कमाल की बात ये है कि जिस मास्क को ना पहनने पर कई राज्यों में जुर्माना है, सरकार उस पर भी 5 फीसदी टैक्स बटोर रही है. इससे भी सरकार की झोली में काफी पैसा जा रहा है. तमाम शोधों में यह भी साफ़ हो चुका है कि कोरोनावायरस मरीज़ के फेफड़ों पर हमला करता है और कई मरीजों को कृत्रिम ऑक्सीजन देनी पड़ती है. यहां यह जानना ज़रूरी है कि सरकार इस मेडिकल ग्रेड ऑक्सीज़न पर भी 12 फीसदी टैक्स ले रही है. इनकी तुलना अगर सोने से करें तो मालूम पड़ता है कि सरकार ने सोने पर केवल 3 फीसद टैक्स लगा रखा है। यानि सोने पर लगने वाला टैक्स महामारी से लड़ने के काम में वाली चीज़ों से बेहद कम है. सवाल उठ रहे हैं कि सरकार की प्राथमिकता संक्रमण को हराना है या फिर इसके नाम पर खाली खज़ाना भरना है.
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