110 ग़रीब ज़िलों में कोरोना संक्रमण रोकना सरकारों के लिए सिरदर्द क्यों है?

by Rahul Gautam 3 years ago Views 8278

Why is it a headache for governments to prevent co
कोरोना महामारी का संक्रमण रोकने में दक्षिण भारत का राज्य केरल सफल हुआ क्योंकि उस राज्य में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है.

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में महामारी बेक़ाबू इसलिए हुई क्योंकि यहां स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बेहद कमज़ोर है. इन राज्यों में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बेहद कम है. जहां केंद्र बनाए भी गए हैं, वहां डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ इक्का-दुक्का हैं. सुविधाएं लगभग ना के बराबर हैं.


देश के 110 से ज़्यादा ज़िले ऐसे हैं जहां शिक्षा और स्वास्थ्य का ढांचा बेहद कमज़ोर है. यहां रोज़गार का कोई ज़रिया नहीं है और किसी तरह लोग गुज़र-बसर कर रहे हैं. सरकार इन्हें एस्पिरेशनल जिले कहती है. इनमें सबसे ज़्यादा ज़िले उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और मध्य प्रदेश के हैं. इन राज्यों से सबसे ज्यादा पलायन की एक वजह यह भी है. सरकारें परेशान हैं कि इन ज़िलों में कोरोना का संक्रमण कैसे रोकें क्योंकि स्वास्थ्य की सुविधा यहां है ही नहीं.

उत्तर प्रदेश की आबादी के हिसाब से 1445 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए लेकिन यहां सिर्फ 679 केंद्र हैं। यानि 53 % की कमी. लखनऊ से 160 किलोमीटर दूर बलरामपुर ज़िला है. यहां कोरोना के 41 मामले सामने आ चुके हैं लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ छह हैं और एक जिला अस्पताल है. इस ज़िले की आबादी 2011 में 21 लाख से ज्यादा थी. बिहार में 887 ग्रामीण सामुदायिक स्वास्थय केंद्र की ज़रूरत है लेकिन यहां सिर्फ 150 ही केंद्र हैं. यानि इस राज्य में प्राथमिक इलाज के लिए होने वाले केंद्रों में 83 % फीसदी की कमी है.

वीडियो देखिए

बिहार के खगाड़िया जिले में 269 से ज्यादा मामले सामने आ चुके है लेकिन इस ज़िले में सिर्फ एक भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. यहां सिर्फ एक जिला अस्पताल है. साल 2011 में इसकी आबादी थी 16.7 लाख। अंदाज़ा लगाइए खगड़िया के गांववाले कोरोना से बचने के लिए कहां जाएंगे. यही हाल मध्य प्रदेश का भी है जहां 558 की बजाय सिर्फ 309 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. यानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में 45 % की कमी.

झारखण्ड में 269 सामुदायिक स्वास्थय केंद्र होने चाहिए लेकिन 171 केंद्र ही मरीजों की तीमारदारी के लिए बने हैं। जिसका मतलब 36 % की कमी। यहाँ के सिमडेगा ज़िले में 43 मामले आ चुके हैं। इस जिले में केवल 6 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. आबादी साल 2011 में थी 6 लाख. एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर 4 डॉक्टर्स, 30 से ज्यादा पैरामेडिकल स्टाफ और इतने ही बेड होने चाहिए लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त इसके उलट है. इन राज्यों के तमाम केंद्रों पर डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ इक्का-दुक्का हैं.

आंकड़े बताते हैं कि साल 2019 में इन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में काम करने वाले डॉक्टरों की संख्या 2018 के मुकाबले घट गयी है. सामुदायिक केंद्रों पर पहले 4074 स्पेशलिस्ट डॉक्टर तैनात थे लेकिन अब घटकर 3881 रह गए हैं. सरकार खुद मानती है कि उसके अपने मानकों के हिसाब से करीब 82 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी है.

Latest Videos

Latest Videos

Facebook Feed